Actress Bina Rai | बहुत रोचक है बीना राय जी के फिल्मों में आने की कहानी | Biography
"उसके चेहरे की चमक के सामने सादा लगा। आसमां पे चांद पूरा था, मगर आधा लगा।" प्रेमनाथ जी ने शायद इसी तरह का कोई शेर कहा होगा जब उन्होंने बीना राय जी को शादी के लिए प्रपोज़ किया होगा। प्रेमनाथ तो थे ही एक हैंडसम और सक्सेसफुल एक्टर। सो बीना जी ने भी उन्हें अपना हमसफर चुनने में कोई झिझक नहीं दिखाई।
Actress Bina Rai Biography in Hindi - Photo: Social Media
आज Bina Rai जी की कहानी हम और आप जानेंगे। 13 जुलाई 1931 को लखनऊ में Bina Rai जी का जन्म हुआ था। उनका असली नाम था कृष्णा सरीन। उनके पिता रेलवे में अफसर थे। और फिल्मों के बड़े शौकीन थे। कृष्णा सरीन जी को भी फिल्में देखना बहुत पसंद था। खुर्शीद उनकी फेवरिट हिरोईन हुआ करती थी।
वो 1950 का दौर था। कृष्णा सरीन उन दिनों 12वीं क्लास में थी जब उन्होंने व उनकी दो अन्य सहेलियों आशा माथुर व इंदिरा पांचाल ने एक दिन फिल्मफेयर मैगज़ीन में एक विज्ञापन देखा।
वो विज्ञापन उस वक्त के दिग्गज एक्टर-डायरेक्टर-प्रोड्यूसर किशोर साहू ने छपवाया था। अपनी अपकमिंग फिल्म काली घटा के लिए किशोर साहू को नई एक्ट्रेसेज़ की ज़रूरत थी।
उन्होंने उस विज्ञापन के ज़रिए देशभर की प्रतिभाओं को ऑडिशन के लिए आमंत्रित किया था। कृष्णा सरीन और उनकी दोनों सहेलियां भी वो ऑडिशन देने मुंबई जाना चाहती थी।
लेकिन समस्या ये थी कि उनके पिता भले ही फिल्मोें के शौकीन थे। मगर अपनी बेटी का फिल्मों में काम करना वो कभी पसंद नहीं करते।
कृष्णा जी ने अपने भाई रमेश सरीन से बात की और उन्हें अपने साथ मुंबई चलने के लिए तैयार कर लिया। पिता को चकमा देकर रमेश सरीन कृष्णा जी और उनकी दोनों सहेलियों, आशा माथुर व इंदिरा पांचाल को ऑडिशन दिलाने मुंबई ले गए।
किशोर साहू ने खुद उनका ऑडिशन लिया। और कृष्णा सरीन जी को उन्होंने फिल्म की मुख्य हीरोइन के तौर पर साइन कर लिया। जबकी आशा माथुर व कृष्णा पांचाल को भी फिल्म में अहम किरदार निभाने के लिए ले लिया गया।
कृष्णा सरीन खुशी-खुशी लखनऊ वापस लौट आई। मगर अब चुनौती थी कि पिता को कैसे मनाया जाएगा। हिम्मत करके उन्होंने अपने पिता को बताया कि उन्हें फिल्म में एज़ ए हीरोइन सिलेक्ट कर लिया गया है। और वो उस फिल्म में काम करना चाहती हैं।
कृष्णा सरीन जी के पिता उन पर बहुत गुस्सा हुए। उन्होंने कहा कि वो कभी भी अपनी बेटी को फिल्मों की हीरोइन नहीं बननें देंगे। कृष्णा जी को बहुत बुरा लगा। उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया। वो ज़िद पर अड़ गई कि मुझे फिल्म में काम करना ही है।
किशोर साहू को जब पता चला कि उनकी नई हीरोइन को उनके पिता मुंबई नहीं आने दे रहे हैं तो वो खुद लखनऊ आए और कृष्णा जी के पिता से मिले। उन्होंने कृष्णा जी के पिता से कहा कि एक फिल्म में इसे काम करने दीजिए। अगर आपको समझ में ना आए तो फिर मत करने दीजिएगा।
किशोर साहू के काफी समझाने पर आखिरकार कृष्णा सरीन जी के पिता मान गए। लेकिन उन्होंने एक शर्त भी रख दी। वो शर्त थी कि कृष्णा जी की मां उनके साथ जाएंगी। और शाम को छह बजे के बाद वो शूटिंग नहीं करेंगी।
किशोर साहू ने कृष्णा जी के पिता की वो शर्त मान ली। और आखिरकार अपनी मां व दोनों सहेलियों संग कृष्णा सरीन जी 'काली घटा' फिल्म में काम करने के लिए मुंबई आ गई। शूटिंग शुरू होते ही किशोर साहू ने इनका नाम कृष्णा सरीन से बदलकर बीना राय किया।
'काली घटा' 1951 में रिलीज़ हुई और ज़बरदस्त हिट साबित हुई। नई हीरोइन बीना राय के काम को हर किसी ने सराहा। फिल्म की सफलता ने बीना जी के पिता के अंदर भी आत्मविश्वास पैदा किया।
जब लोगों ने उनकी बेटी की तारीफें की तो वो भी बहुत खुश हुए। उन्होंने तय किया कि अब बेटी को एक्ट्रेस बनने दिया जा सकता है। बीना जी की दूसरी फिल्म थी 'सपना' जो कुछ खास ना कर सकी। लेकिन 1953 में आई इनकी तीसरी फिल्म 'अनारकली' ने सफलता के रिकॉर्ड्स बना दिए।
अनारकली में बीना राय जी के हीरो प्रदीप कुमार थे। यहां ये भी बता दूं कि बीना राय उर्फ कृष्णा सरीन जी की जो दो सहेलियां आशा माथुर और इंदिरा पांचाल इनके साथ एक्ट्रेस बनने लखनऊ से आई थी, वो दोनों बीना जी जैसी कामयाबी हासिल ना कर सकी थी।
बाद में आशा माथुर जी ने डायरेक्टर मोहन सहगल से शादी कर ली। और इंदिरा पांचाल जी की शादी हुई मशहूर बिजनेस फैमिली महिंद्रा परिवार में। नामी बिजनेसमैन आनंद महिंद्रा उन्हीं इंदिरा पांचाल के बेटे हैं।
बीना राय जी की चौथी और करियर की सबसे अहम फिल्म थी साल 1953 में ही आई 'औरत'। क्योंकि इस फिल्म में उन्होंने पहली दफा प्रेमनाथ जी संग काम किया था। और इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान प्रेमनाथ जी व बीना राय जी ने शादी कर ली थी।
ये पूरा किस्सा बहुत दिलचस्प है। चलिए, तफ़्सील से जानते हैं। वास्तव में बीना राय जी बरसात(1949) के बाद से ही प्रेमनाथ जी की फैन हो चुकी थी।
उनकी बड़ी तमन्ना थी कि किसी दिन उन्हें प्रेमनाथ जी से मिलने का मौका मिले। फिर जब वो खुद भी हीरोइन बन गई तो उन्होंने मन ही मन ये ख्वाहिश की थी कि काश किसी फिल्म में उन्हें प्रेमनाथ जी के साथ काम करने का मौका मिले।
ईश्वर ने उनकी ख्वाहिश पूरी की। डायरेक्टर-प्रोड्यूसर भगवान दास वर्मा ने प्रेमनाथ जी को सैमसन एंड डीलीला की कहानी पर बेस्ड अपनी अगली फिल्म 'औरत' फिल्म के लिए साइन किया।
उस फिल्म में दो हीरोइनें होनी थी। एक हीरोइन के लिए तो उन्होंने अपनी पत्नी और उस वक्त की नामी एक्ट्रेस पूर्णिमा(इमरान हाशमी की दादी) को ले लिया था।
दूसरी हीरोइन के लिए उन्हें एक नया चेहरा चाहिए था। और चूंकि Bina Rai जी तब नई ही थी। व उनकी दो फिल्में बहुत बढ़िया रही थी तो यश जौहर की सलाह पर भगवान दास वर्मा ने Bina Rai को दूसरी हीरोइन का रोल निभाने का ऑफर दिया। जिसे बीना राय जी ने बिना वक्त गवाएं स्वीकार भी कर लिया।
इस रोल से एक और दिलचस्प कहानी जुड़ी है। बीना जी के माता-पिता से यश जौहर की पुरानी जान-पहचान थी। यश जौहर जानते थे कि कृष्णा उर्फ बीना प्रेमनाथ की फैन है और उन्हें बहुत पसंद करती है।
जब भगवान दास वर्मा औरत फिल्म के लिए दूसरी हीरोइन तलाश रहे थे तब यश जौहर ने उन्हें बीना राय जी का नाम सजेस्ट किया। हालांकि उन्होंने ये बात बीना राय जी को नहीं बताई थी। उन दिनों यश जौहर प्रेमनाथ जी के सेक्रेटरी भी हुआ करते थे।
यश जौहर चाहते थे कि प्रेमनाथ बीना राय से शादी करें। जबकी उन्होंने कभी भी प्रेमनाथ जी से बीना राय से शादी करने को अपनी ज़बान से नहीं कहा था। उन्होंने बस हालात ऐसे पैदा कर दिए थे कि प्रेमनाथ बीना राय जी को जानने-पहचनाने लगें। पसंद करने लगें।
हुआ यूं कि एक दिन यश जौहर ने प्रेमनाथ से कहा,"आप इन दिनों बहुत काम कर रहे हैं। अब आपको कुछ दिन का ब्रेक लेना चाहिए। हम लोग मसूरी जाएंगे और वहां छुट्टियां बिताकर आएंगे।"
इत्तेफाक से मसूरी में बीना जी के पिता का एक बंगला उन दिनों हुआ करता था। यश जौहर ने प्रेमनाथ को उसी बंगले में ठहराने का प्लान बनाया। अब तक बीना राय को औरत फिल्म का ऑफर नहीं मिला था।
एक दिन यश जौहर ने बीना राय जी से कहा,"तुम प्रेमनाथ से मिलना चाहती हो ना? मैं उन्हें तुम्हारे मसूरी वाले बंगले पर लेकर आऊंगा। वहां उनके साथ दो-तीन दिनों का समय बिताओ। एक फिल्म भी है जिसकी कास्टिंग पर अभी काम चल रहा है। उस फिल्म का नाम 'औरत' है। हो सकता है तुम्हें वो फिल्म मिल जाए। प्रेमनाथ उसें हीरो हैं।"
कुछ दिनों बाद मसूरी में प्रेमनाथ और बीना राय की पहली मुलाकात हुई। प्रेमनाथ जी ने बीना जी की फिल्म 'काली घटा' देखी थी। इसलिए वो उन्हें पहचानते थे।
उस मुलाकात के दौरान प्रेमनाथ जी बीना जी को पसंद करने लगे। उन्होंने भी भगवान दास वर्मा से 'औरत' में दूसरी हीरोइन के तौर पर बीना राय जी को लेने की सिफारिश की। यूं बीना राय 'औरत' फिल्म में प्रेमनाथ जी की हीरोइन बनी।
शूटिंग के पहले दिन प्रेमनाथ के सामने एक्टिंग करते वक्त बीना राय बहुत नर्वस हो रही थी। उनके हाथ कंपकंपा रहे थे। लेकिन सिवाय प्रेमनाथ जी के किसी ने गौर नहीं की कि बीना राय घबरा रही हैं। उस दिन प्रेमनाथ जी ने बिना राय को नॉर्मल किया। और बीना राय प्रेमनाथ जी पर अपना दिल हार बैठी।
प्रेमनाथ जी तो बीना जी को पसंद करते ही थे। इसलिए जब उन्हें पता चला कि बीना राय भी उन्हें चाहती हैं तो उन्होंने बीना राय जी को शादी करने का प्रस्ताव दिया। जिसे बीना जी ने स्वीकार कर लिया। आखिरकार 'औरत' फिल्म की मेकिंग के दौरान प्रेमनाथ और बीना राय ने शादी कर ली।
शादी के बाद भी बीना राय ने फिल्मों में काम करना जारी रखा। कुछ फिल्मों में उन्होंने फिर से प्रेमनाथ संग भी काम किया। पूरे करियर में बीना राय ने कुल 28 फिल्मों में काम किया था। और अपने समय के हर बड़े स्टार के साथ एक्टिंग की थी।
साल 1960 में आई फिल्म 'घूंघट' के लिए बीना राय जी को 'फिल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड' मिला था। और इस तरह शादीशुदा होने के बावजूद बीना जी का करियर बढ़िया चलता रहा।
प्रेमनाथ जी व बीना राय जी ने शादी के बाद 'पी.एन.फिल्म्स' नाम से अपनी एक फिल्म कंपनी बनाई। और उन्होंने शगूफा(1953), गोलकुण्डा का क़ैदी(1954) व समंदर(1957) नामक फिल्मों का निर्माण किया। दोनों ने इन फिल्मों में एक्टिंग भी की थी।
शादी के बाद भी काम करते रहना बीना राय जी का कोई शौक नहीं था, बल्कि आर्थिक मजबूरियां थी। मगर 1966 में आई फिल्म 'तीसरी मंज़िल' के बाद जब प्रेमनाथ जी का करियर फिर से संभल गया तो बीना राय जी ने फिल्में छोड़ दी।
1968 में आई 'अपना घर अपनी कहानी' बीना राय जी की आखिरी फिल्म थी। इस फिल्म के रिलीज़ होने के बाद बीना जी ने अपना पूरा ध्यान अपने परिवार पर लगा दिया। बीना जी के दो बेटे हुए जिनके नाम हैं प्रेम किशन और मोंटी नाथ। दोनों एक्टर रह चुके हैं।
साल 1992 में प्रेमनाथ जी का निधन हो गया था। पति के जाने के बाद बीना राय जी ने खुद को दुनिया से अलग-थलग कर लिया। वो ना तो किसी फिल्मी समारोह में जाती, और ना ही किसी फैन या मीडिया वाले से बात करना पसंद करती।
ज़िंदगी के आखिरी सालों में बीना राय जी अपने छोटे बेटे मोंटी नाथ के साथ रहती थी। बीना कहती थी कि एक आम इंसान बनकर जीने में जो सुकून है वो कोई फिल्मस्टार बनकर जीने में नहीं है। 06 दिसंबर 2009 को 78 साल की उम्र में बीना राय जी का निधन हो गया था।
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