Amrish Puri Biography | India में जन्मा खलनायकों का वो खलनायक जिसे Hollywood वाले भी सलाम करते थे

Amrish Puri. देश में जब भी सिनेमा का ज़िक्र कहीं होता है, तो बिना अमरीश पुरी का नाम लिए वो ज़िक्र कभी पूरा नहीं माना जाता। 

एक ऐसा रौबीला विलेन, जिसकी शख्सियत देखकर ऐसा लगता है मानो ऊपर वाले ने उसे पैदा ही फिल्मों में विलेन बनने के लिए किया था। 

अपने लंबे चौड़े डील डौल और बेहद कड़क आवाज़ से, अमरीश पुरी ने बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक अपनी एक्टिंग का डंका बजवाया। 

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Amrish Puri Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan की आज की पेशकश समर्पित है Amrish Puri को। वो Amrish Puri जिसने रंगमंच और सिनेमा, हर जगह अपने अभिनय से कला प्रेमियों को अपना फैन बना लिया। 

Amrish Puri का शुरुआती जीवन

22 जून 1932. पंजाब के नवांशहर के रहने वाले लाला निहाल सिंह की पत्नी वेद कौर ने अपनी चौथी संतान और तीसरे बेटे को जन्म दिया। बड़े प्यार से इस बच्चे का नाम रखा गया अमरीश। अमरीश पुरी से बड़े इनके दो भाई, चमन पुरी और मदन पुरी थे। 

एक बड़ी बहन थी जिनका नाम चंद्रकांता था। इनके बाद इनके माता-पिता के घर एक बेटे ने और जन्म लिया जिनका नाम रखा गया हरीश पुरी।

जब भाईयों ने किया नाउम्मीद

अमरीश पुरी की शुरूआती पढ़ाई पंजाब में ही हुई। बाद में आगे की पढ़ाई के लिए इनके पिता ने इनका दाखिला शिमला के बीएम कॉलेज में करा दिया। यहां अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अमरीश पुरी फिल्मों में हीरो बनने का सपना लेकर मुंबई आ गए। 

इनके दोनों बड़े भाई चमन पुरी और मदन पुरी इनसे काफी पहले ही फिल्म इंडस्ट्री में आ चुके थे। इन्हें उम्मीद थी कि बड़े भाई इनकी मदद ज़रूर करेंगे। 

लेकिन इनके दोनों भाईयों ने इनसे साफ कह दिया। कि फिल्मों में काम करना है तो तुम्हें अपना संघर्ष खुद करना पड़ेगा। अगर तुम्हारे अंदर काबिलियत होगी तो यकीनन तुम कामयाब हो जाओगे।

डायरेक्टरों ने भी किया निराश

भाईयों के जवाब देने पर अमरीश पुरी ने फिल्म डायरेक्टरों से मिलना शुरू कर दिया। लेकिन जिस डायरेक्टर के पास भी ये हीरो का रोल मांगने जाते वो इन्हें साफ इन्कार कर देता। 

कई डायरेक्टर इनसे साफ कह देते कि आप कभी भी हीरो नहीं बन पाएंगे। इसी दौरान एक डायरेक्टर ने इनसे ये भी कहा कि आप हीरो तो नहीं बन पाएंगे, लेकिन जैसा आपका चेहरा-मोहरा है, आप खलनायक ज़रूर बन सकते है। 

हीरो बनने का ख्वाब लेकर मुंबई आए अमरीश पुरी को ये बात बेहद बुरी लगी। उन्होंने तभी फैसला कर लिया कि अब वो कभी भी एक्टिंग नहीं करेंगे और ज़िंदगी के गुज़ारे लिए किसी नौकरी की तलाश करने लगे।

सरकारी नौकरी और थिएटर किया साथ-साथ

कुछ मेहनत के बाद अमरीश पुरी को सरकारी नौकरी मिल गई। ये कर्मचारी राज्य बीमा निगम में नौकरी करने लगे। लेकिन एक्टिंग इनके दिल में बसी थी। 

तो इनका रुझान नौकरी जॉइन करने के कुछ सालों बाद ही फिर से एक्टिंग की तरफ होने लगा। अपने शौक को पूरा करने के लिए ये नाटक करने लगे। 

दरअसल, नौकरी के दौरान इनकी दोस्ती उस दौर के थिएटर के बड़े नाम इब्राहिम अल्काज़ी से हो गई थी। उन्होंने ही इन्हें थिएटर करने की सलाह दी थी। 

इब्राहिम अल्काज़ी ने इनसे कहा था कि अपने शौक को कभी मरने मत दो। इसलिए एक्टिंग करनी है तो थिएटर से जुड़ो और नाटकों में काम करो। इसके बाद साल 1961 में पहली दफा अमरीश पुरी ने रंगमंच की दुनिया में कदम रखा।

पंडित सत्यदेव दुबे बने अमरीश पुरी के गुरू

रंगमंच की दुनिया में आने के बाद अमरीश पुरी की जान-पहचान महान नाटककार सत्यदेव दुबे और गिरीश कर्नाड से भी हुई। अमरीश पुरी असिस्टेंट के तौर पर इनके नाटकों में काम करने लगे। 

सत्यदेव दुबे की शख्सियत से तो अमरीश पुरी इतने प्रभावित थे कि उन्होंने कई इंटरव्यूज़ में ये कहा था कि अगर वो किसी को अपना गुरू मानते हैं तो वे पंडित सत्यदेव दुबे जी ही हैं। 

अमरीश पुरी ने सत्यदेव दुबे के कई नाटकों में काम किया था। पृथ्वी थिएटर में भी अमरीश पुरी को कई नाटकों में काम करने का मौका मिला और इनकी एक्टिंग की खूब सरहाना भी हुई। 

साल 1979 में अमरीश पुरी को नाटकों में इनकी शानदार अदाकारी के लिए संगीत नाटक एकेडमी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया जो कि नाटकों की दुनिया का सबसे बड़ा अवॉर्ड है।

और शुरू हो गया Amrish Puri का फिल्मी सफर

अमरीश पुरी जब नाटकों से मशहूर होने लगे तो इन्हें टीवी विज्ञापनों में और कुछ फिल्मों में छोटे-छोटे रोल्स मिलने लगे। इनकी नौकरी भी अब तक चल ही रही थी। 

अमरीश पुरी की पहली फिल्म थी सत्यदेव दुबे के डायरेक्शन में बनी मराठी फिल्म शांतता कोर्ट चालू आहे। अमरीश पुरी इस फिल्म में एक अंधे गायक के रोल में नज़र आए थे। 

1971 में रिलीज़ हुई इस फिल्म में अमरीश पुरी रेलवे स्टेशन पर गाना गाते अंधे भिखारी के किरदार में थे। हालांकि अधिकतर लोग कहते हैं कि इनकी पहली फिल्म रेशमा और शेरा है जो कि इसी साल यानि 1971 में रिलीज़ हुई थी।

लेकिन सच तो ये है कि ये इनकी पहली ऐसी हिंदी फिल्म थी जिसमें इनको रहमत खान का एक छोटा, लेकिन मजबूत रोल मिला था। वरना इससे पहले ही ये साल 1970 में देव आनंद की फिल्म प्रेम पुजारी में एक छोटे-मोटे गुंडे के किरदार में नज़र आ चुके थे।

ऐसे मिलनी शुरू हुई अमरीश पुरी को शोहरत

अगले कुछ सालों तक अमरीश पुरी फिल्मों में ऐसे ही छोटे-मोटे रोल किए जा रहे थे। लेकिन साल 1980 में बोनी कपूर ने इन्हें अपनी फिल्म हम पांच में मेन विलेन का किरदार दिया। 

ये फिल्म एक बड़ी हिट साबित हुई। वीर प्रताप सिंह के खूंखार किरदार में अमरीश पुरी की एक्टिंग के लोग कायल हो गए। यही वो रोल था जब पूरी दुनिया ये बात जान गई कि अमरीश पुरी कितने धांसू एक्टर हैं। 

इस फिल्म के दो सालों बाद रिलीज़ हुई सुभाष घई की फिल्म विधाता में ये दिलीप कुमार, शम्मी कपूर और संजीव कुमार जैसे बॉलीवुड के चोटी के कलाकारों के साथ नज़र आए। 

इनके किरदार का नाम था जगावर चौधरी, जो कि एक स्मगलर था। इसी साल आई फिल्म शक्ति में ये एक बार फिर से दिलीप कुमार के साथ नज़र आए। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन भी मुख्य भूमिका में थे।

40 की उम्र में बने स्टार

अगले साल यानि सन 1983 में सुभाष घई ने अमरीश पुरी को फिर से काम दिया। ये फिल्म थी हीरो जिसमें जैकी श्रॉफ बतौर हीरो लॉन्च हो रहे थे। इस रोमांटिक लव स्टोरी में अमरीश पुरी पाशा नाम के एक खूंखार विलेन बने थे।

आज भी अमरीश पुरी के सबसे बेस्ट किरदारों में इस किरदार को गिना जाता है। खुद सुभाष घई को इस फिल्म में अमरीश पुरी की एक्टिंग इतनी ज़्यादा पसंद आई कि उनकी अगली लगभग सभी फिल्मों में ये परमानेंट विलेन बन गए। 

चालीस की उम्र में ही सही, अमरीश पुरी के अभिनय की गाड़ी चल निकली और इन्होंने इसके बाद फिर कभी पलटकर नहीं देखा। अब तक ये अपनी नौकरी से भी इस्तीफा दे चुके थे।

जब अमरीश पुरी को याद आया वो दिन

सन 1980 से लेकर 1990 के बीच बनी लगभग हर बड़ी एक्शन फिल्म में अमरीश पुरी ही विलेन नज़र आए। 20 साल के लंबे संघर्ष के बाद अमरीश पुरी उस मुकाम पर पहुंच गए थे जिस पर वो हमेशा पहुंचना चाहते थे। 

एक इंटरव्यू में अमरीश पुरी ने बताया था कि जब वो मशहूर हो गए तो एक दिन उन्हें वो कास्टिंग डायरेक्टर याद आया जिससे वो 21 साल की उम्र में मिले थे। 

उस कास्टिंग डायरेक्टर ने ही इनसे कहा था कि तुम्हें हीरो नहीं विलेन बनने की कोशिश करनी चाहिए। क्योकि तुम्हारा चेहरा-मोहरा ऐसा ही है। 

उस वक्त भले ही अमरीश पुरी को उस कास्टिंग डायरेक्टर पर बेहद गुस्सा आया था लेकिन बाद में अमरीश पुरी ने उस कास्टिंग डायरेक्टर के प्रति अपना सम्मान ज़रूर ज़ाहिर किया था।

सबके सामने Amrish Puri ने Aamir Khan को डांटा था

अमरीश पुरी से जुड़ा ये किस्सा बहुत ही कम लोगों को मालूम है कि उन्होंने एक दफा आज के ज़माने के सुपरस्टार आमिर खान को बड़ी बुरी तरह से डांटा था। 

दरअसल, ज़बरदस्त नाम की एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी। फिल्म में संजीव कुमार, सनी देओल, कुलुभूषण खरबंदा जैसे बड़े कलाकार थे। आमिर खान इस फिल्म में नासिर हुसैन के असिस्टेंट डायरेक्टर थे। 

अपने एक सीन में अमरीश पुरी बार-बार कुछ भूल रहे थे। आमिर खान बार-बार अमरीश पुरी को टोक रहे थे कि सर आपने पिछला सीन ऐसे किया था और अब आपको ऐसा करना है। अमरीश पुरी को आमिर खान का बार-बार उन्हें समझाना रास नहीं आया। 

अमरीश पुरी आमिर पर बुरी तरह से भड़के और उन्होंने सबके सामने आमिर खान को बेहद पुरी तरह से डांटा। आमिर खान बिना कुछ बोले चुपचाप गर्दन झुकाए खड़े रहे। 

हालांकि कुछ घंटों बाद जब अमरीश पुरी का गुस्सा शांत हुआ तो उन्होंने आमिर को पास बुलाकर उनसे माफी भी मांगी। इससे पता चलता है कि अमरीश पुरी कितने बड़े दिल वाली शख्सियत थे।

यूं बने थे खलनायकों के खलनायक

अपनी भारी आवाज़ के चलते अमरीश पुरी को बॉलीवुड का खलनायकों का खलनायक कहा गया था। लेकिन इस बात को भी लोग कम ही जानते हैं कि अपनी आवाज़ को मजबूत बनाने के लिए हर दिन अमरीश पुरी दो से तीन घंटे तक बोलने का अभ्यास किया करते थे। 

इस दौरान अमरीश पुरी अपनी डायलॉग डिलीवरी और अपनी वॉइस स्पीच पर खूब मेहनत करते थे। यही वजह है कि केवल आवाज़ से ही ये अपने हिस्से की आधी एक्टिंग कर दिया करते थे। बाकी का बचा काम इनका खूंखार चेहरा और उस चेहरे में लगी बड़ी-बड़ी आंखें तथा लंबी-चौड़ी कदकाठी कर देती थी।

हॉलीवुड में भी बजाया अपने हुनर का डंका

अमरीश पुरी ने केवल भारतीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय फिल्म इंडस्ट्री में भी खूब नाम कमाया। इनकी पहली इंटरनेशनल फिल्म थी साल 1982 में रिलीज़ हुई गांधी। 

बेन किंग्सले इस फिल्म में गांधी बने थे तो अमरीश पुरी दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी के सहयोगी रहे खान के किरदार में नज़र आए। और जिसने भी वो फिल्म देखी है वो इस बात से इन्कार नहीं कर सकता, कि अमरीश पुरी ने बड़ी खूबसूरती से खान का किरदार निभाया था। 

इस रोल को करने के बाद अमरीश पुरी का चर्चा हॉलीवुड में भी खूब होने लगा। मशहूर अमेरिकी डायरेक्टर स्टीवन स्पीलबर्ग भी इनकी अदाकारी के कायल हो गए।

जब स्टीवन स्पीलबर्ग को दिया टका सा जवाब

स्पीलबर्ग अमरीश पुरी की अदाकारी के इस कदर दीवाने हुए कि वो उन्हें अपनी फिल्म इंडियाना जोन्स एंड द टेंपल ऑफ डूम में हर हाल में लेना चाहते थे। 

स्पीलबर्ग ने अमरीश पुरी को अमेरिका आने का न्यौता दिया, ताकि उनका स्क्रीन टेस्ट लिया जा सके। अमरीश पुरी को स्पीलबर्ग की ये बात पसंद नहीं आई। 

उन्होंने मना कर दिया और स्पीलबर्ग को जवाब भिजवाया कि अगर स्क्रीन टेस्ट ही देना है तो फिर मैं अमेरिका क्यों आऊं। स्पीलबर्ग खुद यहां आ जाएं। 

स्पीलबर्ग को भारत आना ही पड़ा

स्टीवन स्पीलबर्ग को अमरीश पुरी का ये अंदाज़ भी बेहद पसंद आया और वो उनका स्क्रीन टेस्ट लेने खुद अमेरिका से मुंबई आए। और इस तरह 1984 में रिलीज़ हुई इस फिल्म में मोलाराम के किरदार में अमरीश पुरी नज़र आए। 

इस फिल्म में अमरीश पुरी के लुक को बेहद पसंद किया गया। अमरीश पुरी इस फिल्म में बाल्ड लुक यानि बिना बालों के नज़र आए थे। खुद अमरीश पुरी को भी अपना ये लुक बेहद पसंद आया था। और उन्होंने इस लुक को अपना परमानेंट लुक बना लिया। 

किसी ने जब पूछा कि आखिर क्यों अब वे बाल नहीं रखते तो उन्होंने जवाब दिया, इस लुक के साथ सबसे अच्छी बात ये है कि इस पर किसी भी तरह की विग सेट की जा सकती है। इसके अलावा मैं इस लुक में काफी खूंखार भी दिखता हूं। इसिलिए अब मैं बाल नहीं रखूंगा।

मोगैम्बो ने कर दिया अमर

अमरीश पुरी ने अपने करियर में 400 से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया। इनमें से अधिकतर में उन्होंने विलेन का किरदार ही निभाया। लेकिन इनका सबसे खतरनाक और आइकॉनिक किरदार मिस्टर इंडिया के मोगैम्बो को ही माना जाता है। 

अमरीश पुरी को ये रोल मिलने का किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है। दरअसल, फिल्म के डायरेक्टर शेखर कपूर पहले अनुपम खेर को इस रोल के लिए लेना चाहते थे। 

लेकिन काफी सोचने के बाद भी अनुपम के नाम पर उनका दिल मान नहीं रहा था। फिर उन्होंने अपने ज़ेहन में अमरीश पुरी के चेहरे को रखकर मोगैम्बो के किरदार को सोचा। बस फिर क्या था। 

शेखर कपूर को अपनी फिल्म मिस्टर इंडिया का विलेन आखिरकार मिल गया। वो अमरीश पुरी के पास पहुंचे और उन्होंने फिल्म की कहानी सुनाकर अमरीश पुरी से पूछा कि क्या वो इस कहानी और विलेन मोगैम्बो के रोल से खुश हुए? 

इस पर अमरीश पुरी ने उन्हें जवाब दिया, मोगैम्बो खुश हुआ। और इस तरह ये डायलॉग फिल्म का हिस्सा बना जो कि फिल्म की रिलीज़ के बाद अमर हो गया। आज भी बॉलीवुड के बेस्ट विलेन रोल्स का ज़िक्र कहीं चलता है तो मोगैम्बो को सबसे ऊपर ही रखा जाता है।

अमरीश पुरी का ये डायलॉग इतना ज़्यादा पॉप्युलर हुआ था कि जब भी वे कहीं किसी फंक्शन या पार्टी में जाते थे तो लोग उनसे ये डायलॉग सुनाने की मांग करते थे। और अमरीश पुरी भी खुशी-खुशी ये डायलॉग अपने फैंस को सुनाते थे।

इनके मार्मिक किरदार भी बहुत चर्चित हुए

भले ही अमरीश पुरी की पहचान दुनिया के सबसे बेस्ट विलेन्स में से एक की है, लेकिन अपने फिल्मी करियर में इन्होंने ऐसे-ऐसे किरदारों को भी जिया है जिन्हें देखकर दर्शक हसं-हंसकर लोट पोट हुए और दर्शकों की आंखों से आंसू भी छलके। चाची 420 में अमरीश पुरी की कॉमेडी को भला कौन भुला सकता है। 

साथ ही हलचल में भी अमरीश पुरी की कॉमिक टाइमिंग गज़ब की थी। इसके अलावा दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में बलदेव सिंह का किरदार भी भुलाया नहीं जा सकता। वहीं घातक में तो इन्होंने अपनी एक्टिंग से दर्शकों को रुला ही दिया था।

दिलीप कुमार ने जो रोल ठुकराया वो अमरीश पुरी ने यादगार बना दिया

साल 1997 में रिलीज़ हुई फिल्म विरासत में इनके राजा ठाकुर के किरदार की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। दरअसल, फिल्म के डायरेक्टर ने पहले ये रोल राजेश खन्ना को ऑफर किया था। उन्होंने जब इन्कार कर दिया तो डायरेक्टर दिलीप कुमार के पास गए। 

दिलीप साहब ने भी जब उस रोल को करने में अपनी असमर्थता जता दी तो ये किरदार मिला अमरीश पुरी को। और फिर तो ये रोल अमरीश पुरी के फिल्मी करियर के यादगार किरदारों में से एक बन गया। 

कभी ना भुलाए जा सकने वाले अमरीश पुरी के कुछ  किरदार

अगर इनके सबसे यादगार रोल्स की बात करें तो करन अर्जनु का ठाकुर दुर्जन सिंह का रोल, त्रिदेव के भुजंग का रोल, डोंगरीला के डोंग का रोल, घायल के बलवंत राय का रोल, 

दामिनी के बैरिस्टर चड्ढा का रोल, गदर का अशरफ अली का रोल, नायक का मुख्यमंत्री का रोल, नागिन का बाबा भैरव नाथ का रोल व और भी कई दूसरे रोल रहे हैं जिन्होंने अमरीश पुरी को महानतम अभिनेता बनाया है। 

पैरलल सिनेमा का भी बड़ा नाम थे Amrish Puri

अमरीश पुरी केवल कमर्शियल फिल्मों में ही नहीं, पैरलल सिनेमा में भी अपने दमदार काम के लिए याद किए जाएंगे। श्याम बेनेगल की निशांत, भूमिका, मंथन, सूरज का सांतवा घोड़ा, ये वो फिल्में हैं जिनमें अमरीश पुरी ने ऐसा अभिनय किया है जिसे हमेशा सराहा जाएगा। 

निजी ज़िंदगी

बात अगर इनकी निजी ज़िंदगी के बारे में करें तो ये हमेशा अपनी निजी ज़िंदगी और अपने फिल्मी जीवन को अलग रखते थे। घर पहुंचकर अमरीश पुरी हमेशा एक आम इंसान की तरह ही बर्ताव करते थे, ना कि किसी बड़े फिल्मी सितारे के जैसे। अमरीश पुरी की पत्नी का नाम उर्मिला दिवेकर था। 

इनके दो बच्चे थे। बेटा राजीव पुरी और बेटी नम्रता पुरी। अमरीश पुरी के पोते का नाम वर्धन पुरी है। वर्धन भी इन दिनों फिल्मों में अपना मुकाम बनाने के लिए स्ट्रगल कर रहे हैं। 

अमरीश पुरी की एक पोती भी है जो कि डॉक्टर बन चुकी है। अमरीश पुरी को हैट पहनने का बेहद शौक था। इनके कलेक्शन में दो सौ से भी ज़्यादा यूनीक हैट्स थे। 

अमरीश पुरी की शख्सियत की खास बात थी, कि ये फिल्मों में भले ही कितने ज़ालिम विलेन नज़र आते हों। लेकिन अपने पोते-पोती और नाति-नातिन से ये बेहद प्यार करते थे। 

इन बच्चों की पहली आवाज़ और साथ ही उनका पहली दफा चलना, ये सब वे खुद कैमरे में रिकॉर्ड करते थे। उन्हें बच्चों के साथ मस्ती करना बेहद पसंद था। 

अवॉर्ड्स से रहे महरूम

बात अगर अवॉर्ड्स की करें तो इन्हें नॉमिशेन तो हर साल मिला करता था। लेकिन इनकी प्रतिभा के मुताबिक इन्हें पुरस्कार नहीं मिले। हालांकि अमरीश पुरी जैसी शख्सियत को इन चीज़ों से कोई परेशानी नहीं होती थी। 

और होती भी कैसे। अमरीश पुरी को लोगों का प्यार ही इतना मिल जाता था कि किसी और अवॉर्ड की उन्हें ज़रूरत ही नहीं थी। 

अमरीश पुरी को मिले कुछ अवॉर्ड्स की बात भी करें तो उन्हें सन 1986 में फिल्म मेरी जंग के लिए फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर अवॉर्ड मिला था। 1997 में घातक फिल्म के लिए बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर स्टार स्क्रीन अवॉर्ड मिला था।

अगले साल यानि 1998 में विरासत फिल्म के लिए फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवॉर्ड मिला। इसी साल इसी फिल्म के लिए ही इन्हें स्टार स्क्रीन अवॉर्ड फोर बेस्ट सपोर्टिंग रोल मिला था। 

वो मनहूस दिन 

12 जनवरी 2005 की तारीख भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे मनहूस तारीख साबित हुई, क्योंकि इसी तारीख को ब्रेन हेमरेज के चलते अमरीश पुरी इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए विदा हो गए। 

उनकी मौत पर कई लोगों ने कहा था कि शायद ऊपर वाला भी कोई फिल्म बना रहा है जिसमें उसे खलनायकों के खलनायक की ज़रूरत होगी और उसने अमरीश पुरी को अपने पास बुला लिया। 

अमरीश पुरी जी के जाते ही भारतयी सिनेमा के एक बेहद शानदार दौर का भी अंत हो गया। वो लोग जो अपनी असफलताओं के लिए उम्र का हवाला देते हैं, उनके लिए अमरीश पुरी एक ऐसी शानदार मिसाल हैं जो उन्हें कहीं और नहीं मिल सकती। 

Amrish Puri को Meerut Manthan का Salute

40 साल की उम्र से अपना फिल्मी सफर शुरू करने वाले अमरीश पुरी 72 साल की उम्र तक काम करते रहे। और ऐसा मुकाम बनाकर गए, जिसे सदियों तक याद रखा जाएगा। मेरठ मंथन की तरफ से खलनायकों के खलनायक अमरीश पुरी को शत शत नमन। 

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