Anu Malik | एक ऐसा Music Director जिसने कड़े संघर्ष के बाद अपनी पहचान बनाई | Biography
Anu Malik. एक ऐसा नाम जिसे भारत का हर संगीत प्रेमी बखूबी जानता-पहचानता है। पिछले लगभग पांच दशकों से अनु मलिक अपनी अनोखी संगीत शैली से मौसिकी के कद्रदानों की वाहवाही बटोर रहे हैं।
अनु मलिक केवल एक म्यूज़िशियन ही नहीं, बल्कि एक एंटरटेनर भी हैं। और इसकी मिसाल है अनु मलिक के वो रिएलिटी शोज़ जिनमें ये अपनी शायरी से लोगों को खूब हंसाते थे।
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Anu Malik Biography - Photo: Social Media |
Meerut Manthan आज कहेगा Anu Malik की कहानी। Anu Malik संगीत की दुनिया में कैसे आए? क्यों इन्हें अपने जीवन में इतना ज़्यादा संघर्ष करना पड़ा? अनु मलिक से जुड़ी आज ढेरों बातें हम और आप जानेंगे।
Anu Malik का शुरुआती जीवन
अनु मलिक का जन्म हुआ था 2 नंवबर सन 1960 को मुंबई में। इनका असली नाम है अनवर सरदार मलिक। इनके पिता सरदार मलिक भी एक संगीतकार ही थे। हालांकि उन्हें कभी भी वैसी सफलता नहीं मिल पाई थी जैसी की अनु मलिक साहब को मिली।
लेकिन चूंकि वो एक संगीतकार थे तो संगीतमय माहौल अनु मलिक को बचपन में ही मिल गया था। बचपन में ही इन्हें सुरों और साज़ की बढ़िया जानकारी हो गई थी।
ये और बात है कि अनु मलिक संगीतकार नहीं, बल्कि एक आईपीएस ऑफिसर बनने का ख्वाब देखा करते थे। अनु मलिक सातवीं क्लास में थे जब इनके साथ एक ऐसी घटना हुई जिससे ये इशारा मिल गया था कि अनु मलिक संगीत के क्षेत्र में बढ़िया नाम करेंगे।
एक मराठी कविता ने बदल दी जीवन की दिशा
दरअसल, स्कूल में इन्हें एक मराठी कविता याद करने को मिली थी। लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी इन्हें वो कविता याद नहीं हो पा रही थी। इन्होंने अपना दिमाग दौड़ाया और ये उस कविता को रटने की बजाय उसे गाकर याद करने लगे।
घर आकर अनु मलिक ने अपने पिता को भी बताया कि कैसे इन्होंने एक मराठी कविता को गाकर याद किया। फिर जब इन्होंने अपने पिता को उसी गायकी वाले अंदाज़ में वो कविता सुनाई तो इनके पिता को उसकी धुन बहुत पसंद आई।
उन्होंने अनु मलिक से अखबार में लिखी खबरों को धुन पर गुनगुनाने को कहा। अनु मलिक ने वो भी कर दिखाया। इसके बाद तो सरदार मलिक साहब अनु जी को रोज़ अपने पास बैठाते और संगीत की बारीकियां सिखाते।
संघर्ष के वो चुनौतीपूर्ण दिन
अनु मलिक को बचपन से ही संगीत की बारीकियां तो सीखने को मिलने लगी ही थी। साथ ही उन्हें शायरी से भी खासा लगाव छोटी उम्र से ही शुरू हो गया था। और वो इसलिए क्योंकि नामी शायर और गीतकार हसरत जयपुरी इनके सगे मामू थे। अनु मलिक अपने मामू हसरत जयपुरी के बड़े फैन थे।
जैसे-जैसे अनु मलिक बड़े होते गए, संगीत में इनकी दिलचस्पी बढ़ती चली गई। हालांकि पढ़ाई-लिखाई भी इन्होंने नहीं छोड़ी और मुंबई के मीठीबाई कॉलेज से इन्होंने बीए और एमए की डिग्री ली। फिर शुरू किया अनु मलिक ने संगीतकार बनने का अपना संघर्ष।
अनु मलिक ने ये तय कर लिया था कि वो अपने पिता की तरह नहीं बनेंगे। दरअसल, अनु मलिक को लगता था कि बहुत शानदार संगीतकार होने के बावजूद भी उनके पिता सरदार मलिक को इसलिए काम नहीं मिल पाया था क्योंकि वो खुद से काम मांगने किसी के पास नहीं जाते थे। इसलिए अनु मलिक ने फैसला किया कि वो काम मांगने हर प्रोड्यूसर के पास खुद चलकर जाया करेंगे।
वो अपना हामोनियम लेकर निकल जाते और छोटे-बड़े सभी प्रोड्यूसर से मिलते। लोग इनसे इनका संगीत तो सुनते थे। लेकिन काम कोई नहीं देता था। इसी दौरान नामी कॉमेडियन मोहन चोटी एक फिल्म बना रहे हैं जिसका नाम है 'हंटर वाली 77'.
मोहन चोटी ने उस फिल्म के लिए अनु मलिक के पिता सरदार मलिक को साइन किया था। मोहन चोटी साहब के कहने पर अनु मलिक ने 'हंटर वाली 77' फिल्म में एक गाना बनाया था। यूं तो उस फिल्म से इन्हें कोई खास फायदा नहीं हुआ। लेकिन एक तरह से बतौर संगीतकार इनका करियर शुरू ज़रूर हो गया।
यूं बनती गई पहचान
संघर्ष के दिनों में गायक शैलेंद्र सिंह से अनु मलिक की दोस्ती हो गई थी। और चूंकि बॉबी फिल्म के बाद शैलेंद्र सिंह स्टार गायक बन चुके थे तो एक दिन उन्होंने अनु मलिक को नामी प्रोड्यूसर हरमेश मल्होत्रा से मिलवाया। हरमेश मल्होत्रा ने अनु मलिक पर भरोसा जताया और इन्हें पूनम फिल्म का संगीत कंपोज़ करने की ज़िम्मेदारी दी।
पूनम फिल्म के कुछ गीत बड़े पसंद किए गए। इस वजह से हरमेश मल्होत्रा ने कुछ और फिल्मों के लिए म्यूज़िक कंपोज़र की हैसियत से अनु मलिक को साइन कर लिया। हरमेश मल्होत्रा से मिले इस सपोर्ट की वजह से अनु मलिक को फिल्म इंडस्ट्री के लोग जानने-पहचानने लगे। इसी दौरान अनु मलिक की दोस्ती नामी प्रोड्यूसर एफ सी मेहरा के बेटे राजीव मेहरा से हो गई।
राजीव मेहरा को इनका संगीत बहुत पसंद था। एक दिन राजीव मेहरा अपने पिता एफ सी मेहरा को अनु मलिक से मिलाने इनके घर ले आए। वहां एफ सी मेहरा साहब के सामने अनु मलिक ने कई गाने गाए। और फाइनली एफ सी मेहरा ने अपनी फिल्म 'एक जान हैं हम' के म्यूज़िक की ज़िम्मेदारी अनु मलिक को दे दी।
अनु मलिक ने उस फिल्म के लिए दिल से मेहनत की और अपने हुनर का शानदार नज़ारा पेश किया। वो फिल्म सुपरहिट हो गई। अनु मलिक के कंपोज़ किए 'एक जान हैं हम' के गाने खूब पसंद किए गए। और इस फिल्म के बाद तो अनु मलिक की किस्मत बदलनी शुरू हो गई।
'एक जान हैं हम' के बाद अनु मलिक ने राजीव मेहरा के बड़े भाई उमेश मेहरा की फिल्म सोहनी महिवाल का म्यूज़िक कंपोज़ किया। जी हां वही सोहनी महिवाल जिसमें सनी देओल और पूनम ढिल्लन लीड रोल में थे।
सोहनी महिवाल के बाद तो अनु मलिक इंडस्ट्री में और ज़्यादा पॉप्युलर हो गए। और ये सोहनी महिवाल फिल्म में दिया अनु मलिक का संगीत ही था जिसने उनके लिए एक ऐसी फिल्म का रास्ता खोल दिया जो अनु मलिक को इंडस्ट्री के ए ग्रेड म्यूज़िक कंपोज़र्स की लिस्ट में ले आई।
चुनौतियां लगातार Anu Malik के जीवन में आती-जाती रही
सोहनी महिवाल फिल्म के हिट होने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में अनु मलिक की डिमांड बढ़ने लगी। लेकिन अनु मलिक की किस्मत बदली महान डायरेक्टर मनमोहन देसाई ने। मनमोहन देसाई ने अनु मलिक को अपनी फिल्म मर्द के म्यूज़िक कंपोजिशन की ज़िम्मेदारी दी।
अनु मलिक ने भी बखूबी ये ज़िम्मेदारी निभाई और मर्द फिल्म की कहानी के साथ-साथ इसके गाने भी लोगों ने खूब पसंद किए। अनु मलिक रातों रात संगीत की दुनिया के स्टार बन गए। मर्द के बाद अनु मलिक ने मनमोहन देसाई की गंगा जमुना सरस्वती और तूफान का भी म्यूज़िक कंपोज़ किया।
हालांकि ये फिल्में कोई खास कमाल बॉक्स ऑफिस पर नहीं दिखा सकी। और इसके बाद एक बार फिर अनु मलिक का मुश्किल वक्त शुरू हो गया। उनके पास फिर से काम की कमी हो गई। छोटे बजट की फिल्में तो उनके पास खूब आ रही थी। लेकिन बड़े बजट्स के ऑफर्स पर ब्रेक लग गया था।
मगर फिर जब साल 1993 में शाहरुख खान की बाजीगर फिल्म आई तो एक बार फिर से अनु मलिक को अपना खोया हुआ रुतबा हासिल हो गया। बाज़ीगर फिल्म के लिए अनु मलिक को उनका पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला।
और फिर उन्होंने एक से बढ़कर एक फिल्मों के लिए म्यू़ज़िक कंपोज़ किया। साल 2001 में आई जेपी दत्त्ता की फिल्म रिफ्यूजी के लिए अनु मलिक को नेशनल फिल्म अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।
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