Dosti 1964 Trivia | दोस्ती फिल्म की मेकिंग से जुड़ी 20 अनसुनी और सच्ची कहानियां
Dosti 1964 Trivia. 6 नवंबर 1964 को रिलीज़ हुई दोस्ती हिंदी फिल्म इंडस्ट्री की एक बड़ी ही शानदार फिल्म है। इस फिल्म के डायरेक्टर थे सत्येन बोस और फिल्म की कहानी लिखी थी बाण भट्ट ने। जबकी फिल्म के डायलॉग्स और स्क्रीनप्ले लिखा था गोविंद मुनीष ने।
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Dosti 1964 Trivia - Photo: Social Media |
इस फिल्म में लीड रोल्स में नज़र आए थे सुशील कुमार सौम्य और सुधीर कुमार सावंत। इन दोनों के अलावा फिल्म में बेबी फरीदा, सजंय खान, लीला मिश्रा, लीला चिटनिस और नाना पलसिकर ने भी अहम किरदार निभाए थे।
इस फिल्म में कुल छह गीत थे जिनमें से पांच को मोहम्मद रफी ने अपनी आवाज़ दी थी और एक गीत गाया था लता मंगेशकर जी ने। और इस फिल्म के गीत बहुत ज़्यादा पसंद किए गए थे। दोस्ती के गीत लिखे थे मजरूह सुल्तानपुरी ने और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने इन गीतों को अपनी धुन से सजाया था।
Meerut Manthan पर, आज आप जानेंगे दोस्ती फिल्म की मेकिंग से जुड़ी कुछ शानदार और अनसुनी कहानियां। और दोस्ती फिल्म की ये अनसुनी कहानियां आपको बहुत पसंद आएंगी, हमें इसका पूरा यकीन है। Dosti 1964 Trivia.
पहली कहानी
दोस्ती फिल्म के अलावा साल 1964 में राज कपूर की सुपरहिट फिल्म संगम भी रिलीज़ हुई थी। और संगम ने भी बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त कामयाबी हासिल की थी। साल 1964 की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी सगंम।
संगम ने बॉक्स ऑफिस पर 8 करोड़ रुपए कमाए थे। जबकी 2 करोड़ रुपए की कमाई के साथ दोस्ती 1964 की तीसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी। दूसरे नंबर पर थी आई मिलन की बेला जिसने साढ़े चार करोड़ रुपए की कमाई की थी।
दूसरी कहानी
1965 के फिल्मफेयर अवॉर्ड में सत्येन बोस की दोस्ती ने राज कपूर की संगम को पछाड़ते हुए छह फिल्मफेयर अवॉर्ड अपने नाम किए थे। जहां संगम को बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट एक्ट्रेस, बेस्ट एडिटिंग और बेस्ट साउंड डिज़ाइनिंग का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था।
तो वहीं दोस्ती को बेस्ट फिल्म, बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर, बेस्ट स्टोरी, बेस्ट डायलॉग्स, बेस्ट प्लेबैक सिंगर और बेस्ट लिरिसिस्ट कैटेगरी में फिल्मफेयर अवॉर्ड मिले थे।
संगम के लिए राज कपूर को बेस्ट डायरेक्टर, राज कपूर को ही बेस्ट एडिटिंग, वैजयंतीमाला को बेस्ट एक्ट्रेस और अलाउद्दीन खान कुरैशी को बेस्ट साउंड डिज़ाइनिंग का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था।
जबकी दोस्ती के लिए ताराचंद बड़जात्या को बेस्ट फिल्म, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर, बान भट्ट को बेस्ट स्टोरी, गोविंद मुनीष को बेस्ट डायलॉग्स, मोहम्मद रफी को चाहूंगा मैं तुझे गीत के लिए बेस्ट प्लेबैक सिंगर और मजरूह सुल्तानपुरी को इसी गीत के लिए बेस्ट लिरिसिस्ट का अवॉर्ड मिला था।
तीसरी कहानी
दोस्ती फिल्म जब रिलीज़ हुई थी तो इसे लेकर दर्शकों में बहुत ज़्यादा क्रेज़ था। फिल्म के टिकट की एडवांस बुकिंग के लिए लंबी-लंबी लाइनें लग गई थी। उस ज़माने में फिल्म इन्फोर्मेशन नाम से एक फिल्म क्रिटिक मैगज़ीन हुआ करती थी।
उस मैगज़ीन का ऑफिस मुंबई की एक मेन रोड पर हुआ करता था। जबकी उस मैगज़ीन के ऑफिस से काफी अंदर एक थिएटर भी था। उस थिएटर में भी दोस्ती फिल्म लगी थी।
और दोस्ती फिल्म को लेकर दर्शकों में इतना ज़्यादा उत्साह था कि रिलीज़ के वक्त फिल्म की टिकट बुकिंग की लाइन फिल्म इन्फोर्मेशन मैगज़ीन के ऑफिस तक आ गई थी। वो लाइन देखकर फिल्म इन्फोर्मेशन मैगज़ीन के उस वक्त के संपादक मिस्टर रामराज नाहटा ने ताराचंद बड़जात्या को फोन करके बधाई भी दी थी।
चौथी कहानी
दोस्ती फिल्म साल 1959 में आई एक बंगाली फिल्म लालू भुलू की रीमेक थी। उस फिल्म को दीपचंद काकड़िया ने प्रोड्यूस किया था। और एक दफा जब ताराचंद बड़जात्या कलकत्ता गए थे तो वहां उनकी मुलाकात दीपचंद काकड़िया से हुई थी।
दीपचंद काकड़िया की गुज़ारिश पर ताराचंद बड़जात्या ने उनकी फिल्म लालू-भुलू देखी थी। और ये फिल्म ताराचंद बड़जात्या को काफी पसंद भी आई थी। तब दीपचंद काकड़िया ने ताराचंद बड़जात्या को लालू-भुलू का हिंदी रीमेक बनाने की सलाह दी और उस सलाह पर अमल करते हुए ताराचंद बड़जात्या ने दोस्ती बनाई जो कि बहुत शानदार हिट रही।
पांचवी कहानी
दोस्ती राजश्री प्रोडक्शन की दूसरी फिल्म थी। दोस्ती से पहले राजश्री प्रोडक्शन ने साल 1962 में आरती फिल्म बनाई थी जिसमें अशोक कुमार, मीना कुमारी और प्रदीप कुमार जैसे उस ज़माने के बड़े नाम थे। और ये फिल्म बहुत ज़्यादा सफल भी रही थी। लेकिन ताराचंद बड़जात्या नए कलाकारों के साथ कोई फिल्म बनाना चाहते थे।
चूंकि आरती उनके राजश्री प्रोडक्शन्स की पहली फिल्म थी तो मजबूरी में वो फिल्म तो उन्हें इंडस्ट्री के बड़े स्टार्स के साथ बनानी पड़ी। लेकिन दोस्ती में उन्होंने मुख्य भूमिकाओं में सभी नए कलाकारों को साइन किया था। और उनका ये प्रयोग भी शानदार रहा। दोस्ती ज़बरदस्त सफल रही।
छठी कहानी
दोस्ती फिल्म को लेकर ताराचंद बड़जात्या पूरी तरह से आशवस्त थे। उन्हें यकीन था कि ये फिल्म लोगों को ज़रूर पसंद आएगी। यही वजह है कि जब इस फिल्म को रिलीज़ करने का वक्त आया तो उन्होंने इस फिल्म के पूरे 90 प्रिंट निकलवाए और इसे सारे देश में एक साथ रिलीज़ करने का ऐलान कर दिया।
आपको जानकर हैरानी होगी कि ताराचंद के इस फैसले पर उस ज़माने के फिल्मी पंडित बहुत ज़्यादा हैरान थे। क्योंकि उस वक्त या उससे पहले कभी किसी ने कोई फिल्म इतने बड़े पैमाने पर रिलीज़ करने के बारे में सोचा भी नहीं था।
जी हां, उस ज़माने में किसी फिल्म को 90 प्रिंट्स के साथ रिलीज़ करना बहुत बड़ी बात थी। पर ताराचंद बड़जात्या ऐसा करने में इसलिए कामयाब रहे क्योंकि उनकी खुद की कंपनी राजश्री पिक्चर्स ने दोस्ती फिल्म के डिस्ट्रिब्यूशन की कमान संभाली थी।
सातवीं कहानी
दोस्ती फिल्म का म्यूज़िक बड़ा ही शानदार रहा है और इस फिल्म के गीत लोग आज भी बहुत ज़्यादा पसंद करते हैं। इस फिल्म में शानदार म्यूज़िक देने की वजह से ही लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी को उस साल का बेस्ट म्यूज़िशियन का फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था, जो कि उनके करियर का पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड था।
दोस्ती फिल्म के बाद लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की डिमांड इंडस्ट्री में बहुत ज़्यादा बढ़ गई और रातों-रात ये जोड़ी स्टार बन गई। लेकिन पहले इस फिल्म का म्यूज़िक बनाने की ज़िम्मेदारी रोशन को दी गई थी जो उस ज़माने के बहुत बड़े म्यूज़िशियन थे।
लेकिन बहुत ज़्यादा काम की वजह से रोशन इस फिल्म का संगीत नहीं बना सके। राकेश रोशन उन्हीं रोशन के बेटे हैं। यानि रोशन ऋतिक रोशन के दादा थे। रोशन के छोटे बेटे राजेश रोशन ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया और वो भी फिल्म इंडस्ट्री के नामी संगीतकार बने।
आठवीं कहानी
दोस्ती फिल्म में पॉमेरेनियन नस्ल का एक कुत्ता भी दिखाया गया है जिसका नाम टॉफी है। और ये भी एक इत्तेफाक है कि दशकों बाद जब राजश्री प्रोडक्शन्स की ही फिल्म हम आपके हैं कौन रिलीज़ हुई तो उसमें भी एक पॉमेरेनियन नस्ल का कुत्ता दिखाया गया है।
और उस कुत्ते का नाम है टफी जो कि दोस्ती के टॉफी से बहुत ज़्यादा मिलता है। इस फिल्म में संजय खान भी एक छोटे से रोल में नज़र आए थे। और ये फिल्म संजय खान के करियर की दूसरी फिल्म थी। इस वक्त तक संजय खान बहुत बड़े स्टार नहीं बने थे।
नौंवी कहानी
दोस्ती फिल्म की सफलता के बाद इसके दोनों लीड एक्टर सुशील कुमार और सुधीर कुमार रातों रात स्टार बन गए थे। लेकिन अफसोसनाक और हैरतअंगेज़ तरीके से इन दोनों ही कलाकारों का ये स्टारडम इस फिल्म के बाद मैंटेन ही नहीं रह पाया।
खबरें आई थी कि दोस्ती फिल्म की सफलता के बाद इन दोनों ही कलाकारों को अंडरवर्ल्ड से वसूली की धमकियां मिलने लगी थी। और इन धमकियों से परेशान होकर इन दोनों ने फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी है।
एक अफवाह फैली थी कि इन दोनों की ही एक कार एक्सिडेंट में मौत हो गई थी और उस एक्सिडेंट में दिलीप कुमार का हाथ था। जबकी कुछ ने कहा कि वो एक्सिडेंट देवानंद ने कराया था। मगर ये दोनों ही बातें महज़ अफवाह ही थी।
दसवीं कहानी
दोस्ती फिल्म के दोनों मुख्य कलाकार सुधीर कुमार और सुशील कुमार को लेकर तमाम तरह की अफवाहें फैली थी। लेकिन इन दोनों की असली कहानी कुछ और ही है जो आज हम आपको बताएंगे।
बात अगर फिल्म में अपाहिज लड़के का रोल निभाने वाले सुशील कुमार की करें तो दोस्ती के बाद उन्होंने साउथ की इक्का-दुक्का फिल्मों में काम किया था।
फिर उन्होंने मुंबई के जयहिंद कॉलेज में दाखिला लिया और वहां से ग्रेजुएशन कंप्लीट करने के बाद उन्होंने साल 1971 में एयर इंडिया में नौकरी जॉइन कर ली। ये नौकरी उन्होंने साल 2003 में रिटायर होने तक की।
सुशील कुमार अब मुंबई के चेंबुर इलाके में अपने परिवार के साथ रहते हैं। जबकी फिल्म में अंधे का रोल निभाने वाले सुधीर कुमार सावंत की साल 1993 में गले के कैंसर से मौत हो चुकी है। जबकी अफवाह ये फैल गई थी कि सुधीर कुमार की मौत गले में चिकन की हड्डी अटकने से हुई थी।
11वीं कहानी
दोस्ती फिल्म में अपाहिज लड़के का किरदार निभाने वाले अभिनेता सुधीर कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि साल 1963 में आई राजकुमार और माला सिन्हा की फिल्म फूल बने अंगारे में उन्होंने एक छोटा सा रोल निभाया था।
और इत्तेफाक से ताराचंद बड़जात्या की बेटी राजश्री ने भी वो फिल्म देखी थी। राजश्री को उस फिल्म में सुधीर कुमार का किरदार बहुत पसंद आया था। और फिर राजश्री ने ही अपने पिता ताराचंद बड़जात्या को दोस्ती फिल्म में सुधीर कुमार को लेने की सलाह दी थी जो कि उन्होंने मान भी ली थी।
सुधीर कुमार और सुशील कुमार दोनों को ही ताराचंद बड़जात्या ने तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट पर रखा था और इन दोनों की ही तनख्वाह तीन सौ रुपए महीना तय की गई थी।
12वीं कहानी
दोस्ती फिल्म की सफलता में इसके गीत-संगीत का बहुत बड़ा योगदान था। इस फिल्म के गीत आज भी ऑल टाइम क्लासिक्स माने जाते हैं। दोस्ती फिल्म का संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया था और इस फिल्म के बाद ही ये जोड़ी फिल्म इंडस्ट्री के टॉप म्यूज़िशियन्स में शुमार हो गए थे।
लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस फिल्म के संगीत से नामी संगीतकार आरडी बर्मन का भी एक कनेक्शन रहा है। दरअसल, दोस्ती फिल्म के गीत जाने वालों मुड़के देखो ज़रा की शुरुआत में जो माउथ ऑर्गन सुनाई देता है वो आरडी बर्मन ने ही बजाया था।
13वीं कहानी
दोस्ती फिल्म की सफलता की एक मिसाल ये भी है कि भारत सरकार ने भी इस फिल्म को काफी प्रोत्साहित किया गया था। देश के कई राज्यों में ये फिल्म टैक्स फ्री कर दी गई थी।
उन दिनों स्कूली बच्चों को ये फिल्म खूब दिखाई गई थी। जबकी महाराष्ट्र में तो कई स्कूलों में ये रिवाज शुरू हो गया था कि शुक्रवार के दिन दोस्ती फिल्म बच्चों को दिखाई जाए।
14वीं कहानी
दोस्ती फिल्म रिलीज़ हुई थी साल 1964 में। इसी साल दिलीप कुमार की फिल्म लीडर भी रिलीज़ हुई थी। दिलीप कुमार उस दौर के बहुत बड़े स्टार थे। लेकिन फिर भी उनकी फिल्म लीडर बॉक्स ऑफिस पर बहुत बुरी तरह से फ्लॉप हुई थी।
दिलीप कुमार जब दोस्ती फिल्म वाले थिएटरों के बाहर लोगों की भीड़ देखते थे तो वो सोचा करते थे कि आखिर इस फिल्म में ऐसा क्या है जो लोग इसे इतना ज़्यादा पसंद कर रहे हैं। एक दिन दिलीप कुमार खुद ही दोस्ती फिल्म देखने चले गए।
और दोस्ती देखने के बाद दिलीप कुमार खुद को इस फिल्म की तारीफ करने से नहीं रोक पाए। उस वक्त एक अफवाह उड़ी थी कि दिलीप कुमार सुधीर कुमार और सुशील कुमार से इतने ज़्यादा चिढ़ गए कि उन्होंने इन दोनों की कार एक्सिडेंट के ज़रिए हत्या करा दी। हालांकि ये सिर्फ एक अफवाह ही थी।
15वीं कहानी
साल 1965 में हुए मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दोस्ती फिल्म भारत की ऑफिशियल एंट्री थी। और इस फिल्म का मॉस्को के एक थिएटर में प्रीमियर भी किया गया था। मॉस्को में भी ये फिल्म बहुत ज़्यादा पसंद की गई थी।
लेकिन एक रोचक किस्सा जो इस घटना से जुड़ा है वो ये कि हर किसी को लग रहा था कि मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में राज कपूर की फिल्म संगम ही जाएगी। और वो इसलिए क्योंकि उन दिनों रूस में राज कपूर की फिल्में बहुत पसंद की जाती थी।
लेकिन जब राज कपूर को मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में जूरी मेंबर बना दिया गया तो उनकी फिल्म संगम का इस फेस्टिवल में शामिल होने का चांस खत्म हो गया। वैसे उसी वक्त मॉस्को फिल्म फेस्टिवल में सत्यजीत रे की दो बंगाली फिल्में भी शामिल हुई थी।
16वीं कहानी
दोस्ती फिल्म के बाद लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का कंप्टीशिन उस ज़माने की नामी संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन से शुरू हो गया। 1964 में ही रिलीज़ हुई राज कपूर की संगम का म्यूज़िक शंकर-जयकिशन ने बनाया था।
और संगम की सफलता के बाद शंकर-जयकिशन ने अपनी फीस कई गुना बढ़ा दी। उसी वक्त निर्माता जे ओमप्रकाश शंकर-जयकिशन के पास अपनी फिल्म आए दिन बहार के का संगीत बनाने का ऑफर लेकर गए।
लेकिन जब शंकर-जयकिशन ने उनसे साढ़े तेरह लाख रुपए की डिमांड कर दी तो जे ओमप्रकाश शंकर-जयकिशन से बहुत नाराज़ हुए और उनके साथ कभी काम ना करने की कसम खा ली।
बाद में जे ओमप्रकाश लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के पास अपनी आप आए बहार आई का म्यूज़िक कंपोज़ करने का ऑफर लेकर गए और 1 लाख रुपए से भी कम में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने जे ओमप्रकाश की वो फिल्म साइन भी कर ली। इसी घटना के बाद से शंकर-जयकिशन और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के बीच प्रतिद्वंदिता शुरू हो गई।
17वीं कहानी
दोस्ती फिल्म को मिली ज़बरदस्त कामयाबी के बाद इस फिल्म के प्रोड्यूसर ताराचंद बड़जात्या इस फिल्म के दोनों लीड किरदारों के साथ एक और फिल्म बनाने की तैयारी शुरू कर चुके थे। लेकिन ठीक इसी वक्त सुशील कुमार को साउथ की एक फिल्म में मुख्य भूमिका मिल गई।
और चूंकि को फिल्म एक बड़े बजट की फिल्म थी तो सुशील कुमार ने ताराचंद बड़जात्या के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर लिया। और आखिरकार ताराचंद बड़जात्या ने वो फिल्म बनाने का इरादा ही छोड़ दिया।
18वीं कहानी
दोस्ती फिल्म से पहले सुशील कुमार और सुधीर कुमार दोनों ने ही कुछ फिल्मों में छोटे-छोटे रोल निभाए थे। इसी फिल्म में संजय खान भी हमें नज़र आए थे।
और संजय खान ने इससे पहले सिर्फ एक फिल्म में ही काम किया था जो कि साल 1962 में रिलीज़ हुई थी और जिसका नाम था टार्जन गॉज़ टू इंडिया। दोस्ती फिल्म में ही अभिनेत्री उमा राजू भी नज़र आई थी।
उमा राजू के करियर की पहली हिंदी फिल्म दोस्ती ही थी। लेकिन दोस्ती फिल्म के बाद केवल संजय खान ही इकलौते ऐसे एक्टर थे जिन्हें आगे चलकर अपने करियर में बहुत ज़्यादा सफलता मिली थी। बाकी किसी को भी इस फिल्म की कामयाबी से कोई खास फायदा नहीं हुआ था।
19वीं कहानी
दोस्ती फिल्म के डायरेक्टर थे सत्येन बॉस जो कि बंगाली फिल्मों के भी जाने-माने डायरेक्टर थे। बंगाली भाषा में बनाई गई फिल्म परिवर्तन और हिंदी फिल्म जागृति के बाद उनका बहुत नाम तो हुआ। लेकिन लोगों ने उन्हें बच्चों का डायरेक्टर कहना शुरू कर दिया।
और वो इसलिए क्योंकि परिवर्तन और जागृति दोनों ही फिल्मों की थीम बच्चों पर ही आधारित थी। और फिर जब दोस्ती फिल्म आई तो सत्येन बॉस पर लगी बच्चों के डायरेक्टर की वो मुहर और ज़्यादा गहरी हो गई। इन तीनों ही फिल्मों में मुख्य अभिनेत्रियां थी ही नहीं।
20वीं कहानी
दोस्ती को साल 1989 तक राजश्री प्रोडक्शन्स की सबसे कामयाब फिल्म माना गया था। बहुत ही कम बजट में बनी दोस्ती ने बहुत बढ़िया कमाई की थी और ये फिल्म साल 1964 की तीसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म थी।
लेकिन फिर जब साल 1989 में राजश्री प्रोडक्शन्स की मैंने प्यार किया आई तो दोस्ती का रिकॉर्ड टूट गया। 2 करोड़ रुपए में बनी मैंने प्यार किया ने 28 करोड़ रुपए की कमाई की थी। राजश्री प्रोडक्शन्स हमेशा से ही अपनी छोटे बजट की फिल्मों के लिए जाना जाता है।
यही वजह है कि मैंने प्यार किया से पहले राजश्री प्रोडक्शन्स की कोई फिल्म कमाई के मामले में नंबर वन नहीं रही थी। लेकिन मैंने प्यार किया ना केवल 1989 बल्कि पूरे 80 के दशक की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई थी।
दोस्ती की ही तरह मैंने प्यार किया ने भी छह फिल्मफेयर अवॉर्ड्स जीते थे। लेकिन चूंकि दोस्ती के गीतों के लिए रफी साहब को बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर बाफ्टा अवॉर्ड भी मिला था तो अवॉर्ड्स के मामले में मैंने प्यार किया दोस्ती से पीछे ही रही।
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