Sudhir Pandey | सालों से फिल्मी दुनिया में सक्रिय एक Actor जिसे आज भी बहुत कम लोग जानते हैं | Biography
Sudhir Pandey की कहानी को आज कुछ इस तरह से पेश करते हैं। 22 दिसंबर 1953. उत्तराखंड के काशीपुर में एक बच्चे का जन्म हुआ था। उस दौर में उत्तराखंड का कोई अस्तित्व नहीं था और काशीपुर तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा था।
ये बच्चा अपने परिवार के लिए बेहद खुशकिस्मत साबित हुआ। इस बच्चे के जन्म के कुछ ही दिनों बाद इसके पिता की नौकरी ऑल इंडिया रेडियो दिल्ली में लगी।
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Actor Sudhir Pandey Biography - Photo: Social Media |
और देखते ही देखते इस बच्चे के पिता भारत के सबसे मशहूर रेडियो समाचार वाचक बन गए। ये बच्चा कोई और नहीं, ये है सालों से अभिनय की दुनिया में कायम और आज भी फिल्मों में काम कर रहे अभिनेता सुधीर पांडे।
सुधीर पांडे को आपने कई धारावाहिकों में देखा होगा। ढेरों फिल्मों में चरित्र अभिनेता के तौर पर देखा होगा। कई दफा इन्होंने आपको हंसाया होगा, गुस्सा दिलाया होगा।
Meerut Manthan की आज की पेशकश Sudhir Pandey को ही समर्पित है। Bollywood के टैलेंटेड Actor Sudhir Pandey के बारे में आज हम आपको काफी कुछ बताएंगे। और यकीन कीजिएगा दोस्तों, इनकी कहानी जानकर आप भी कहेंगे कि इतने शानदार कलाकार को बॉलीवुड ने कभी भी उसके हक का सम्मान नहीं दिया।
Sudhir Pandey का शुरूआती जीवन
सुधीर पांडे का परिवार मूल रूप से उत्तराखंड के अल्मोड़ा ज़िले के पाटिया गांव का रहने वाला है। इनके दादा उत्तराखंड के सरकारी अस्पताल में डॉक्टर थे और अपने ज़माने में अल्मोड़ा में उनका काफी नाम था।
सुधीर पांडे के पिता देवकीनंदन पांडे इनके जन्म से पहले काशीपुर में रह रहे थे। लेकिन इनके जन्म के कुछ दिनों बाद ही श्री देवकीनंदन पांडे की नौकरी ऑल इंडिया रेडियो के दिल्ली केंद्र में लगी।
आज़ाद भारत के पहले सबसे मशहूर रेडियो समाचार उदघोषक के तौर पर देवकीनंदन पांडे जी का नाम हुआ। श्री देवकीनंदन पांडे जी की भाषा पर बेहद शानदार पकड़ थी।
वे केवल हिंदी ही नहीं, अंग्रेजी और उर्दू में भी पारंगत थे और इन भाषाओं को भी बड़ी आसानी से और बड़ी ही खूबसूरती से बोला करते थे। साथ ही कुमाऊंनी भाषा में भी वे पारंगत थे।
यहां बीता Sudhir Pandey का जीवन
सुधीर पांडे का बचपन अपने परिवार के साथ दिल्ली में बीता। इनकी पढ़ाई-लिखाई भी दिल्ली में ही हुई। बचपन में अक्सर सुधीर पांडे गर्मियों की छुट्टियां अपने गृहनगर अल्मोड़ा और अपने गांव पाटिया में बिताया करते थे।
कहना चाहिए कि सुधीर पांडे को अभिनय की प्रतिभा विरासत में ही मिली है। क्योंकि इनके पिता श्री देवकीनंदन पांडे जी भी एक मंजे हुए अभिनेता थे। हालांकि नौकरी की शर्तों के चलते वो कभी किसी फिल्म में तो अभिनय नहीं कर सके थे।
लेकिन कई रेडियो नाटकों में उन्होंने ज़रूर बेहद शानदार काम किया था। उस दौर में वैसे भी लोगों के पास मनोरंजन के नाम पर सिनेमा और रेडियो ही दो माध्यम हुआ करते थे।
रेडियो पर भी Sudhir Pandey ने किया काम
अपने पिता को रेडियो में विभिन्न प्रकार के रचानत्मक कार्य करते हुए देखकर बचपन से ही सुधीर पांडे का झुकाव अभिनय की तरफ होने लगा था।
जब ये आठवीं कक्षा में थे तो इन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में होने वाले रेडियो नाटकों में बाल कलाकार के तौर पर काम करने के लिए ऑडिशन दिया। ऑडिशन में इनका सिलेक्शन भी हो गया।
इसी के साथ इन्होंने अपने बचपन से ही रेडियो के लिए नाटकों में काम करना शुरू कर दिया। कॉलेज तक आते-आते ये ऑल इंडिया रेडियो पर होने वाले नाटकों के रेगुलर अभिनेता बन गए।
लोग इनके काम को काफी पसंद करने लगे। लोगों से मिलने वाली इस सराहना ने इन्हें आत्मविश्वास से भर दिया और इन्हें लगने लगा कि ये एक अच्छे अभिनेता बन सकते हैं।
मुश्किल से दी पिता ने अभिनेता बनने की इजाज़त
अभिनेता बनने का सुधीर पांडे का सपना हर दिन परवान चढ़ रहा था। लेकिन दूसरी तरफ इनके पिता श्री देवकीनंदन पांडे को इनके इसी सपने को लेकर फिक्र होने लगी थी।
देवकीनंदन पांडे जानते थे कि सिनेमा के क्षेत्र में पहचान बनाना एक बेहद कठिन कार्य है। कई ऐसे लोग हैं जो इस क्षेत्र में नाम कमाने का सपना लेकर आए और फिर गुमनामी के अंधेरों में डूब गए।
देवकीनंदन पांडे ये भी सोचते थे कि भारत में सिनेमा हर दिन कमर्शियल हो रहा है और अब कला की कद्र यहां कम होने लगी है। सुधीर उनके इकलौते बेटे थे। इसीलिए वो अपने बेटे को लेकर चिंतित रहने लगे थे।
लेकिन जब उनके दोस्तों ने उनसे कहा कि सुधीर बेहद प्रतिभाशाली नौजवान है। उसको एक बार फिल्मों में काम करने का मौका ज़रूर मिलना चाहिए तो देवकीनंदन पांडे जी मान गए और उन्होंने सुधीर को फिल्मों में काम करने की स्वीकृति दे दी।
नाटकों के ज़रिए टीवी पर आए Sudhir Pandey
पिता से फिल्मों में काम करने की परमिशन मिलने के बाद सुधीर बेहद खुश थे। हालांकि पिता ने ये शर्त भी रख दी थी कि उन्हें कम से कम ग्रेजुएशन तो करना ही होगा।
सो पिता की बात मानते हुए सुधीर पांडे ने दिल्ली के हस्तिनापुर कॉलेज में बीएससी में दाखिला ले लिया। साथ ही सुधीर पांडे दिल्ली में थिएटर में भी हिस्सा लेने लगे थे। रेडियो पर होने वाले नाटकों में काम करना इन्होंने जारी रखा।
इस तरह सुधीर पांडे अपनी ग्रेजुएशन के दौरान खुद को अभिनय करियर के लिए पॉलिश करने लग गए। इस समय तक भारत में टीवी अपने शुरूआती दौर में आ चुका था और हफ्ते में एक या दो बार टीवी पर लाइव नाटक दिखाए जाने लगे थे।
ब्लैक एंड व्हाइट टीवी के उस दौर में सुधीर पांडे को भी नाटकों के ज़रिए टीवी पर आने का मौका मिला। सुधीर कहते हैं कि दिल्ली में ग्रेजुएशन के वो तीन साल उनके जीवन के सबसे अहम तीन सालों में से एक थे।
जब कन्फ्यूज़ हो गए Sudhir Pandey
ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद सुधीर के सामने चुनौती थी कि अभिनय की बारीकियां सीखने के लिए उन्हें दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लेना चाहिए या फिर पुणे के फिल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट का रुख करना चाहिए।
कुछ दिनों के कन्फ्यूज़न के बाद सुधीर पांडे ने पुणे स्थित एफटीआई में दाखिला लिया। इसके पीछे वजह थी उस दौर में इस फिल्म इंस्टीट्यूट से कई बेहतरीन और नामी कलाकारों का निकलना और मुंबई स्थित फिल्म इंडस्ट्री में इस कॉलेज का ज़्यादा नाम होना।
सन 1974 से लेकर सन 1976 तक ये इस कॉलेज में रहे और एक्टिंग की बारीकियां सीखते रहे। और कोर्स पूरा करने के बाद इन्होंने रुख किया बॉम्बे यानि मुंबई का।
मुंबई में इसलिए परेशान हुए Sudhir Pandey
मुंबई आने के बाद सुधीर पांडे को लग रहा था कि अब आसानी से उन्हें फिल्मों में काम मिलने लगेगा। लेकिन अभी असलियत से सुधीर का सामना होना था और वो असलियत उस खयाली दुनिया से एकदम अलग थी जो उन्होंने अपने ज़ेहन में बसा ली थी।
सुधीर यहां जिस प्रोड्यूसर के पास काम मांगने जाते थे वो उनसे उनकी तस्वीरों का प्रोफाइल छोड़कर जाने के लिए कह देता। सुधीर पांडे को ये बात बेहद अजीब लगती थी। उन्हें लगता था कि भला तस्वीरों से कोई मेरी प्रतिभा का आंकलन कैसे कर पाएगा।
अगर किसी को ये जानना है कि मुझे एक्टिंग आती है या नहीं तो उसे मुझसे एक्टिंग कराकर देखनी चाहिए। तस्वीरों से कोई कैसे जान पाएगा कि मैं अच्छा अभिनेता हूं या फिर बुरा अभिनेता हूं।
करनी पड़ी पार्ट टाइम नौकरियां
प्रोड्यूसर्स को तस्वीरें देने का ये सिलसिला कुछ लंबा चला और अब सुधीर को मुंबई शहर में बने रहने के लिए पैसों की समस्या आने लगी। ऐसे में उन्होंने एक बार फिर से अपने पुराने काम की तरफ रुख किया।
यानि रेडियो में काम करना शुरू कर दिया। इस समय तक रेडियो कमर्शियलाइज़्ड होना शुरू हो चुका था। सुधीर मुंबई में रहकर रेडियो के लिए वॉइसिंग करने लगे। कई दफा इन्हें कुछ रेडियो प्रोग्राम्स में काम मिल जाता था।
रेडियो पर कमेंट्री का मौका भी इन्हें मिलने लगा। टीवी पर भी कुछ प्रोग्राम्स की कमेंट्री का काम इन्हें मिलना शुरू हो चुका था। साथ ही हफ्ते में एक या दो बार आने वाले टीवी नाटकों में भी ये हिस्सा लेकर अपना खर्चा मुंबई में चला रहे थे।
इस तरह बदलनी शुरू हुई Sudhir Pandey की किस्मत
मुंबई में रहकर सुधीर ने ये सब काम तो किए ही, साथ ही इन्होंने इप्टा यानि इंडियन पीपल्स थिएटर को भी जॉइन कर लिया। दिन में अपने सारे काम निपटाकर सुधीर शाम के समय इप्टा के साथ थिएटर किया करते थे।
इप्टा के साथ ही एक दफा ये एक नाटक कर रहे थे जिसका नाम था कलंक। उस नाटक में केवल दो ही किरदार थे। एक आम इंसान का और एक पुलिस वाले का। सुधीर पांडे ने उस नाटक में आम इंसान का किरदार निभाया था।
सुधीर ने बेहद शानदार तरीके से उस नाटक में अपना किरदार जिया था। इत्तेफाक से उस नाटक को दुलाल गुहा नाम के एक प्रोड्यूसर ने भी दूरदर्शन पर देखा था।
दुलाल गुहा को सुधीर पांडे का अभिनय बेहद पसंद आया और नाटक खत्म होने के बाद उन्होंने मुंबई के वर्ली स्थित टीवी सेंटर से सुधीर पांडे के बारे में जानकारी निकलवाई। टीवी सेंटर से दुलाल गुहा को सुधीर पांडे का टेलिफोन नंबर मिल गया।
इस मुश्किल में फंस गए थे Sudhir Pandey
दुलाल गुहा ने फोन मिलाया और सुधीर पांडे से बात की। दुलाल गुहा ने इन्हें बताया कि दूरदर्शन पर आया इनका कलंक नाम का नाटक उन्हें बेहद पसंद आया है और वो अपनी अपकमिंग फिल्म में उन्हें लेना चाहते हैं।
फिल्म का नाम धुंआ है और उसमें जिस रोल के लिए वो इन्हें लेना चाहते हैं वो बेहद शानदार रोल है। इसी दौरान सुधीर का एक और नाटक भी दूरदर्शन पर मशहूर हो रहा था।
उस नाटक का नाम था बकरी। नए-नए बने पृथ्वी थिएटर में इस नाटक का मंचन हुआ था।इस नाटक को देखने के लिए फिल्म इंडस्ट्री के उस दौर के कई दिग्गज पृथ्वी थिएटर में मौजूद थे।
उन्हीं में थे सलीम-जावेद जो कि फिल्म इंडस्ट्री का बड़ा नाम थे। सलीम-जावेद की जोड़ी को बकरी नाटक में सुधीर पांडे का अभिनय पसंद आया और उन्होंने सुधीर पांडे को रमेश सिप्पी से मिलाया।
रमेश सिप्पी उन दिनों शान फिल्म बना रहे थे। रमेश सिप्पी ने सुधीर पांडे से कहा कि शान में एक छोटा सा रोल है। वो कर लो। उसके बाद आगे जो भी बढ़िया रोल आएगा तो हम तुम्हें बुला लेंगे।
सुधीर पांडे अब थोड़ा कन्फ्यूज़ थे कि दुलाल गुहा की फिल्म धुआं में काम करें। या फिर रमेश सिप्पी जैसे बड़े नाम की बड़े बजट की फिल्म शान में काम करें।
और इस तरह खत्म हुई ये परेशानी
ये वक्त इनके लिए बेहद अहम इसलिए भी था क्योंकि इन्हें अपने करियर की शुरूआत इन्हीं दो में से किसी एक फिल्म से ही करनी थी। लेकिन इसी दौरान दुलाल गुहा ने इनसे कहा कि फिल्म बनने में थोड़ा वक्त लगेगा।
सुधीर पांडे की कन्फ्यूज़न खत्म हुई और उन्होंने रमेश सिप्पी की फिल्म शान में काम करने के लिए हां कह दिया। फिल्म की शूटिंग शुरू हुई और उस फिल्म में इनके चार से पांच दृश्य ही थे।
फिल्म में ये मेन विलेन यानि शाकाल के हैंचमैन बने थे। नौजवान सुधीर पांडे को जब आप इस फिल्म में देखेंगे तो आपको आज के सुधीर पांडे और उस दौर के सुधीर पांडे में बहुत ज़्यादा फर्क देखने को नहीं मिलेगा।
धुंआ में छा गए सुधीर पांडे
सुधीर पांडे के करियर की दूसरी फिल्म थी चक्र जिसमें स्मिता पाटिल, नसीरुद्दीन शाह और अमजद खान जैसे मंजे हुए फिल्म कलाकार मौजूद थे। इस फिल्म में ये एक टपोरी की छोटी सी भूमिका में नज़र आए थे।
इनकी तीसरी फिल्म थी धुंआ जो कि इत्तेफाक से इन्हें पहले ऑफर हुई थी। इस फिल्म में सुधीर पांडे एक इंस्पेक्टर के रोल में नज़र आए थे। ये फिल्म एक सस्पेंसस थ्रिलर फिल्म थी। फिल्म में राखी, मिथुन चक्रवर्ती, अमजद खान और अरुणा ईरानी जैसे बड़े कलाकार भी मौजूद थे।
कहना चाहिए कि इस फिल्म में इनका रोल इनकी शुरूआती दोनों फिल्मों से कहीं ज़्यादा सशक्त और दमदार था। फिल्म में अपनी एक्टिंग से सुधीर पांडे ने साबित कर दिया था कि ये लंबी रेस का घोड़ा हैं।
हुनर दिलाता गया काम
सुधीर पांडे के करियर की सबसे खास बात ये है कि इन्हें दूसरे कलाकारों की तरह डायरेक्टर प्रोड्यूसर्स के ऑफिसों के चक्कर नहीं लगाने पड़े। लोगों ने इनके हुनर से प्रभावित होकर ही इन्हें काम दिया।
ये इतनी सहजता के साथ अपने किरदारों को निभाते थे कि जब इनके किरदार दर्शकों के सामने आते थे तो लगता था मानो ये कोई अभिनेता नहीं बल्कि सच में वही आदमी है जिसकी कहानी फिल्म में बताई जा रही है।
यही बात सुधीर पांडे की पर्सनैलिटी की सबसे खास बात थी। अपनी इस खूबी का फायदा सुधीर पांडे को ये हुआ कि फिल्मों के ऑफर्स खुद इनके पास चलकर आने लगे।
उस दौर के कई बड़े प्रोड्यूसर्स और डायरेक्टर्स अपनी फिल्म के किसी खास रोल में इन्हें ही लेना चाहते थे। इसी वजह से इनका फिल्मी करियर भी जल्दी ही चल निकला और इनके पास काम की कमी कभी नहीं हुई।
सुधीर पांडे की प्रमुख फिल्में
सुधीर पांडे ने अपने करियर में दो सौ से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया है। इनके करियर की प्रमुख फिल्मों की बात करें तो ये हैं शक्ति, सागर, बेनाम बादशाह, गोला बारूद, काला बाज़ार, भ्रष्टाचार, मैं आज़ाद हूं, अग्निपथ, इंसान, दयावान, वीरगति, मैं माधुरी दीक्षित बनना चाहती हूं, इशक, बॉम्बे टू गोवा, तीस मार खान, कर्ज़, अनवर, खूनी पंजा, टॉयलेट एक प्रेम कथा, बत्ती गुल मीटर चालू और फैमिली ऑफ ठाकुरगंज।
अपने करियर में सुधीर पांडे ने हर तरह के रोल निभाए हैं। ये कॉमेडी भी करते हैं, भ्रष्ट नेता भी बने हैं, गुंडे बदमाश भी बने हैं और ईमानदार अफसर भी बने हैं।
एक बात जो इनके फिल्मी करियर को बेहद खास बनाती है वो ये कि इन्होंने अपने करियर की शुरूआत में अधिकतर अपनी उम्र से ज़्यादा बड़े किरदारों को जिया है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सुधीर पांडे कितने सक्षम और शानदार अभिनेता हैं।
इस फिल्म में छा गए थे सुधीर
साल 1989 में रिलीज़ हुई फिल्म गोला बारूद में ये इंस्पेक्टर महेंद्रनाथ बने हैं जो बेहद ईमानदार है और अपनी जान पर खेलकर जु़र्म की दुनिया के बादशाह से भिड़ता है। इस फिल्म में चंकी पांडे ने इनके बेटे का रोल किया है।
महेंद्र नाथ यानी सुनील पांडे का रोल इस फिल्म में बहुत ज़्यादा बड़ा नहीं है। लेकिन छोटे से रोल में ही ये अपनी दमदार एक्टिंग से अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे थे।
इस फिल्म में इनका एक छोटा सा एक्शन सीन भी है। हालांकि उसी सीन में ही फिल्म के मेन विलेन द्वारा इनकी हत्या भी कर दी जाती है।
सुधीर पांडे के ये रोल भी रहे थे चर्चित
इसी साल रिलीज़ हुई फिल्म काला बाज़ार में ये एक भ्रष्ट सरकारी अधिकारी बने थे जो बड़े पूंजीपतियों के साथ मिलकर सरकार और जनता को खूब चूना लगाता है।
फिल्म में शुरूआत में कादरखान इनके सबसे बड़े सहयोगी नज़र आते हैं लेकिन बाद में कादरखान ही इन्हें इनके किए की सज़ा भी दिलाते हैं। 1989 में ही इनकी एक और फिल्म आई थी जिसका नाम था भ्रष्टाचार।
इस फिल्म में ये फत्ते दादा के किरदार में नज़र आए थे जो कि एक ऐसा गुंडा था जिसका अपने इलाके में बेहद खौफ था और जो गरीब और मजबूर औरतों से गलत धंधा भी कराता था।
फत्ते दादा के सिर पर नेताओं का हाथ था और वो नेताओं के लिए लोगों का कत्ल भी किया करता था। हालांकि ज़रूरत पूरा होते ही वही नेता ही फत्ते को भी जान से मार देते हैं।
इस फिल्म में सुधीर पांडे के काम की बेहद तारीफ हुई थी। कहना चाहिए कि ये इनके करियर की पहली फिल्म थी जिसमें इन्हें इतनी देर का रोल मिला था।
इस हॉरर फिल्म में भी आए थे नज़र
अपने फिल्मी करियर में सुधीर पांडे जी ने एक हॉरर फिल्म में भी काम किया है। ये फिल्म थी खूनी पंजा जो कि साल 1991 में रिलीज़ हुई थी।
इस फिल्म में ये एक ऐसे शराबी माली बने थे जो कि लोगों के काले कारनामों में उनका साथ देता था वो भी केवल शराब की एक बोतल और कुछ पैसों के बदले में।
एक दफा वो एक लाश को कुछ लोगों के साथ दफना देता है और फिर वही लाश भूतनी बनकर आती है और अपना बदला लेती है। वो लाश उस शराबी माली को भी जान से मार देती है।
अनवर फिल्म में किया शानदार काम
सुधीर पांडे के फिल्मी करियर का एक और दमदार रोल है साल 2007 में रिलीज़ हुई फिल्म अनवर में। इस फिल्म में ये एक हिंदूवादी नेता बने हैं।
वेलेंटाइन डे के मौके पर एक दफा ये उस महिला के लिए कार्ड लेकर जाते हैं जिसे ये बेहद पसंद करते हैं। लेकिन वो महिला पहले से ही शादीशुदा है और इनके कार्ड और इनका ऑफर ठुकरा देती है।
उस महिला द्वारा ठुकराए जाने पर ये बेहद आहत होते हैं और अपने शहर में वैलेनटाइन डे को पूरी तरह से बैन करा देते हैं।
ये नेता अपने इलाके में इलेक्शन भी जीतना चाहता है इसलिए बड़े नेताओं के साथ मिलकर इलाके में खूब राजनीति करता है और अधिकतर इनकी राजनीति धर्म आधारित होती है।
टीवी पर भी जमकर किया काम
फिल्मों के अलावा सुधीर पांडे ने टीवी पर भी काफी काम किया है। टीवी पर इनका सबसे लोकप्रिय शो था बुनियाद। सन 1986 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ ये धारावाहिक दूरदर्शन के इतिहास के अमर टीवी शोज़ में से एक था।
इस शो में सुधीर पांडे लाला गेंदामल बने हैं जो कि हवेलीराम के पिता हैं। इस शो की कहानी भारत की आज़ादी के पहले और बाद के घटनाक्रमों पर आधारित थी। सुधीर पांडे के किरदार को लोगों ने बेहद पसंद किया था। बुनियाद के अलावा भी सुधीर पांडे ने कई दूसरे टीवी शोज़ में काम किया है।
इनके सबसे लोकप्रिय टीवी शोज़ हैं फिर भी दिल है हिंदुस्तानी, द सॉर्ड ऑफ टीपू सुल्तान, मायका, ससुराल गेंदा फूल, बालिका वधू, देखो मगर प्यार से, हम सात-आठ हैं, ये शादी नहीं हो सकती, हम सब एक हैं, बॉम्बे ब्लू, करीना करीना, तन्हा, मेरा ससुराल, अमानत, गुणवाले दुल्हनियां ले जाएंगे, बेलन वाली बहू और इशारों इशारों में।
Sudhir Pandey को नहीं मिला पूरा सम्मान
सुधीर पांडे पांच दशकों से अभिनय के क्षेत्र में सक्रिय हैं। छोटा पर्दा हो या फिर सिल्वर स्क्रीन, सुधीर पांडे ने हर जगह अपने अभिनय से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया है।
लेकिन हैरत की बात है कि आज तक कभी भी किसी किरदार के लिए फिल्म इंडस्ट्री की तरफ से इन्हें किसी तरह का कोई अवॉर्ड नहीं दिया गया है।
हालांकि टीवी पर अप्सरा अवॉर्ड में इन्हें करीना करीना शो के लिए बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड ज़रूर मिला है। लेकिन फिल्मी दुनिया की तरफ से इन्हें एक नॉमिनेशन तक नहीं दिया गया।
मगर Meerut Manthan और उसके सभी पाठक Sundhir Pandey के अभिनय को दिल से सलाम करते हैं। दर्शकों के दिलों में सुधीर पांडे के लिए जो प्यार है वो इस दुनिया के किसी भी अवॉर्ड से कहीं ज़्यादा कीमती है, और ये प्यार हमेशा ऐसे ही बना रहेगा। जय हिंद।
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