Ravi Baswani | एक शानदार एक्टर जिसे वक्त से पहले मौत अपने पंजों में दबा ले गई | Biography

Ravi Baswani Biography. क्या हो अगर किसी इंसान को उसका ख्वाब पूरा होने से ठीक पहले ही मौत आ जाए तो? ऐसी बातें सोचकर भी इंसान घबरा जाएगा। लेकिन ये जो साहब हैं इनके साथ तो ऐसा ही हुआ था। 

हो सकता है आपमें से कुछ लोगों को इनका नाम मालूम ना हो। लेकिन इन्हें पहचानते आप ज़रूर होंगे। क्योंकि आपने इन्हें फिल्मों और टीवी शोज़ में एक्टिंग करते हुए ज़रूर देखा होगा। 

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Ravi Baswani Biography - Photo: Social Media

इनका नाम है Ravi Baswani. 29 सितंबर 1946 को दिल्ली में Ravi Baswani जी का जन्म हुआ था। मसूरी के सेंट जॉर्ज कॉलेज से रवि बासवानी जी की स्कूलिंग हुई थी। स्कूलिंग के बाद रवि जी ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में दाखिला ले लिया। और यही कॉलेज वो जगह बना जिसने भविष्य के एक कलाकार को किसी जौहरी की तराश दिया। 

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किरोड़ीमल कॉलेज ने ज़िंदगी बदल दी

दरअसल, किरोड़ीमल कॉलेज में ही रवि बासवानी ने कुछ स्टूडेंट्स को स्टेज पर एक्टिंग करते देखा था। उन्हें देखकर इनके मन में भी एक्टिंग करन की चाह जगी। और ये भी कॉलेज के उस थिएटर ग्रुप से जुड़ गए। 

कॉलेज के थिएटर ग्रुप के साथ इन्होंने कई नाटकों में काम किया। इनके अभिनय को खूब सराहा जाता था। यानि अभिनय करने की प्रतिभा इनमें जन्मजात थी। बस उसे उभरने का मौका किरोड़ीमल कॉलेज में मिला था। 

वक्त के साथ दिल्ली के थिएटर जगत में रवि बासवानी का नाम होता चला गया। और ये इतने मशहूर हो गए कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में भी स्टूडेंट्स को एक्टिंग पर लेक्चर देने के लिए रवि बासवानी जी को बुलाया जाने लगा। 

यूं तो रवि जी के परिवार में किसी का भी फिल्म इंडस्ट्री से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था। लेकिन जब ये थिएटर से जुड़े और मशहूर हुए, तो इनकी दोस्ती ज़रूर फिल्मी दुनिया के लोगों से हो गई। 

नसीरुद्दीन शाह भी इनके अच्छे दोस्त बन गए। नसीर रवि बासवानी जी के टैलेंट से अच्छी तरह से वाकिफ थे। वो जानते थे कि रवि जी की कॉमिट टाइमिंग बहुत ज़बरदस्त है।

Naseeruddin Shah ने की Ravi Baswani के नाम की सिफारिश

एक दिन नसीरुद्दीन शाह को पता चला कि डायरेक्टर सई परांजपे एक कॉमेडी फिल्म बनाने की तैयारी कर रही थी। लीड कास्ट के तौर पर फारुख़ शेख़ और दीप्ति नवल को फाइनल कर चुकी थी। 

फिल्म का नाम रखा गया था धुआं धुआं। सई परांजपे को हीरो के दोस्त के रोल के लिए दो और कलाकारों की ज़रूरत थी। नसीरुद्दीन शाह ने सई परांजपे को रवि बासवानी का नाम सुझाया। 

उन्होंने सई से कहा कि रवि बहुत अच्छा आर्टिस्ट है। और इसकी कॉमिक टाइमिंग कमाल की है। नसीर साहब की सलाह पर सई परांजपे ने रवि बासवानी को फिल्म में कास्ट कर लिया। वो भी बिना कोई ऑडिशन लिए। 

फिल्म जब रिलीज़ हुई तो बहुत बडी हिट साबित हुई। हालांकि इसका नाम ज़रूर बदल दिया गया था। जहां पहले इस फिल्म का नाम रखा गया था धुआं धुआं, तो वहीं बाद में ये फिल्म चश्मे बद्दूर के नाम से रिलीज़ की गई थी। रवि बासवानी जी की एक्टिंग ने सभी का दिल जीत लिया।

इस फिल्म ने रवि बासवानी को दिलाया फिल्मफेयर अवॉर्ड

1983 में रवि बासवानी जी की दूसरी फिल्म आई थी जिसका नाम था धत्त तेरे की। वो फिल्म ठीक-ठाक थी। लेकिन इसके बाद तीसरी फिल्म में रवि बासवानी नज़र आए, उसने तो कामयाबी के रिकॉर्ड्स ही बना दिए।

 वो फिल्म थी जाने भी दो यारों। आज भी इस फिल्म को कल्ट कॉमेडी माना जाता है। रवि बासवानी जी की एक्टिंग का सभी ने लोहा माना। और जाने भी दो यारों के लिए रवि जी को फिल्मफेयर ने बेस्ट कॉमेडियन के खिताब से भी नवाज़ा। 

फिर तो रवि बासवानी हर दिन आगे बढ़ते चले गए। उन्होंने कई बड़ी और नोटेबल फिल्मों में काम किया जैसे अब आएगा मज़ा, लव 86, मैं बलवान, घर संसार। साथ ही छोटे बजट की फिल्मों में भी ये लगातार काम करते रहे। 

फिल्मों से लिया ब्रेक

अस्सी के दशक के आखिर में रवि बासवानी जी ने फिल्मों से एक ब्रेक लिया। फिर 1990 में इन्होंने दो फिल्मों में काम किया। वो फिल्में थी हमारी शादी व त्रियात्री। 

दो साल के ब्रेक के बाद 1992 में रवि बासवानी दिखे जान तेरे नाम में। और चूंकि हर कोई रवि जी को एक जैसे ही किरदार ऑफर कर रहा था तो उन्होंने फैसला किया कि वो फिल्मों में कम काम करेंगे। 

उन्होंने शाहरुख खान की कभी हां कभी ना(1992), अनिल कपूर की  लाडला(1994), देव आनंद की रिटर्न ऑफ ज्वैल थीफ(1996), घर बाज़ार(1998), छोटा चेतन(1998), सलमान की जब प्यार किसी से होता है(1998) में काम किया।  

रवि जी के करियर की कुछ आखिरी फिल्मों का ज़िक्र हो तो वो हैं चल मेरे भाई(2000), प्यार तूने क्या किया(2001), लकी(2005), बंटी और बबली(2005), यूं होता तो क्या होता(2006) और एंथोनी कौन है(2006)। 

अस्सी और नब्बे के दशक में रवि जी ने कुछ टीवी शोज़ में भी काम किया था। इनका पहला टीवी शो था इधर उधर जो साल 1985 में दूरदर्शन पर ब्रॉडकास्ट हुआ था। फिर इन्होंने एक से बढ़कर एक(1996), फुटबॉल की वापसी(1996) और जस्ट मोहब्बत(1997) नामक टीवी शो में काम किया।

रवि बासवानी की एक ख्वाहिश जो अधूरी ही रह गई

चूंकि रवि जी को फिल्मों में काम करने में ज़रा भी मज़ा नहीं आ रहा था तो उन्होंने डायरेक्शन करने की योजना बनाई। वो अपनी ही सुपरहिट फिल्म जाने भी दो यारों का सीक्वल बनाना चाहते थे। 

जाने भी दो यारों को कुंदन शाह ने डायरेक्ट किया था। रवि बासवानी एक दिन कुंदन शाह से मिले और उनसे कहा कि मैं जाने भी दो यारों का सीक्वल बनाना चाहता हूं। क्या आप इसे प्रोड्यूस करेंगे? 

रवि बासवानी की वो बात सुनकर कुंदन शाह बहुत खुश हुए। और उन्होंने वादा किया कि वही इस सीक्वल को प्रोड्यूस करेंगे। उन्होंने रवि बासवानी को साइन भी कर लिया था। 

रवि बासवानी बहुत खुश रहने लगे थे। फिल्म की शूटिंग के लिए लोकेशन की तलाश में वो नैनीताल गए थे। एक जगह उन्हें पसंद भी आ गई थी। मगर जब नैनीताल से वो वापस लौट रहे थे तो रास्ते में उनकी तबियत बिगड़ने लगी। 

उनकी छाती में दर्द होने लगा। धीरे-धीरे वो दर्द बढ़ने लगा। और एक वक्त वो आया जब रवि बासवानी जी को सांस लेने में परेशानी होने लगी। फिर अचानक रवि बासवानी बेहोश हो गए। 

उन्हें फौरन एक नज़दीकी हॉस्पिटल ले जाया गया। मगर उनकी जान नहीं बच सकी। डॉक्टर ने बताया कि उन्हें एक बहुत तगड़ा हार्ट अटैल आया था। 

Ravi Baswani को Meerut Manthan

वो 27 जुलाई 2010 का दिन था। 63 साल की उम्र में डायरेक्टर बनने का ख्वाब पूरा किए बिना ही रवि जी ये दुनिया छोड़ गए थे। रवि बासवानी मुंबई में रहते थे। उन्होंने शादी नहीं की थी। यानि मुंबई में वो अकेले ही रहा करते थे। 

उनकी मौत ने फिल्म इंडस्ट्री के उनके दोस्तों को बहुत दुखी कर दिया। उनके आखिरी सफर में फिल्म इंडस्ट्री के बहुत सारे लोग शामिल हुए थे। Meerut Manthan Ravi Baswani जी को ससम्मान याद करते हुए उन्हें नमन करता है।

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