Satish Kaushik | 06 Lesser Known Facts | सतीश कौशिक की छह अनसुनी कहानियां
Satish Kaushik जी अब हमारे बीच नहीं रहे। देश में होली का जश्न अभी पूरी तरह से खत्म भी नहीं हुआ था और सतीश कौशिक जी मृत्यु की खबर आ गई। दुनियाभर में मौजूद सतीश कौशिक जी के लाखों फैंस के लिए ये खबर दिल तोड़ने वाली थी।
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Satish Kaushik 06 Lesser Known Facts - Photo: Social Media |
काफी वक्त तक तो लोग इस बात पर यकीन ही नहीं कर सके कि सतीश कौशिक जी ने दुनिया छोड़ दी है। पर चूंकि मृत्यु एक साश्वत सत्य है जिससे नज़रें तो फेरी जा सकती हैं। लेकिन इसे नकारा नहीं जा सकता।
Satish Kaushik जी के जीवन की कहानी हम पहले ही आपको बता चुके हैं। लेकिन Satish Kaushik जी के जीवन की कुछ छोटी-छोटी और रोचक कहानियां आप Meerut Manthan के माध्यम से जानेंगे।
पहली कहानी
ये बात तो सभी जानते हैं कि सतीश कौशिक जी को बचपन से ही फिल्मों और फिल्मी कलाकारों में बड़ी दिलचस्पी थी।
लेकिन फिल्मों की वजह से सतीश कौशिक जी की बहुत पिटाई भी हुआ करती थी, ये बात कम लोगों को ही मालूम है।
साल 1965 में जब देवानंद साहब की गाइड फिल्म रिलीज़ हुई थी तो सतीश कौशिक अपनी मां के पांच रुपए चुराकर अपने एक दोस्त के साथ गाइड फिल्म देखने गए थे।
सिनेमा हॉल के बाहर सतीश कौशिक को उनके बड़े भाई ब्रह्मदत्त कौशिक ने देख लिया।
उसके बाद जब सतीश कौशिक घर लौटे तो उनके पिता और भाई ने उनकी खूब पिटाई की। जबकी उनके बड़े भाई ब्रह्मदत्त कौशिक खुद भी गाइड फिल्म देखकर आए थे।
और जब वो सतीश कौशिक को पीट रहे थे तो गाइड फिल्म का ही गीत वहां कौन है तेरा मुसाफिर जाएगा कहां गुनगुना रहे थे।
दूसरी कहानी
सतीश कौशिक जी दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज के स्टूडेंट रह चुके हैं। वहीं पर सतीश कौशिक जी ने पहली दफा स्टेज पर एक्टिंग की थी।
हालांकि उस वक्त तक इन्होंने फिल्मों में काम करने के बारे में सोचा भी नहीं था। और ना ही इन्हें ये पता था कि दिल्ली में ही NSD नाम की कोई संस्था है जो एक्टिंग की प्रोफेशनल ट्रेनिंग देती है।
किरोड़ीमल कॉलेज के ही इनके एक टीचर ने इन्हें NSD के बारे में पहली दफा बताया था और इन्हें NSD में दाखिला लेने के लिए प्रेरित किया था। उनके कहने पर ही सतीश कौशिक जी ने NSD में दाखिला लिया था।
तीसरी कहानी
सतीश कौशिक जी के परिवार वाले नहीं चाहते थे कि ये फिल्म लाइन में जाएं। इसलिए जब सतीश कौशिक जी ने दिल्ली के एनएसडी में दाखिला लेने की बात अपने घर पर बताई थी तो इनके घरवाले बड़े हैरान और नाराज़ हुए थे।
इनके भाईयों और पिता ने इनसे सरकारी नौकरी करने की बात कही। उन्हें लगता था कि सतीश फिल्म लाइन में जाकर बर्बाद हो जाएंगे।
हरियाणा की एक सरकारी कंपनी में सतीश जी का इंटरव्यू तक शेड्यूल हो चुका था। लेकिन वो उस इंटरव्यू में नहीं गए। सतीश कौशिक जी के पिता ने इन्हें कोई छोटा-मोटा बिजनेस करने की सलाह भी दी।
पर चूंकि ये तो ठान चुके थे कि इन्हें फिल्म इंडस्ट्री में ही अपनी दुनिया बसानी है तो इन्होंने अपने घरवालों की कोई भी बात मानने से इन्कार कर दिया।
चौथी कहानी
मुंबई आने के बाद सतीश कौशिक ने सबसे पहले एक नाटक किया था। वो नाटक रंजीत कपूर ने डायरेक्ट किया था और उस नाटक में ये दिग्गज थिएटर अदाकारा और अभिनेत्री शबाना आज़मी की मां शौकत कैफी के पति बने थे। जबकी उस वक्त इनकी उम्र महज़ 24 साल ही थी।
उस नाटक में इनका किरदार एक ऐसा निकम्मा आदमी होता है जो कोई काम नहीं करता और अपनी बेटी से अपने लिए खर्च मांगता है।
एक दिन जब बेटी परेशान होकर मां से कहती है कि पिता जी को समझाओ। वो कोई काम क्यों नहीं करते। तो मां यानि शौकत कैफ़ी कहती हैं कि बेटी करने दे अपने पिता को जो भी वो कर रहे हैं।
आदमी अगर नाकाम हो तो उस काम में हो जिसे वो करना चाहता है। शौकत कैफ़ी का ये डायलॉग सतीश कौशिक जी को हमेशा याद रहा।
क्योंकि कुछ इसी तरह की बात सतीश जी के पिता ने उस वक्त कही थी जब ये नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन ले रहे थे और उनका पूरा परिवार उनके खिलाफ था।
पांचवी कहानी
सतीश कौशिक जी जब मुंबई आए थे तो अपने लिए पहले ही एक नौकरी का इंतज़ाम करके आए थे। वो जानते थे कि मुंबई में जाते ही इन्हें काम नहीं मिल जाएगा।
और ऐसे में अपने रहने और खाने के इंतज़ाम के लिए ही उन्होंने पहले मुंबई में नौकरी करने का फैसला किया था।
सतीश कौशिक जी ने अपने पिता की सिफारिश से मुंबई की एक टेक्सटाइल कंपनी में नौकरी हासिल कर ली थी।
उस टैक्सटाइल कंपनी के मालिक के बेटे से सतीश जी के पिता की बढ़िया दोस्ती थी। पहले दिन जब सतीश कौशिक काम पर पहुंचे तो उनसे साफ-सफाई कराई गई।
हालांकि जल्द ही उन्हें माल लोडिंग और डिलवरी डिपार्मेंट में शिफ्ट कर दिया गया।
मुंबई जाने के बाद लगभग एक साल तक सतीश कौशिक जी ने उस टैक्सटाइल मिल में नौकरी की थी। हालांकि साथ में ही वो पृथ्वी थिएटर में नाटक भी किया करते थे।
छठी कहानी
सतीश कौशिक जी ने पहली दफा साल 1981 में आई फिल्म चक्र में एक्टिंग की थी। उस फिल्म में नसीरूद्दीन शाह और स्मिता पाटिल जैसे दिग्गज कलाकार थे।
चक्र में सतीश कौशिक ने एक बहुत ही छोटा सा किरदार निभाया था। उसी फिल्म के सेट पर पहली दफा इनकी मुलाकात नसीरुद्दीन शाह से हुई थी।
नसीरुद्दीन उस वक्त तक फिल्म इंडस्ट्री में जाना-पहचाना नाम बन चुके थे। नसीरुद्दीन शाह ने जब सतीश जी को सेट पर देखा तो उन्हें लगा कि ये शायद फिल्म की शूटिंग देखने आए होंगे।
उन्होंने सतीश कौशिक जी से पूछा भी कि क्या तुम फिल्म की शूटिंग देखने आए हो? तब सतीश जी ने नसीरुद्दीन शाह को बताया कि मैं इस फिल्म में एक किरदार निभा रहा हूं। ये जानकर नसीरूद्दीन काफी हैरान और खुश भी हुए।
सातवीं कहानी
सतीश कौशिक जी ना सिर्फ एक शानदार एक्टर थे, बल्कि एक बेहतरीन डायरेक्टर भी थे। और सतीश जी के डायरेक्टर बनने की कहानी बड़ी रोचक भी है।
दरअसल, सतीश जी जब फिल्म इंडस्ट्री में नए-नए ही थे तो इन्हें शुरू में बमुश्किल ही काम मिल पाता था।
ऐसे में इन्होंने सोचा कि क्यों ना एक्टिंग के अलावा किसी नामी डायरेक्टर के साथ असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम शुरू कर दिया जाए।
इन्होंने काफी कोशिश की कि कोई डायरेक्टर इन्हें असिस्टेंट डायरेक्टर की हैसियत से अपने साथ रख ले। लेकिन किसी ने इन्हें मौका नहीं दिया।
फिर एक दिन शशि कपूर के एक स्पॉट बॉय ने इन्हें बताया कि शेखर कपूर कोई फिल्म बनाने जा रहे हैं। उनके पास जाओ शायद वो तुम्हें मौका दे दें।
उस दिन के बाद सतीश कौशिक शेखर कपूर से मिलने की कोशिश करने लगे। लेकिन शेखर कपूर से उनकी मुलाकात कई दिनों तक नहीं हो पाई।
किसी तरह सतीश जी ने शेखर कपूर का टेलिफोन नंबर निकाला। लेकिन वो नंबर लगता ही नहीं था।
एक दिन सतीश कौशिक ने सुबह सात बजे उस नंबर को मिलाया। इस दफा वो नंबर मिल गया। फोन उठाने वाले ने बताया कि शेखर कपूर घर पर नहीं हैं।
वो किसी को एयरपोर्ट छोड़ने के लिए गए हैं। सतीश जी ने तुरंत कपड़े पहने और एयरपोर्ट की तरफ निकल गए। जब वो एयरपोर्ट पहुंचे तो वहां उन्होंने शेखर कपूर को एक बेंच पर बैठे देखा।
सतीश जी शेखर कपूर से मिले और उन्हें अपना परिचय दिया। शेखर कपूर को लगा कि शायद सतीश जी भी फ्लाइट से कहीं जा रहे हैं।
जबकी उस वक्त तक सतीश जी कभी हवाई जहाज़ में बैठे भी नहीं थे। शेखर कपूर ने सतीश जी से पूछा भी कि तुम कहां जा रहे हो।
सतीश जी ने बताया कि मैं तो बस आपसे मिलने आया हूं। ये सुनकर शेखर कपूर हैरान रह गए। वो बोले, भला एयरपोर्ट पर कौन ऐसे मिलने आता है।
सतीश जी ने शेखर कपूर से कहा कि मैं आपके साथ असिस्टेंट डायरेक्टर की हैसियत से काम करना चाहता हूं।
उस वक्त शेखर कपूर को सतीश जी की काम के प्रति दीवानगी काफी पसंद आई थी। लेकिन उन्होंने सतीश जी से कहा कि किसी और दिन ऑफिस में मिलने आओ।
दो दिन बाद सतीश जी शेखर कपूर से मिलने उनके ऑफिस पहुंचे। लेकिन शेखर कपूर वहां नहीं मिले।
इस तरह एक हफ्ता गुज़र गया। लेकिन सतीश जी की मुलाकात शेखर कपूर से नहीं हो पाई।
फिर एक दिन अचानक सतीश जी के पास शेखर कपूर ने खुद फोन किया और मिलने के लिए बुलाया।
सतीश जी जब शेखर के ऑफिस पहुंचे तो शेखर ने उन्हें बताया,"मैं एक फिल्म बना रहा हूं जिसका नाम मासूम है। तुम इस फिल्म में मेरे असिस्टेंट रहोगे और एक छोटा सा रोल भी निभाओगे। और तुम्हें 500 रुपए महीना सैलरी भी मिलेगी।"
शेखर कपूर की ये बात सुनकर सतीश कौशिक जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मासूम फिल्म में सतीश कौशिक ने नैनीताल वाले तिवारी जी का रोल निभाया था।
और साथ ही शेखर कपूर के अंडर में डायरेक्शन की बारीकियां भी सीखी थी। और आगे चलकर सतीश कौशिक भी एक शानदार डायरेक्टर बने थे।
आठवीं कहानी
करियर की शुरुआत में जावेद अख्तर ने भी सतीश कौशिक जी की काफी हैल्प की थी। जावेद साहब से सतीश कौशिक जी की मुलाकात शेखर कपूर के ज़रिए हुई थी।
पहली ही मुलाकात में जावेद अख्तर को सतीश कौशिक बहुत पसंद आए। जावेद साहब ने ही सतीश कौशिक जी को फिल्म स्क्रिप्टिंग की बारीकियां सिखाई थी।
ये जावेद अख्तर ही थे जिन्होंने सतीश कौशिक जी को रमेश सिप्पी जी से मिलवाया था। रमेश सिप्पी और सतीश कौशिक जी की पहली मुलाकात का किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है।
हुआ यूं कि जावेद साहब के कहने पर सतीश जी रमेश सिप्पी जी से मिलने उनके ऑफिस पहुंच गए। उन दिनों रमेश सिप्पी अपनी फिल्म सागर को फाइनल करने में बिज़ी थे।
फिल्म की पूरी शूटिंग कंप्लीट हो चुकी थी। रमेश सिप्पी सागर में अलग से एक ऐसा किरदार डालना चाह रहे थे जो थोड़ी कॉमेडी कर सके।
और उसी के लिए जावेद साहब ने सतीश जी को रमेश सिप्पी जी से मिलने भेजा था। उस वक्त तक सतीश कौशिक जाने भी दो यारो फिल्म में काम कर चुके थे।
रमेश सिप्पी से मिलने के बाद सतीश कौशिक ने उन्हें बताया भी कि मैंने जाने भी दो यारों नाम की फिल्म में काम किया है।
रमेश सिप्पी ने उनसे कहा कि एक काम करो। उस फिल्म का वीडियो कैसेट मुझे लाकर दो। मैं वो देखकर डिसाइड करूंगा कि तुम्हें फिल्म में लेना है कि नहीं।
ये वो वक्त था जब इंडिया में वीसीआर और वीसीपी नए-नए ही आए थे। लिहाज़ा सतीश कौशिक के सामने ये एक चुनौती खड़ी हो गई कि आखिर वो कैसे सिप्पी साहब को जाने भी दो यारों फिल्म का वीडियो कैसेट लाकर दें।
इस चुनौती में मदद के लिए सतीश कौशिक जावेद अख्तर के पास पहुंचे। जैसे ही जावेद साहब ने सतीश कौशिक से पूरी बात सुनी उन्होंने सतीश जी को कहा कि भूलकर भी ये गलती मत कर देना। क्योंकि अगर तुम ऐसा करोगे तो रमेश सिप्पी जाने भी दो यारों के किसी और कलाकार को भी चुन सकते हैं।
ऐसा हुआ तो तुम्हारा तो पत्ता ही कट जाएगा। सतीश जी ने जावेद साहब की बात मानी और सिप्पी साहब को जाकर कह दिया कि मेरे पास तो वीडियो फिलहाल नहीं है।
टथोड़ी देर सोच-विचारने के बाद रमेश सिप्पी ने फाइनली सतीश कौशिक को सागर फिल्म के बटुक लाल के रोल के लिए साइन कर ही लिया।
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