Yunus Parvez | Hindi Cinema का वो शानदार Actor जिसे आज सब भुला चुके हैं | Biography

Yunus Parvez. हममें से कईयों को इनका नाम बेशक मालूम ना हो, लेकिन इनके काम से हम सब बड़ी अच्छी तरह से वाकिफ हैं। हिंदी सिनेमा का एक ऐसा चमकता सूरज थे यूनुस परवेज़ जिसने अभिनय की हर गहराई को खुद में उतार लिया था। 

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Actor Yunus Parvez Full Biography -Photo: Social Media

कॉमेडी हो, गंभीर अदाकारी हो, विलेनगीरी हो या फिर समाज को संदेश देता कोई किरदार हो, यूनुस परवेज़ ने साबित किया था कि एक्टिंग की हर विधा में उन्हें महारत हासिल है।

Meerut Manthan आज आपको बॉलीवुड के शानदार कलाकार Yunus Parvez की ज़िंदगी की कहानी बताएगा। हम बताएंगे कि कैसे Yunus Parvez बॉलीवुड में आए। और उनका फिल्मी सफर कैसा रहा।

Yunus Parvez का शुरुआती जीवन

यूनुस परवेज़ का जन्म हुआ था 10 अगस्त 1936 को उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर शहर में। इनका परिवार मूलरूप से गाज़ीपुर का रहने वाला था। लेकिन इनके पिता यूपी पुलिस में नौकरी करते थे। 

लिहाज़ा इनकी पढ़ाई और इनका शुरूआती जीवन उत्तर प्रदेश के अलग-अलग शहरों में बीता था। स्कूली पढ़ाई पूरी होने के बाद यूनुस परवेज़ पहुंचे इलाहबाद यूनिवर्सिटी में। 

ये इलाहबाद यूनिवर्सिटी ही थी जहां रंगमंच की दुनिया से इनका जुड़ाव होना शुरू हुआ। डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन, डॉक्टर राही मासूम रज़ा और फिराक़ गोरखपुरी जैसे महान शिक्षाविदों से इन्हें शिक्षा प्राप्त करने का गौरव इलाहबाद यूनिवर्सिटी में ही हासिल हुआ। 

इंटरसिटी यूथ फैस्टिवल में यूनुस परवेज़ ने इलाहबाद यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व किया था। इन्हें तीन बार बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिल चुका था। अखबारों में इन पर लेख और इनकी तस्वीरें छपने लगे थे। रंगमंच की दुनिया में इनका नाम होने लगा था।

कबीर बेदी के चाचा से वो खास मुलाकात

इलाहबाद यूनिवर्सिटी से एमए करने के बाद यूनुस परवेज़ पीएचडी की तैयारी कर रहे थे। इसी दौरान इनके एक दोस्त ने इन्हें दिल्ली बुलाया और उस दौर के महान लेखक दीवान वीरेंद्रनाथ से इन्हें मिलवाया। 

दीवान वीरेंद्रनाथ अभिनेता कबीर बेदी के चाचा थे। दीवान वीरेंद्रनाथ ही एक दफा यूनुस परवेज़ को अपने साथ दिल्ली स्थित रूसी दूतावास ले गए थे। 

उस दिन रूसी दूतावास में एक पार्टी थी जिसमें भारतीय रंगमंच पर चर्चा भी चल रही थी। उसी पार्टी में इनकी मुलाकात बेगम कुदसिया ज़ैदी और हबीब तनवीर से हुई जो कि उस दौर के दिग्गज रंगकर्मी माने जाते थे। 

इसी पार्टी में ये माइम आर्टिस्ट इरशाद पंजतन से और लेखक और कवि नियाज़ हैदर से भी मिले। ये सभी लोग यूनुस परवेज़ के नाम से अच्छी तरह से वाकिफ थे। क्योंकि इसी साल ही यूनुस परवेज़ को उत्तर प्रदेश के बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड भी मिला था। 

इन सभी लोगों ने यूनुस परवेज़ को थिएटर जॉइन करने के लिए कहा। और आखिरकार यूनुस परवेज़ ने साल 1959 में बेगम कुदसिया ज़ैदी के कहने पर हिंदुस्तानी थिएटर जॉइन कर लिया।

Hindustani Theater से खास था Yunus Parvez का रिश्ता

हिंदुस्तानी थिएटर की बुनियाद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की प्रेरणा से रखी गई थी। इस थिएटर से यूनुस परवेज़ तकरीबन चार सालों तक जुड़े रहे। 

यूनुस परवेज़ ने एमएस सथ्यू, नरेंद्र शर्मा और हबीब तनवीर जैसे महान रंगकर्मियों के साथ कई नाटकों में हिस्सा लिया था। 

अक्सर पंडित नेहरू के साथ डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन, कृष्ण मेनन और एसके पाटिल जैसे बड़े नेता नाटकों की तैयारियां देखने के लिए हिंदुस्तानी थिएटर आया करते थे। और हर नाटक के बाद प्रधानमंत्री आवास पर पार्टी भी की जाती थी। 

एक दफा जब मिस्र के राष्ट्रपति नासिर हुसैन भारत आए थे तब भारत के राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के कहने पर उनके आवास पर ही मिस्र के राष्ट्रपति के सम्मान में शकुंतला नाम के नाटक का मंचन किया गया था। यूनुस परवेज़ भी इस नाटक का हिस्सा थे।

जब मुंबई आए यूनुस परवेज़

साल 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तब हिंदुस्तानी थिएटर बिखरना शुरू हो गया और इसी दौरान जब 44 साल की उम्र में बेगम कुदसिया ज़ैदी का हार्ट अटैक से अचानक निधन हुआ तब हिंदुस्तानी थिएटर पूरी तरह से बंद हो गया। 

बेहतर भविष्य की उम्मीद में यूनुस परवेज़ अपने कई दूसरे साथियों के साथ मुंबई आ गए और यहां आकर इन्होंने इप्टा जॉइन कर लिया। इप्टा में नाटक करने के दौरान इन्होंने बलराज साहनी, रमेश तलवार, ख्वाजा अहमद अब्बास और सागर सरहदी जैसे दिग्गज रंगकर्मियों के साथ काम किया।

यूं शुरू हुआ फिल्मी सफ

यूनुस परवेज़ जब मुंबई में रंगमंच की दुनिया में मशहूर होने लगे तो फिल्मी दुनिया वालों की नज़र इन पर पड़ी। इन्हें फिल्मों के ऑफर्स मिलने शुरू हो गए। 

साल 1963 में इन्होंने 'कण-कण में भगवान' नाम की एक धार्मिक फिल्म से अपना डेब्यू भी कर लिया। उसके बाद इन्होंने साल 1965 में 'सहेली' और 'भरत मिलाप' में भी काम किया, 1966 में 'पिंजरे का पंछी' नाम की फिल्म में काम किया। 

लेकिन लोगों ने पहली दफा इन्हें नोटिस किया 1968 में रिलीज़ हुई फिल्म 'हसीना मान जाएगी' में। इस फिल्म में ये एक ऐसे पंजाबी चौकीदार बने हैं जिसकी बेटी से जॉनी वॉकर इश्क करते हैं और ये अपनी बंदूक का खौफ दिखाकर जॉनी वॉकर को खूब डराते हैं। 

कहना चाहिए कि जॉनी वॉकर के सहारे ही सही, यूनुस परवेज़ को पहचान मिलनी शुरू हो गई थी। ये फिल्म ही वो फिल्म भी थी जिससे दिग्गज फिल्म डायरेक्टर प्रकाश मेहरा ने भी अपने डायरेक्शन करियर की शुरूआत की थी। 

वो गीत जो यूनुस परवेज़ पर फिल्माया गया था

'हसीना मान जाएगी' के बाद यूनुस परवेज़ ने कुछ फिल्मों में और काम किया। लेकिन इनका काम फिर से सराहा गया 1971 में रिलीज़ हुई फिल्म 'उपहार' में। 

इस फिल्म में इनके किरदार का नाम बनवारी था। इस फिल्म का एक गीत काफी मशहूर हुआ था जिसके बोल थे 'मांझी ढूंढे नैया किनारा'। ये गीत यूनुस परवेज़ पर ही फिल्माया गया था।

गर्म हवा में किया था शानदार काम

साल 1971 में ये नज़र आए फिल्म 'गर्म हवा' में। ये फिल्म भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की पृष्ठभूमि पर बनी थी। इस फिल्म में यूनुस परवेज़ एक अवसरवादी नेता के किरदार में नज़र आए थे। 

ये फिल्म आर्ट सिनेमा का एक शानदार उदाहरण थी और इस फिल्म में यूनुस परवेज़ के काम को बेहद पसंद किया गया था। यूपी जर्नलिस्ट असोसिएशन ने तो फिल्म गर्म हवा में इनके शानदार काम के लिए इन्हें सम्मानित भी किया था। 

रहीम चाचा बनकर छा गए यूनुस परवेज़

लेकिन अभी भी यूनुस परवेज़ को उस पहचान का इंतज़ार था जो इन्हें अब तक नहीं मिली थी। ये पहचान इन्हें मिली साल 1975 में रिलीज़ हुई फिल्म 'दीवार' से। 

अमिताभ बच्चन की इस सुपरहिट फिल्म में यूनुस परवेज़ 'रहीम चाचा' के किरदार में नज़र आए। आम दर्शकों को ये किरदार बेहद पसंद आया। 

इस फिल्म के बाद तो मानो यूनुस परवेज़ की ज़िंदगी ही बदल गई। अब हर कोई इन्हें अपनी फिल्म में लेना चाहता था। और ये लगातार फिल्मों में बिज़ी होते चले गए। 

प्रमुख फिल्में

यूनुस परवेज़ के करियर का गोल्डन पीरियड पूरे 20 साल यानि 1975 से लेकर 1995 तक चला। इस दौरान इन्होंने सैकड़ों फिल्मों में काम किया और कई तरह के रोल निभाए। अमिताभ बच्चन की लगभग हर दूसरी फिल्म में यूनुस परवेज़ नज़र आ जाते थे। 

इसके अलावा निकाह, तेरे मेरे सपने, द बर्निंग ट्रेन, जाल, इन्साफ का तराज़ू, त्रिदेव, अवाम, लैला, दहलीज़, बाज़ार, मांग भरो सजना, ज़ख्मी, गोल माल, उमरावजान, अवतार, लावारिस, राजा बाबू, कालिया, मिस्टर इंडिया, शहंशाह, कयामत से कयामत तक, फरिश्ते और अजूबा सहित साढ़े तीन सौ से भी ज़्यादा फिल्मों में इन्होंने काम किया था। 

आखिरी बार ये नज़र आए थे साल 2005 में रिलीज़ हुई 'बंटी और बबली' में। इसके अलावा साल 2007 में ये 'बांके बिहारी एमएलए' नाम की एक भोजपुरी फिल्म में भी नज़र आए। लेकिन फिर कभी इन्हें किसी और फिल्म में नहीं देखा गया। 

राजनीति में भी उतरे थे Yunus Parvez

यूनुस परवेज़ को राजनीति में भी काफी दिलचस्पी थी। इलाहबाद यूनिवर्सिटी में अपने छात्र जीवन के दौरान भी ये कॉलेज राजनीति में सक्रिय थे। 

साल 1984 में जब सुनील दत्त ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा तो उन्होंने यूनुस परवेज़ को भी कांग्रेस की सदस्यता दिला दी। यूनुस परवेज़ ने सुनील दत्त के लिए चुनाव प्रचार भी किया। 

लेकिन बाद में इन्होंने किन्हीं कारणों से कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और फिर ये समाजवादी पार्टी का हिस्सा बने। साल 1998 में ये समाजवादी पार्टी के टिकट पर दिल्ली की एक लोकसभा सीट से चुनाव भी लड़े। हालांकि ये हार गए। उसके बाद ये फिर से लौटकर कांग्रेस में आए। 

निजी जीवन

यूनुस परवेज़ की निजी ज़िंदगी के बारे में बात करें तो इनके छह बच्चे हुए। दो बेटे और चार बेटियां। इनके बड़े बेटे सलीम परवेज़ ने भी थिएटर में अभिनय किया। 

हालांकि फिल्मों में अभिनय करने का उन्हें मौका नहीं मिल पाया। सलीम परवेज़ ने दिनेश हिंगू और असरानी जैसे बड़े कलाकारों के साथ मिलकर एक गुजराती प्रोडक्शन कंपनी शुरू की थी। 

हालांकि अच्छा काम करने के बावजूद भी ये कंपनी बंद हो गई। इनके दूसरे बेटे अरशद खान ने डायरेक्शन में हाथ आजमाया था, लेकिन उन्हें भी कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई और 1993 में आई फिल्म 'आदमी' के बाद उन्होंने दोबारा कभी किसी और फिल्म का डायरेक्शन नहीं किया। 

यूनुस परवेज़ के बारे में एक दफा अफवाह उड़ी थी कि इन्होंने गुज़रे ज़माने की मशहूर अभिनेत्री नाज़िमा से शादी की है। हालांकि ये अफवाह बाद में झूठ साबित हो ही गई थी। 

और फिर वो दिन भी आ गया

बढ़ती उम्र के साथ यूनुस परवेज़ को कई बीमारियों ने घेर लिया था। इनकी सबसे बड़ी परेशानी थी डायबिटीज़ जिसने इन्हें पूरी तरह से बेकार कर दिया था। 

और आखिरकार 11 फरवरी 2007 को डायबिटीज़ से अपनी जंग हारकर 71 साल की उम्र में यूनुस परवेज़ इस दुनिया को अलविदा कहकर हमेशा के लिए अनंत यात्रा पर चले गए। 

हिंदी सिनेमा में यूनुस परवेज़ के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। Meerut Manthan महान Actor Yunus Parvez को सैल्यूट करता है। 

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