Top Indian Movies of 1923 | साल 1923 में बनी कुछ प्रमुख भारतीय फिल्में

Top Indian Movies of 1923. Meerut Manthan पर हमने कुछ महीनों पहले एक स्पेशल सीरीज़ शुरू की थी जिसमें हम साल के हिसाब से भारत की प्रमुख फिल्मों की एक लिस्ट अपने व्यूवर्स संग शेयर करते हैं। इस सीरीज़ के शुरुआती दो वीडियोज़ में हमने साल 1921 और साल 1922 में भारत में बनी प्रमुख फिल्मों की जानकारी अपने व्यूवर्स को दी थी। 

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Actress Patience Cooper - Photo: Social Media

आज हम अपने पाठकों को साल 1923 में भारत में सिनेमा के क्षेत्र में हुए कुछ अहम घटनाक्रमों के बारे में बताएंगे। साथ ही उस साल की कुछ चर्चित फिल्मों की जानकारी भी हम इस Article के ज़रिए देंगे। Top Indian Movies of 1923

पहले बात करते हैं साल 1923 में भारतीय सिनेमा जगत में घटे कुछ बड़े घटनाक्रमों के बारे में। चूंकि इस वक्त तक भारत में टॉकी फिल्मों की शुरुआत नहीं हुई थी तो इस साल बनी सभी फिल्में मूक फिल्में ही थी। यानि इन फिल्मों में किसी तरह की आवाज़ या डायलॉग नहीं होते थे। इस साल बनी 70 प्रतिशत फिल्में या तो माइथोलॉजिकल फिल्में थी। या फिर डिवोशनल फिल्में थी।

जहां माइथोलॉजिकल फिल्मों में भगवान को रिप्रज़ेंट किया जाता था। तो वहीं डिवोशनल फिल्मों में किसी भक्त की कहानी बताई जाती थी। अन्य तीस प्रतिशत में साल 1923 में ऐतिहासिक और सामाजिक विषयों पर बनी फिल्में थी।

1923 में ही J.F.Madan यानि जमशेद जी फ्रामजी मादन की मृत्यु हुई थी। जे.एफ मादन ने ही सन 1919 में मादन थिएटर्स की नींव रखी थी। जेएफ मादन की कहानी बड़ी ही रोचक है और इनकी कहानी का एक पूरा वीडियो फिर किसी दिन आपको किस्सा टीवी पर देखने को मिलेगा। जेएफ मादन की मृत्यु के बाद उनके बेटे जेेजे मादन ने मादन थिएटर्स की कमान संभाल ली।  

सन 1923 में ही वीके कृष्णमूर्ति का जन्म हुआ था जो आगे चलकर भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में सिनेमैटोग्राफी का एक बहुत बड़ा नाम बने थे। गुरूदत्त की जाल फिल्म से अपना सिनेमैटोग्राफी करियर शुरू करने वाले वीके कृष्णूर्ति ने अपने करियर में कागज़ के फूल(1959), साहिब बीबी और गुलाम(1962), नास्तिक(1983) जुगनू(1973), ज़िद्दी(1964) और चौदहवीं का चांद(1960) जैसी फिल्मों की सिनेमैटोग्राफी की थी। 7 अप्रैल 2014 को 90 साल की उम्र में वीके कृष्णमूर्ति का निधन हुआ था।
चलिए अब बात करते हैं साल 1923 की कुछ प्रमुख फिल्मों के बारे में। 

1923 की सबसे चर्चित फिल्म थी नूरजहां जो कि मादन थिएटर्स लिमिटेड के बैनर तले बनी थी और जिसे जेजे मादन ने प्रोड्यूस और डायरेक्ट किया था। इस फिल्म में पेशेंस कूपर, अल्बर्टीना, मैंचेरशा चैपगर और इज़रा मीर जैसे कलाकारों ने काम किया था। एक्ट्रेस पेशेंस कूपर ने इस फिल्म में मुगल शासक जहांगीर की पत्नी नूरजहां का किरदार निभाया था।

1923 की दूसरी सबसे चर्चित फिल्म थी पत्नी प्रताप जिसमें अभिनेत्री पेशेंस कूपर नज़र आई थी। ये फिल्म भी मादन थिएटर्स लिमिटेड के बैनर तले बनी थी और इसे जेजे मादन ने ही प्रोड्यूस व डायरेक्ट किया था। इस फिल्म की सबसे खास बात ये है कि ये पहली भारतीय फिल्म थी जिसमें किसी एक्ट्रेस ने डबल रोल निभाया था। अभिनेत्री पेशेंस कूपर ने इस फिल्म में मुख्य हिरोइन और उसकी छोटी बहन का किरदार निभाया था।

साल 1923 की तीसरी चर्चित फिल्म थी सावित्री सत्यवान और इस फिल्म को भारत की पहली इंटरनेशनल को-प्रोडक्शन फिल्म का दर्जा हासिल है। इस फिल्म को डायरेक्ट किया था जॉर्जियो मन्निनी ने और रोम की फिल्म कंपनी सिने ने भारत की फिल्म कंपनी मादन थिएटर्स लिमिटेस के साथ मिलकर ये फिल्म बनाई थी। उस ज़माने की प्रख्यात इटैलियन अदाकारा रीना डे लिगुओरो ने इस फिल्म में सावित्री और इटली के ही एंजेलो फरारी ने फिल्म में सत्यवान का किरदार जिया था। 

1923 की चौथी सबसे चर्चित फिल्म थी सिंहगढ़ जो कि महाराष्ट्र फिल्म कंपनी के बैनर तले बनी थी और इस फिल्म को बाबूराव पेंटर ने डायरेक्ट किया था। बाबूराव पेंटर उस ज़माने के बहुत बड़े और नामी फिल्म डायरेक्टर थे। ये फिल्म भी उस वक्त तक महाराष्ट्र फिल्म कंपनी की सबसे महंगी फिल्म थी। 

इस फिल्म में बालासाब यादव, कमलादेवी, झुंझाराव पवार और वी शांताराम ने काम किया था। नामी मराठी लेखक हरि नारायण आप्टे के ऐतिहासिक नॉवेल गढ़ आला पन सिम्हा गेला पर सिंहगढ़ फिल्म की कहानी बेस्ड थी। फिल्म में शिवाजी महाराज और तानाजी मालासुरे की कहानी बताई गई है।

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