Pankaj Udhas | 51 रुपए में मिले थे भारत को महान पंकज उधास | Lesser Known Facts

Pankaj Udhas. बहुत मीठी और बेहद सुरीली आवाज़ के मालिक। एक ऐसी आवाज़ जो रुमानियत का समंदर भी बनी। और दर्द का दरिया भी। कई सालों तक अपने गीतों से संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले पंकज उधास अब नहीं रहे। साल 2024 की 26 फरवरी को पंकज उधास इस दुनिया को छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चले गए। और पीछे छोड़ गए अपनी मखमली आवाज़ में गाए हज़ारों गीत और गज़लें। जो उनकी यादों को हमेशा इस दुनिया में आबाद रखेंगी।

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Lesser Known Facts of Pankaj Udhas - Photo: Social Media

Pankaj Udhas जी के गीतों जितनी ही शानदार है उनके जीवन की कहानी भी। और आज Pankaj Udhas जी की कुछ अनसुनी और रोचक कहानियां ही Meerut Manthan आप पाठकों संग साझा करेगा। हमें पूरा यकीन है कि आपको पंकज उधास जी की ये कहानियां ज़रूर पसंद आएंगी।

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पहली कहानी

17 मई 1951 को गुजरात के राजकोट के पास मौजूद चरखणी नाम के एक गांव में जन्मे पंकज उधास का परिवार अपने इलाके का एक नामी ज़मींदार खानदान हुआ करता था। इनके दादा के भावनगर के राजसी परिवार से बहुत अच्छे ताल्लुक थे। और भावनगर के राजा की ज़मींनों का बहुत सा काम इनके दादा ही संभालते थे। 

ऐसे में पंकज जी के पिता केशूभाई उधास का बचपन भावनगर में गुज़रा था। भावनगर के राजा के दरबार में आने वाले संगीतकारों को काफी करीब से देखने-सुनने का मौका इनके पिता को उनके बचपन में मिलने लगा था। उनसे प्रेरित होकर इनके पिता की रूचि भी संगीत में जगी। उन्होंने बाकायदा इसराज नाम का वाद्ययंत्र बजाने की ट्रेनिंग भी ली थी। 

दूसरी कहानी

पंकज उधास के पिता सरकारी नौकरी किया करते थे। ऑफिस के बाद शाम के वक्त मिलने वाली फुर्सत में इनके पिता अक्सर इसराज बजाया करते थे। जबकी इनकी मां जीतूबेन उधास को भी संगीत में बड़ी दिलचस्पी थी। वो गाती भी बहुत अच्छा थी। माता-पिता दोनों की संगीत में दिलचस्पी देख पंकज उधास और इनके दोनों बड़े भाईयों मनहर उधास और निर्मल उधास को भी संगीत से लगाव होने लगा। 

जी हां, आज भी ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि एक वक्त के नामी गायक मनहर उधास पंकज उधास जी के सगे भाई हैं। इनके दूसरे भाई निर्मल उधास ने भी खूब गज़ल गायकी की है। हालांकि उन्हें अपने भाईयों जैसी पहचान कभी नहीं मिल सकी।

तीसरी कहानी

भारत-चीन युद्ध के बाद जब एकाएक लता जी द्वारा गाया ऐ मेरे वतन के लोगों गीत बहुत ज़्यादा लोकप्रिय हो गया तो पंकज उधास जी को भी उस गीत ने बहुत प्रभावित किया। उस ज़माने में पंकज उधास जी के घर पर एक रेडियो हुआ करता था। और तब लता जी का वो गीत रेडियो पर दिन में कई दफा बजाया जाता था। पंकज जी भी वो गीत खूब सुना करते थे। और उस गीत को याद करने के लिए इन्होंने एक नोटबुक में उसके लिरिक्स लिख लिए थे। 

ये वो दौर भी था जब इनकी संगीत की तालीम शुरू हो चुकी थी। और ये अपने स्कूल में सुबह की प्रार्थना भी गाया करते थे। कभी-कभी ये स्कूल में ऐ मेरे वतन के लोगों गीत भी गाते थे। इनके गृहनगर राजकोट में नवरात्र बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। एक बड़ी सी जगह पर हज़ारों लोग नवरात्र मनाने के लिए जमा होते थे। उस प्रोग्राम में शाम के समय कुछ सांस्कृतिक गीत-संगीत के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते थे। कई कलाकार उस कार्यक्रम में प्रस्तुति दिया करते थे। 

एक दफा ये भी अपने माता-पिता संग उस कार्यक्रम को देखने गए थे। इत्तेफाक से इनके स्कूल के एक टीचर, जो जानते थे कि ये गाते बहुत अच्छा हैं, उन्होंने इन्हें वहां देखा और आयोजकों को बताया कि ये बच्चा ऐ मेरे वतन के लोगों गीत बहुत अच्छा गाता है। इसे भी स्टेज पर गाने का मौका दीजिए। टीचर के कहने पर ये भी स्टेज पर गए और इन्होंने बड़े मन से वो गीत गाया। और चूंकि उस ज़माने में वो गीत लोगों को बहुत भावुक करता था तो इनके मुंह से वो गीत सुनकर लोग बहुत प्रभावित हुए। 

जैसे ही इनका गीत खत्म हुआ, कार्यक्रम में मौजूद चार से पांच हज़ार लोगों ने इनके लिए खड़े होकर तालियां बजाई। तालियां जब थमी तो एक सज्जन खड़े हुए और उन्होंने ऐलान किया कि मैं इस बच्चे को 51 रुपए ईनाम देना चाहता हूं। उस दिन वो मंज़र देखने के बाद इनके पिता ने तय कर लिया था कि अब तो वो अपने बेटों को संगीत की क्षेत्र में ही कामयाबी हासिल करने के लिए तैयार करेंगे। 

चौथी कहानी

ये बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि एक वक्त वो भी आया था जब पंकज उधास जी को लगता था कि इन्हें पढ़-लिखकर डॉक्टर बनना चाहिए। गाना तो ये डॉक्टरी के साथ भी करते रहेंगे। यही वजह थी कि इन्होंने साइंस से अपनी पढ़ाई की थी। मुंबई के सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में इन्होंने बीएससी में दाखिला लिया था। लेकिन संगीत इनके जीवन पर इतना असरदार साबित हुआ कि कॉलेज में आने के बाद ये पढ़ाई में कुछ ना कर सके। 

इनकी अटेंडेंस तक पूरी नहीं हो पाती थी। हालांकि ये अपने कॉलेज के लिए विभिन्न गायन प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर ईनाम जीतते रहते थे तो इन्हें क्लास कम अटेंड करने की छूट कॉलेज वालों ने दे रखी थी। उसी दौर में जब भारत में दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी तो ये बतौर स्टूडेंट दूरदर्शन पर भी एक दफा गाने गए थे।

पांचवी कहानी

पंकज जी के बड़े भाई मनहर उधास जब संगीत की दुनिया में थोड़े सफल हो गए थे तो ये भी अक्सर उनके साथ उनकी रिकॉर्डिंग्स में जाया करते थे। उन्हीं के साथ एक दफा इन्हें नामी संगीतकार उषा खन्ना जी ने देखा था। उषा जी को मनहर उधास जी ने बताया था कि ये मेरा छोटा भाई है और ये भी बहुत अच्छा गाता है। फिर एक वक्त आया जब उषा खन्ना जी उस दौर के नामी प्रोड्यूसर-डायरेक्टर बी.आर.इशारा की एक फिल्म का संगीत तैयार कर रही थी। 

उस फिल्म का नाम था कामना और वो फिल्म 1972 में रिलीज़ हुई थी। उस फिल्म के एक गीत के लिए उषा जी को किसी नई आवाज़ की ज़रूरत थी। उनके दिमाग में पंकज जी का ही ख्याल आया। उन्होंने मनहर उधास जी से पंकज जी को बुलाने को कहा। मनहर जी ने अपने भाई निर्मल उधास जी से पंकज जी को बुलाकर लाने को कहा। निर्मल जी पंकज जी को ढूंढते-ढूंढते सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज पहुंचे और वहां चलती क्लास से इन्हें उठाकर अपने साथ स्टूडियो ले आए। 

जबकी इन्हें पता ही नहीं था कि भाई इन्हें यहां क्यों लाए हैं। स्टूडियो में उषा खन्ना जी इनसे मिली और उन्होंने इन्हें एक कागज़ पर लिखी कुछ लाइनें गाकर सुनाने को कहा। पंकज ने जैसे ही वो लाइनें थोड़ी सी गाई, उषा जी ने इन्हें रोककर कहा,"माइक पर पहुंचो। तुम ये गाना गाओगे।" और इस तरह उषा खन्ना जी ने पंकज उधास जी को बतौर प्लेबैक सिंगर उनके करियर का पहला गाना दिया था। 

उस गीत के बोल थे,"तुम कभी सामने आ जाओ तो पूछूं तुमसे।" और ये गीत नक्श ल्यालपुरी साहब ने लिखा था। उस वक्त मरहूम अमीन सायानी साहब ने इस गीत को अपने प्रोग्राम बिनाका गीतमाला में खूब चलाया था। अमीन सायानी साहब को इनकी आवाज़ बहुत पसंद आई थी। और वो इनकी खूब तारीफें उस वक्त किया करते थे।

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