Subhash Ghai की वो 10 Movies जिन्होंने उन्हें शोमैन का दर्जा दिलाया | Biography

Subhash Ghai यानि भारत के दूसरे शोमैन। Raj Kapoor के बाद शोमैन का दर्जा हासिल करने वाले सुभाष घई अपने हुनर से सालों से Bollywood में अपनी जगह मजबूती से बनाए हुए हैं। 

भले ही इन्होंने बहुत ज़्यादा फिल्मों का डायरेक्शन नहीं किया हो, लेकिन इनकी डायरेक्ट की हुई अधिकतर फिल्में कामयाब रही हैं। सुभाष घई के बारे में लोगों को ये बात शायद ही मालूम होगी कि वो फिल्मों में हीरो बनना चाहते थे। 

उन्होंने कुछ फिल्मों में एक्टिंग भी की थी। लेकिन जब फिल्मों में बात नहीं बनी तो सुभाष घई ने कैमरे के पीछे रहकर काम करने का फैसला किया।

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Subhash Ghai Biography - Photo: Social Media

Meerut Manthan पर आज हम आपको Subhash Ghai की उन 10 फिल्मों की जानकारी देंगे जिन्होंने उन्हें शोमैन का दर्जा दिलाया। अगर आपने Subhash Ghai की ये फिल्में देखी होंगी तो आप भी मानेंगे कि सुभाष घई वाकई में इस सम्मान के हकदार हैं। लेकिन पहले सुभाष घई की ज़िंदगी और उनके फिल्मी सफर पर एक नज़र डालते हैं।

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Subhash Ghai की शुरूआती ज़िंदगी

Subhash Ghai का जन्म 24 जनवरी 1945 को नागपुर में हुआ था। इनके पिता डेंटिस्ट थे। बचपन से इनका रुझान मनोरंजन जगत की तरफ रहा और ये एक्टर बनने का ख्वाब देखा करते थे। 

स्कूल के दिनों में ही इन्होंने नाटकों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। इनके पिता को मालूम था कि उनका बेटा अभिनेता बनना चाहता है। ये वो दौर था जब अभिनेता बनना दोयम दर्जे का काम समझा जाता था। 

पिता ने सख्ती से इनसे कह दिया था कि पहले अपनी ग्रेजुएशन पूरी करो, उसके बाद देखेंगे। पिता की बात मानते हुए ये ग्रेजुएशन करने हरियाणा के रोहतक आ गए।

यूं ही सफल नहीं हुए Subhash Ghai

कॉलेज में भी ये नाटक और दूसरी सांस्कृतिक गतिविधियों में एक्टिव रहे। कॉलेज पूरा होने के बाद इनके पिता ने इनसे कहा कि अगर वाकई में एक्टर बनना चाहते हो तो किसी सही जगह से ट्रेनिंग लो। 

पिता की ये बात सुनकर इन्हें काफी हैरत भी हुई और खुशी भी हुई। इसके बाद ये पहुंचे एफटीआई पुणे। दरअसल, इनके पिता ने ही इस इंस्टीट्यूट का नाम इन्हें सुझाया था। 

कम लोग ही इस बात से वाकिफ हैं कि सुभाष घई कॉलेज के दिनों में रेडियो नाटकों में भी काम करना चाहते थे। इन्होंने बतौर ट्रेनी रेडियो स्टेशन में काम भी किया। 

लेकिन रेडियो का सन्नाटा इन्हें बड़ा ही अजीब लगा और उस सन्नाटे से परेशान होकर इन्होंने रेडियो स्टेशन छोड़ दिया।

एफटीआई से की Subhash Ghai ने पढ़ाई

पुणे से अपना कोर्स पूरा करने के बाद ये मुंबई पहुंचे और इन्होंने कुछ फिल्मों में बतौर अभिनेता काम भी किया। 1967 में रिलीज़ हुई तकदीर में इन्होंने एक अच्छा-खासा रोल निभाया था। 

फिर ये राजेश खन्ना के दोस्त के रूप में नज़र आए फिल्म आराधना में। 70 के दशक की कुछ फिल्मों में तो ये बतौर हीरो भी नज़र आए थे। लेकिन फिर भी इन्हें कभी भी अभिनय में वो मकबूलियत हासिल नहीं हुई जिसका ख्वाब ये हमेशा से देखा करते थे।

ऐसी है Subhash Ghai की निजी ज़िंदगी

इनकी निजी ज़िंदगी के बारे में बात करें तो इनकी गर्लफ्रेंड का नाम रिहाना था। ये पहले ही रिहाना से कह चुके थे कि पहले कुछ बनेंगे फिर उनसे शादी कर पाएंगे। 

फिर जब ये फिल्मों में बतौर हीरो लॉन्च हो गए और एक मैनेजर भी इन्होंने रख लिया तो इन्होंने रिहाना से शादी कर ली और बाद में रिहाना ने अपना नाम बदलकर मुक्ता रख लिया। इनकी दो बेटियां हैं। बड़ी बेटी मेघना और छोटी बेटी मुस्कान। 

चलिए अब सुभाष घई के करियर की 10 सबसे बड़ी हिट फिल्मों के बारे में जानते हैं। ये 10 ही दरअसल वो फिल्में हैं जिन्होंने सुभाष घई को शोमैन का दर्जा दिलाया।

01- कालीचरण (1976)

साल 1976 में फिल्म कालीचरण से सुभाष घई के डायरेक्शन की शुरूआत हुई थी। ये फिल्म इन्हें शत्रुघ्न सिन्हा की सिफारिश के बाद मिली थी। दरअसल, सुभाष घई और राजेश खन्ना ने एक प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। 

उस प्रतियोगिता में देशभर से 5 हज़ार से भी ज़्यादा लोगों ने हिस्सा लिया था लेकिन जीतने वाले केवल तीन ही थे। सुभाष घई, राजेश खन्ना और धीरज कुमार।

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Subhash Ghai Movies, Kaalicharan(1976) - Photo: Social Media

इस प्रतियोगिता के बाद राजेश खन्ना को तो काम मिलना शुरू हो गया था लेकिन सुभाष घई को काम के लिए और इंतज़ार करना पड़ा। तकदीर और आराधना जैसी फिल्मों में इन्हें एक्टिंग का मौका मिला भी था। 

लेकिन एक्टिंग मं इनकी बात नहीं बनी। लेकिन जब कालीचरण के निर्देशन का मौका इन्हें मिला तो इन्होंने खुद को साबित कर दिखाया और ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई।

02- कर्ज़ (1980)

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Subhash Ghai Movies, Karz(1980) - Photo: Social Media

कालीचरण के बाद सुभाष घई ने विश्वनाथ और गौतम गोविंदा जैसी फिल्मों का भी निर्देशन किया था। लेकिन ये फिल्में वो कमाल नहीं कर पाई जिसकी उम्मीद उन्होंने की थी। 

सुभाष घई को दूसरी बड़ी सफलता मिली 1980 में रिलीज़ हुई फिल्म कर्ज़ से। ऋषि कपूर, सिमी ग्रेवाल, टीना मुनीम और प्राण जैसे बड़े स्टार्स वाली ये पुनर्जन्म की कहानी वाली थ्रिलर ड्रामा फिल्म लोगों को बेहद पसंद आई थी। ये फिल्म इनके करियर की यादगार फिल्म है।

03- विधाता (1982)

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Subhash Ghai Movies, Vidhata(1982) - Social Media

वास्तव में कहना चाहिए कि सुभाष घई के करियर का टर्निंग पॉइन्ट थी ये फिल्म। यही वो फिल्म थी जिसने सुभाष घई को उस दौर के टॉप फिल्म डायरेक्टर्स में शुमार कराया था। 

दिलीप कुमार, शम्मी कपूर, संजीव कुमार, संजय दत्त, अमरीश पुरी, सुरेश ओबेरॉय, पद्मिनी कोल्हापुरी और सारिका जैसे उस दौर के बड़े कलाकारों ने इस फिल्म में काम किया था। 

ये फिल्म ऑल टाइम ब्लॉकबस्टर साबित हुई। इस फिल्म के बाद सुभाष घई ने अपनी खुद की प्रोडक्शन कंपनी मुक्ता आर्ट्स खोल ली थी। हालांकि मुक्ता आर्ट्स की स्थापना के बाद भी उन्होंने मेरी जंग फिल्म का डायरेक्शन दूसरी प्रोडक्शन कंपनी के अंडर में किया था।

04- हीरो (1983)

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Subhash Ghai Movies, Heero(1983) - Photo: Social Media

सुभाष घई ने स्वामी दादा में जैकी श्रॉफ का काम देखा था और तभी से ही जैकी श्रॉफ को वो अपनी किसी ना किसी फिल्म में लेना चाहते थे। सुभाष घई ने जैकी को विधाता में भी एक छोटा सा किरदार ऑफर किया था लेकिन तब जैकी ने वो रोल करने से इन्कार कर दिया था। 

दरअसल, जैकी ने सुभाष घई से कहा था कि उन्हें असिस्टेंट एक्टर का नहीं बल्कि कुछ ऐसा किरदार दें जिससे उनके करियर को फायदा पहुंचे। जैकी की इसी बात को ध्यान में रखते हुए सुभाष घई ने उन्हें हीरो में काम दिया और यहीं से जैकी श्रॉफ की किस्मत भी बदल गई थी।

05- मेरी जंग (1985)

अगर आपने अनिल कपूर की मेरी जंग फिल्म देखी है तो आप जानते होंगे कि इस फिल्म में इन्होंने कितना शानदार काम किया है। 

अनिल कपूर को ये फिल्म मिलने का किस्सा कुछ यूं है कि जब विधाता की शूटिंग चल रही थी तो अक्सर अनिल कपूर सुभाष घई से मिलने फिल्म के सेट पर पहुंच जाते थे। 

अनिल सुभाष से हर मुलाकात में कहते थे कि उन्हें भी किसी फिल्म में अच्छा सा रोल निभाने का मौका दें। इस तरह सुभाष घई के ज़ेहन में अनिल कपूर बस चुके थे।

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Subhash Ghai Movies, Meri Jung(1985) - Photo: Social Media

हीरो के बाद सुभाष घई ने मेरी जंग का डायरेक्शन किया था। हर किसी को लग रहा था कि सुभाष घई जैकी श्रॉफ को ही इस फिल्म में हीरो के तौर पर लेंगे। 

लेकिन जब सुभाष घई ने अनिल कपूर के साथ मेरी जंग की शूटिंग शुरू कर दी तो लोगों को बड़ी हैरानी हुई। लोगों ने उनसे सवाल भी किए कि जैकी को फिल्म में क्यों नहीं लिया। सुभाष घई लोगों को जवाब देते कहा कि ये किरदार अनिल के लिए ही था।

06- कर्मा (1986)

कहना चाहिए कि हीरो और मेरी जंग वो फिल्में हैं जिन्होंने बॉलीवुड को दो बड़े सुपरस्टार दिए। जहां हीरो ने जैकी श्रॉफ तो वहीं मेरी जंग ने अनिल कपूर के करियर को बदलकर रख दिया था। 

1986 में सुभाष घई ने इन दोनों को ही एक साथ दिलीप कुमार के साथ कर्मा फिल्म में काम करने का मौका दिया। अक्सर दिलीप कुमार के सामने जैकी श्रॉफ अपना डायलॉग बोलने से बचते थे। दिलीप साहब के सामने जैकी से डायलॉग बोला ही नहीं जा पा रहा था। एक के बाद एक कई सारे टेक होते थे।

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Subhash Ghai Movies, Karam(1986) - Photo: Social Media

जैकी को बार-बार रीटेक लेते देख दिलीप कुमार से रहा नहीं गया और उन्होंने सुभाष घई से कहा कि जैकी को पूरी तैयारी कराकर ही शूटिंग के लिए लाया करो। 

बाद में जैकी श्रॉफ ने खूब मेहनत की और फिल्म की शूटिंग कंप्लीट हुई। लोगों को ये फिल्म बेहद पसंद आई थी। उस दौर में ये फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी।

07- सौदागर (1991)

वैसे तो जैकी श्रॉफ और अनिल कपूर के साथ सुभाष घई ने राम लखन भी बनाई थी और ये फिल्म भी ज़बरदस्त हिट रही थी। सुभाष घई ने ये फिल्म खुद ही लिखी भी थी। 

लेकिन सुभाष घई एक बार और दिलीप कुमार के साथ काम करना चाहते थे। सुभाष घई ने सौदागर फिल्म की कहानी लिखी। दिलीप साहब के साथ इन्होंने एक और महान अभिनेता राजकुमार को लिया।

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Subhash Ghai Movies, Saudagar(1991) - Photo: Social Media

शुरूआत में हर कोई कह रहा था कि दिलीप कुमार और राजकुमार दोनों ही एक-दूसरे से अलग शैली के कलाकार हैं। इन दोनों को साथ ला पाना मुश्किल होगा। लेकिन सुभाष घई ये करने में कामयाब रहे। 

फिल्म रिलीज़ हुई और इसने बॉक्स ऑफिस पर तगड़ी कामयाबी हासिल की। इसी फिल्म के लिए सुभाष घई को बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था और यही इनका इकलौता फिल्मफेयर अवॉर्ड भी था।

08- खलनायक (1992)

जब विधाता की शूटिंग चल रही थी तो सुभाष घई संजय दत्त से बेहद नाराज़ थे। इसकी वजह थी संजय दत्त का नशे का आदी होना और सेट पर भी नशे में ही रहना। 

संजय दत्त पर सुभाष घई इस कदर नाराज़ थे कि उन्होंने फैसला कर लिया था कि चाहे जो भी हो जाए वो अब कभी भी संजय के साथ दोबारा किसी फिल्म में काम नहीं करेंगे।

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Subhash Ghai Movies, Khalnayak(1992) - Photo: Social Media

खुद सुनील दत्त साहब ने भी सुभाष घई से संजय दत्त के लिए फिल्म बनाने की गुज़ारिश की थी। लेकिन तब भी सुभाष घई ने अपना फैसला नहीं बदला था। 

लेकिन बाद में जब संजय दत्त नशे की लत छोड़कर मुख्यधारा में वापस लौटे तो सुभाष घई ने उन्हें लीड हीरो लेकर खलनायक बनाई। सही मायनों में इसी फिल्म ने संजय दत्त को बॉलीवुड में स्थापित किया था।

09- परदेस (1997)

इस बात से बहुत कम लोग वाकिफ हैं कि परदेस में सुभाष घई माधुरी दीक्षित को बतौर हिरोइन लेना चाहते थे। उन्होंने माधुरी को ध्यान में रखकर ही इस फिल्म को लिखा भी था। 

लेकिन जिस वक्त खलनायक की शूटिंग चल रही थी उसी दौरान सुभाष घई और माधुरी का एक विवाद हो गया था। सुभाष घई तो वक्त के साथ उस विवाद को भूल गए थे। लेकिन माधुरी उस झगड़े को नहीं भूली थी।

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Subhash Ghai Movies, Pardes(1997) - Photo: Social Media

सुभाष ने जब माधुरी को परदेस फिल्म ऑफर की तो उन्होंने इस फिल्म में काम करने से इन्कार कर दिया। बाद में सुभाष घई ने महिमा चौधरी को परदेस फिल्म के लिए सिलेक्ट कर लिया। 

उस वक्त महिमा का नाम ऋतु चौधरी हुआ करता था। परदेस महिमा चौधरी की पहली फिल्म थी। इस फिल्म से महिमा चौधरी को काफी पहचान मिली थी। इसी फिल्म के लिए सुभाष घई को बेस्ट पटकथा लेखक का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला था।

10- ताल (1999)

सुभाष घई भी अब तक यशराज फिल्म्स के एनआरआई लव स्टोरी वाले फार्मूले पर काम करना शुरू कर चुके थे। परदेस फिल्म से इसकी शुरूआत भी हो चुकी थी। ताल फिल्म का म्यूज़िक टिप्स कंपनी को सुभाष घई ने पूरे छह करोड़ रुपए में बेचा था। 

सुभाष घई ने इस फिल्म में एक और एक्सपैरीमेंट भी किया था। वो छोटे शहरों की प्रेम कहानियों को मेट्रो शहरों तक लाने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन उनका ये प्रयास असफल साबित हुआ।

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Subhash Ghai Movies, Taal(1999) - Photo: Social Media

सुभाष घई ने पहले इस फिल्म के लिए मनीषा कोईराला से बात की। उनके इन्कार करने पर करिश्मा कपूर और करीना कपूर को भी ये फिल्म ऑफर की। 

लेकिन उन दोनों ने भी इस फिल्म में काम करने से मना कर दिया। बाद में सुभाष घई ने ये फिल्म ऐश्वर्या राय बच्चन को दी। ये फिल्म ही सुभाष घई की आखिरी कामयाब फिल्म मानी जाती है।

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