Chalti Ka Naam Gaadi 1958 Trivia | ये फिल्म बनने की 10 अनसुनी और बहुत ही रोचक कहानियां
Chalti Ka Naam Gaadi 1958 Trivia. 1 जनवरी सन 1958 को रिलीज़ हुई थी तीन भाईयों की फिल्म चलती का नाम गाड़ी। जी हां, एक जनवरी यानि नए साल के दिन अशोक कुमार, अनूप कुमार और किशोर कुमार की इस ज़बरदस्त कॉमेडी फिल्म ने सिनेमाघरों में दस्तक दी थी।
किशोर कुमार और मधुबाला की रोमांटिक कैमिस्ट्री और गांगुली ब्रदर्स की हल्की-फुल्की कॉमेडी ने इस फिल्म को सुपरहिट करा दिया था। फिल्म की कहानी और फिल्म का म्यूज़िक, दोनों ही दर्शकों को खूब पसंद आए थे। फिल्म के डायरेक्टर थे सत्येन बोस और ये फिल्म प्रोड्यूस की थी किशोर कुमार ने।
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Chalti Ka Naam Gaadi 1958 Trivia - Photo: Social Media |
55 लाख रुपए के बजट में बनी चलती का नाम गाड़ी फिल्म ने वर्ल्डवाइड ढाई करोड़ रुपए की कमाई की थी। और इस तरह दिलीप कुमार की मधुमति के बाद चलती का नाम गाड़ी 1958 की दूसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई थी।
गांगुली ब्रदर्स और मधुबाला के अलावा चलती का नाम गाड़ी फिल्म में वीना, केएन सिंह, मोहन चोटी, सज्जन और असित सेन ने भी अहम किरदार निभाए थे। जबकी हेलन और कुक्कू ने एक शानदार डांस परफॉर्मेंस दी थी।
फिल्म में कुल 8 गाने थे जिन्हें किशोर कुमार, आशा भोंसले, मन्ना डे और सुधा मल्होत्रा ने अपनी आवाज़ दी थी। जबकी इन गानों को सुरों से सजाया था महान संगीतकार एसडी बर्मन ने। फिल्म के गीत लिखे थे मजरूह सुल्तानपुरी ने।
Meerut Manthan आज आपको चलती का नाम गाड़ी फिल्म की मेकिंग से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां बताएगा। आखिर कैसे किशोर कुमार के दिमाग में ये फिल्म बनाने का आइडिया आया था? क्यों किशोर कुमार चाहते थे कि ये फिल्म फ्लॉप हो जाए? इस फिल्म का वो कौन सा गाना था जिसकी शूटिंग के दौरान मधुबाला और किशोर कुमार के बीच मुहब्बत का बीज अंकुरित होने लगा था? ये सभी और ऐसी ही और भी कई दिलचस्प कहानियां आज हम और आप जानेंगे। Chalti Ka Naam Gaadi 1958 Trivia.
पहली कहानी
चलती का नाम गाड़ी फिल्म के फ्लॉप होने की दुआ किशोर कुमार इसलिए किया करते थे ताकि वो अपनी इन्कम में घाटा दिखा सकें और अपने ऊपर चल रहे चालीस लाख रुपए के इन्कम टैक्स के एक मुकदमे से छुटकारा पा सकें।
इसी फिल्म के साथ किशोर कुमार ने लूकोचुरी नाम की एक बंगाली फिल्म भी बनाई थी। किशोर कुमार को पूरा यकीन था कि ये दोनों फिल्में फ्लॉप होंगी। लेकिन सरप्राइज़िंगली, दोनों ही फिल्में सुपरहिट हो गई। किशोर कुमार को इन फिल्मों की सफलता से बड़ा दुख हुआ।
खुद को इन्कम टैक्स के मुकदमे से बचाने के लिए किशोर कुमार ने चलती का नाम गाड़ी फिल्म के सभी राइट्स अपने सेक्रेटरी अनूप शर्मा को दे दिए। हालांकि ये सब करने के बाद भी किशोर कुमार का इन्कम टैक्स का वो मुकदमा अगले चालीस सालों तक चलता रहा।
दूसरी कहानी
चलती का नाम गाड़ी का गीत पांच रुपैया बारह आना आज भी लोग मज़े से सुनते हैं। फिल्म में ये गाना कैसे आया, इसके पीछे एक छोटी लेकिन मज़ेदार कहानी है। ये उन दिनों की बात है जब किशोर कुमार फिल्म लाइन में नहीं आए थे और इंदौर के क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ा करते थे।
किशोर कॉलेज के हॉस्टल में ही रहा करते थे और कॉलेज कैंटीन से ही खाया-पिया करते थे। कॉलेज कैंटीन वाला जिसे प्यार से किशोर भईया कहते थे, वो कई दफा इन्हें उधार भी दे दिया करता था।
फिर जब किशोर कुमार कॉलेज छोड़ मुंबई आ गए तो कैंटीन वाले का पांच रुपैया बारह आना उन पर उधारी रह गया। इसी उधारी को याद करके ही किशोर कुमार ने चलती का नाम गाड़ी फिल्म में पांच रुपैया बारह आना गीत डलवाया था।
तीसरी कहानी
चलती का नाम गाड़ी फिल्म में किशोर कुमार के दोनों बड़े भाईयों अशोक कुमार और अनूप कुमार ने काम किया था। हालांकि जब किशोर कुमार ने अपने भाईयों से इस फिल्म में काम करने को कहा था तो शुरू में दोनों ने ही मना कर दिया था।
अशोक कुमार को तो इस फिल्म की कहानी ज़रा भी पसंद नहीं आ रही थी। लेकिन फिर जब किशोर कुमार ने कहा कि वो इस फिल्म में अपने पिता की गाड़ी का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो पिता को ऋद्धांजलि देने के इरादे से अशोक कुमार ने इस फिल्म में काम करने के लिए हां कह दिया और अनूप कुमार को भी मना लिया।
चौथी कहानी
चलती का नाम गाड़ी फिल्म ही वो फिल्म है जिससे मधुबाला और किशोर कुमार के बीच मुहब्बत पनपी और दोनों ने आगे चलकर शादी भी कर ली। कहा जाता है कि इस फिल्म के गीत हाल कैसा है जनाब का की शूटिंग महाबलेश्वर में हो रही थी।
वहीं पर किशोर कुमार का ह्यूमरस नेचर मधुबाला को पसंद आने लगा था। मधुबाला किशोर कुमार से इश्क करने लगी और आखिरकार सन 1960 में मधुबाला और किशोर कुमार ने शादी कर ली।
पांचवी कहानी
चलती का नाम गाड़ी फिल्म के गीत हाल कैसा है जनाब का को शूट करने के दौरान ही फिल्म के कैमरामैन आलोक दासगुप्ता महाबलेश्वर की झील में गिर पड़े थे। और चूंकि आलोक दासगुप्ता को तैरना नहीं आता था तो वो झील में डूबने लगे।
आलोक दासगुप्ता को डूबते देख मधुबाला बुरी तरह घबरा गई। आलोक दासगुप्ता को तो किसी तरह बचा लिया गया। लेकिन मधुबाला की घबराहट कम नहीं की जा सकी।
मधुबाला की खातिर किशोर कुमार ने कुछ दिनों के लिए गाने की शूटिंग रोक दी। कहा जाता है कि किशोर कुमार के इसी कदम की वजह से ही मधुबाला उनसे इंप्रैस हो गई थी।
छठी कहानी
यूं तो किशोर कुमार चाहते थे कि चलती का नाम गाड़ी फ्लॉप हो जाए। लेकिन ये फिल्म ज़बरदस्त हिट हो गई तो सालों बाद यानि 1974 में किशोर कुमार ने इस फिल्म का सीक्वेल भी बनाया था। उस सीक्वल का नाम था बढ़ती का नाम दाढ़ी और उस फिल्म में अशोक कुमार ने भी काम किया था।
हालांकि किशोर कुमार के दूसरे भाई अनूप कुमार उस फिल्म में नहीं नज़र आए थे। लेकिन नामी संगीतकार बप्पी लाहिरी ने उस फिल्म में भोंपू नाम का किरदार निभाया था। और एज़ एन एक्टर ये बप्पी लाहिरी की पहली फिल्म थी। इसके बाद बप्पी लाहिरी ने इक्का-दुक्का फिल्मों में गेस्ट रोल निभाए थे।
सातवी कहानी
चलती का नाम गाड़ी फिल्म के डायरेक्शन की ज़िम्मेदारी किशोर कुमार ने बंगाली डायरेक्टर कमल मजूमदार को सौंपी थी। लेकिन फिल्म के मुहर्त शॉट से ठीक 3 घंटे पहले कमल मजूमदार ने ये कहकर फिल्म डायरेक्ट करने से मना कर दिया कि वो तीन भाईयों को एक साथ डायरेक्ट नहीं कर पाएंगे।
किशोर कुमार फटाफट सत्येन बोस के पास गए और उन्हें ये फिल्म डायरेक्ट करने को कहा। सत्येन बोस ने शुरू में कुछ देर तक आनाकानी की। लेकिन आखिरकार वो ये फिल्म डायरेक्ट करने को मान ही गए।
और वो इसलिए क्योकि सत्येन बोस इन तीनों भाईयों के साथ 1957 की फिल्म बंदी डायरेक्ट कर चुके थे। वो जानते थे कि इन भाईयों को कैसे हैंडल करना है।
आठवी कहानी
चलती का नाम गाड़ी फिल्म के क्लाइमैक्स में एक सीन है जिसमें किशोर कुमार एक कार रेस में हिस्सा लेते हैं। कार रेस का ये सीन मुंबई के जुहू फ्लाइंग क्लब के रनवे पर शूट किया गया था।
और इस सीन में हमें जो लोगों की भीड़ दिखाई देती है वो वास्तव में जूनियर आर्टिस्ट नहीं, आम लोग हैं जो कि फिल्म की शूटिंग देखने आए थे। किशोर कुमार उस रेस में हिस्सा लेते हैं और मस्ती-मज़ाक में जीत भी जाते हैं।
यहां आपको ये भी बता देते हैं कि इस फिल्म में जिस कार का इस्तेमाल किया गया है वो किशोर कुमार के पिता श्री कुंजालाल गांगुली की कार थी। और उसका मॉडल था Ford Model A.
नौंवी कहानी
चलती का नाम गाड़ी फिल्म की सिनेमैटोग्राफी का ज़िम्मा संभाला था आलोक दासगुप्ता ने। और इस फिल्म की शूटिंग के दौरान आलोक दासगुप्ता की उम्र महज़ 23 साल ही थी।
यानि आलोक दासगुप्ता उस वक्त फिल्म इंडस्ट्री में नए नए ही आए थे। शुरू में डायरेक्टर सत्येन बोस आलोक दासगुप्ता के साथ काम नहीं करना चाहते थे। वो चाहते थे कि उन्हें कोई ट्रेंड सिनेमैटोग्राफर मिलना चाहिए।
लेकिन किशोर कुमार ने सत्येन बोस से गुज़ारिश की कि इस लड़के को एक मौका देकर देखिए। सत्येन बोस ने उनकी बात मान ली। और फिर जब फिल्म का गीत एक लड़की भीगी भागी सी को आलोक दासगुप्ता ने शूट किया तो सत्येन बोस भी उनके कायल हो गए।
दसवीं कहानी
चलती का नाम गाड़ी फिल्म का सबसे पॉप्युलर गीत बाबू समझो इशारे है। इस गीत की शूटिंग के दौरान आलोक दासगुप्ता को बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। वो पहली दफा चलती कार के साथ शूटिंग कर रहे थे।
इस गाने को शूट करते वक्त एक बार तो आलोक दासगुप्ता कार से ही टकरा गए थे और उन्हें हल्की सी चोट भी आई थी। किशोर कुमार को ये फिल्म बनाने की प्रेरणा कैसे मिली ये जानना भी आपके लिए रोचक होगा।
दरअसल, अपनी युवावस्था में किशोर कुमार अक्सर अपने एक्टर भाई अशोक कुमार से मिलने अपने पिता की कार लेकर खांडवा से मुंबई जाया करते थे। मुंबई से खंडवा तक की दूरी तकरीबन 600 किलोमीटर है और किशोर कुमार को कार से ये सफर तय करने में बहुत मज़ा आता था।
उन्हीं दिनों किशोर कुमार ने सोच लिया था कि जब वो फिल्म इंडस्ट्री में आएंगे तो अपने पिता की कार के साथ कोई फिल्म ज़रूर बनाएंगे। और आखिरकार उनका ये सपना 1958 में चलती का नाम गाड़ी फिल्म से पूरा हुआ।
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