Durga Khote | Actress बनने के लिए समाज से लड़ने वाली महिला | Biography
Durga Khote. एक ऐसी Indian Actress जो अपने आप में Acting School हुआ करती थी। आजकल की अभिनेत्रियों के लिए Durga Khote किसी आइडल से कम नहीं हैं। इनकी गिनती उन बॉलीवुड हस्तियों में होती है, जिन्होंने हिंदी फिल्मों में औरतों के लिए नए आयाम सेट किए।
जिस दौर में दुर्गा खोटे एक्टिंग के क्षेत्र में उतरी थीं, उस दौर में फिल्मों में औरतों के लिए कोई जगह नहीं थी। अक्सर मर्द ही औरतों के किरदार भी निभा लिया करते थे। ऐसे दौर में Durga Khote ने बतौर अभिनेत्री अपनी पहचान बनाई थी।
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Durga Khote Biography - Photo: Social Media |
Meerut Manthan पर पेश है गुज़रे ज़माने की सशक्त अदाकारा Durga Khote की कहानी। Durga Khote जी के फिल्मी सफर को आज काफी करीब से हम और आप जानेंगे।
कब हुआ था Durga Khote का जन्म?
इनका जन्म हुआ था मुंबई में। तारीख थी 14 जनवरी और साल था 1905। भारत गुलामी में था और कुछ भारतीय महापुरुष भारत और भारतवासियों को गुलामी की ज़ंजीरों से आज़ादी दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रहे थे।
दुर्गा खोटे बड़ी हुई और उन्होंने फिल्मों में काम करने का फैसला किया। जबकि उस दौर में औरतों के लिए फिल्मों में काम करने का मतलब था सारी दुनिया के ताने और बुराई सुनना।
वैसे भी ये एक सभ्रांत और प्रतिष्ठित परिवार से थी। फिल्मों में काम करने के इनके फैसले की जानकारी जैसे ही उस दौर की फिल्म इंडस्ट्री को पहुंची वहां हड़कंप मच गया। लोगों ने तरह-तरह की बातें बनानी शुरू कर दीं। लेकिन दुर्गा अपने इरादों की पक्की थी।
जल्दी हो गई थी Durga Khote की शादी
जब दुर्गा 18 साल की हुई थी तब उनकी शादी विश्वनाथ खोटे से करा दी गई। इनके पति एक बेहद अमीर खानदान से ताल्लुक रखते थे। इनके पति का नाम विश्वनाथ था और वो एक मैकेनिकल इंजीनियर थे। जीवन बढ़िया चल रहा था।
दो सालों में इनके दो बेटे भी हो गए। लेकिन दो सालों के बाद, यानि जब दुर्गा 20 सालों की हुई तो पति विश्वनाथ की मृत्यु हो गई। उसके बाद तो जैसे इन पर दुखों का पहाड़ टूट गया। कभी किसी चीज़ की कमी ना देखने वाली दुर्गा को भयंकर आर्थिक तंगी होने लगी।
चलती रही Durga Khote की ज़िंदगी
पति की मौत के बाद दुर्गा अपने दोनों बेटों के साथ ससुराल में रह रही थी। कुछ समय बाद दुर्गा को अहसास हुआ कि उन्हें भी कुछ काम करना ही चाहिए। पढ़ी-लिखी दुर्गा ने बच्चों को ट्यूशन देना शुरू कर दिया।
एक दिन एक डायरेक्टर ने दुर्गा को फरेबी जाल नाम की एक फिल्म में काम करने का ऑफर दिया। इस वक्त तक भारत में भी बोलती फिल्में बनने लगी थी।
दुर्गा को पैसों की दिक्कत तो थी ही, सो उन्होंने वो ऑफर स्वीकार कर लिया। इस फिल्म में दुर्गा को महज़ दो मिनट का रोल मिला था। अपने रोल के अलावा दुर्गा को फिल्म की कहानी की ज़रा भी जानकारी नहीं थी। जब फिल्म रिलीज़ हुई तो इसके घटिया कंटेंट के चलते दुर्गा को लोगों की बातें सुननी पड़ी। ताने झेलने पड़े।
V Shantaram ने पहचाना Durga Khote का टैलेंट
इतनी बातें सुनने के बाद दुर्गा भी दबाव में आ गई और उन्होंने फिल्मों से खुद को दूर कर लिया। लेकिन उस दो मिनट के रोल वाली फिल्म से ही उन पर उस दौर के बड़े निर्देशक वी शांताराम की नज़र पड़ी।
उन्होंने दुर्गा को अपनी फिल्म अयोध्येचा राजा में तारामती के किरदार को निभाने का ऑफर भिजवाया। ये फिल्म के मुख्य पात्रों में से एक था। प्रभात स्टूडियो के बैनर तले ये फिल्म मराठी और हिंदी भाषा में बनाई गई थी।
अब भी बरकरार था डर
दुर्गा को जब वी शांताराम का ऑफर मिला तो उन्होंने साफ इन्कार कर दिया। लेकिन शांताराम ने दुर्गा को काफी समझया। आखिरकार दुर्गा ने भी खुद को एक दूसरा मौका देने का फैसला किया।
दुर्गा ने शांताराम का वो ऑफर स्वीकार कर लिया और फिल्म की शूटिंग पूरी की। जब फिल्म रिलीज़ होने वाली थी तो दुर्गा को काफी घबराहट हो रही थी। उन्हें फिक्र थी कि कहीं पहली फिल्म की तरह इस बार भी उन्हें समाज की बुराईयां ना झेलनी पड़ें।
रातों रात स्टार बन गई Durga Khote
जब अयोध्येचा राजा फिल्म रिलीज़ हुई तो दुर्गा के काम को लोगों ने बेहद पसंद किया। कभी जो लोग दुर्गा की आलोचना कर रहे थे, अब वही दुर्गा की तारीफों के पुल बांध रहे थे। दुर्गा रातों-रात स्टार बन चुकी थी।
दुर्गा का आत्मविश्वास काफी बढ़ चुका था। दुर्गा ने प्रभात स्टूडियो की दूसरी फिल्म माया मछिन्द्र में भी काम किया। इस फिल्म में दुर्गा एक रानी बनी थी। उस रानी का पालतू जानवर था एक चीता। इस फिल्म के बाद तो सभी ने दुर्गा को एक हिरोईन के तौर पर स्वीकार कर लिा था।
ये थी सबसे यादगार फिल्म
अपने फिल्मी करियर में दुर्गा ने मराठी और हिंदी फिल्मों के अलावा कई बंगाली फिल्मों में भी काम किया था। इनके बेटों के नाम थे बकुल और हरिन। दुर्भाग्यवश इनके बेटे हरिन की मृत्यु जल्दी हो गई।
बेटे की मौत से दुर्गा को गहरा सदमा पहुंचा था। मुगल-ए-आज़म फिल्म में जोधाबाई का किरदार दुर्गा खोटे ने ही निभाया था। ये उनके करियर की सबसे यादगार फिल्म थी। एक्टिंग के अलावा दुर्गा ने फिल्म निर्माण में भी कदम रखा।
अब तक बॉलीवुड में महिलाओं की एंट्री तो हो चुकी थी। लेकिन अभी महिलाएं केवल अभिनय ही करती थी। दुर्गा खोटे ने राशिद खान से दूसरी शादी की थी। उनके साथ मिलकर दुर्गा खोटे ने कई शॉर्ट फिल्में भी बनाई थी।
ये सभी फिल्में उनके पति राशित खान के प्रोडक्शन हाउस फैक्ट फिल्म्स प्रोडक्शन हाउस के तहत बनी थीं। इन फिल्मों की काफी सराहना हुई। विदशों में होने वाले सभी फिल्म फेस्टिवल्स में हिस्सा लेने के लिए दुर्गा ज़रूर जाती थी।
यही वजह थी कि उनके अंदर फिल्म निर्माण की बढ़िया समझ विकसित हो चुकी थी। लगभग 50 सालों तक दुर्गा खोटे ने फिल्मों में काम किया था। अपने फिल्मी करियर में उन्होंने 200 फिल्मों में काम किया। उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
दुर्गा खोटे की आखिरी फिल्म
दुर्गा अधिकतर मां के किरदारों में नज़र आती थी। इनकी आखिरी फिल्म थी साल 1980 में आई कर्ज़। इस फिल्म में उन्होंने ऋषि कपूर की मां का रोल किया था। इसके बाद इनकी सेहत खराब रहने लगी और इन्होंने फिल्मों से संन्यास ले लिया।
फिर 1991 में एक दिन खबर आई कि दुर्गा खोटे दुनिया से चली गई। और उनके साथ ही चला गया भारतीय सिनेमा का एक सशक्त महिला चेहरा। Meerut Manthan Durga Khote जी को नमन करता है। शत-शत नमन।
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