Homi Wadia | भुलाया जा चुका Bollywood का वो Filmmaker जिसकी कहानी बहुत ही कमाल है | Biography

उन दिनों होमी वाडिया पंचगनी हाईस्कूल में थे। रिज़ल्ट आया तो पता चला कि होमी वाडिया मैट्रिक में फेल हो गए। तब इनके बड़े भाई ने इन्हें पंचगनी हाईस्कूल से निकालकर मुंबई के एक स्कूल में दोबारा से मैट्रिक में एडमिशन दिलाया। 

भाई ने इनसे वादा किया कि अगर तुम इस दफा हाईस्कूल पास हो गए तो मैं तुम्हें अपने साथ अपनी लैब में लेकर जाऊंगा। इनके बड़े भाई J.B.H. Wadia फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े थे और कोहिनूर फिल्म्स में अपनी खुद की फिल्म लैबोरेटरी चलाया करते थे। 

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Homi Wadia Biography - Photo: Social Media

दूसरे प्रयास में Homi Wadia मैट्रिक में पास हो गए। उन्होंने अपने भाई से वादा पूरा करने को कहा। लेकिन Homi Wadia का पूरा परिवार इस बात के खिलाफ हो गया कि बड़े भाई इन्हें लेकर फिल्म स्टूडियो जाएं। उन्हें डर था कि अगर एक दफा होमी ने फिल्म नगरी देख ली तो उनके ऊपर भी फिल्मों का भूत सवार हो जाएगा। 

जैसे कि उनके बड़े भाई जे.बी.एच.वाडिया पर सवार है। फैमिली नहीं चाहती थी कि होमी फिल्म इंडस्ट्री से किसी भी तरह से जुड़ें। परिवार चाहता था कि होमी कॉलेज जॉइन करें और पढ़ाई आगे बढ़ाएं।

होमी वाडिया की बड़ी बहन इनके लिए ज़ेवियर्स कॉलेज का फॉर्म भी ले आई। और उन्होंने खुद ही वो फॉर्म भरकर दाखिले के लिए सबमिट कर दिया। होमी एक दिन तो ज़ेवियर्स कॉलेज गए। 

लेकिन एक दिन में ही होमी इतने परेशान हो गए कि घर लौटकर अपने परिवार वालों को एक जगह जमा करके बोले कि मैं कॉलेज नहीं जाऊंगा। 

अगर किसी ने ज़बरदस्ती की तो मैं घर छोड़कर चला जाऊंगा। मुझे फिल्म इंडस्ट्री में ही काम करना है। उस वक्त घरवाले कुछ बोले तो नहीं। लेकिन उन्होंने इन्हें परमिशन भी नहीं दी।

आखिरकार Homi Wadia प्रिंसिपल के पास पहुंचे और उनसे बताया कि मैं फिल्मों में काम करना चाहता हूं। लेकिन घरवाले नहीं मान रहे हैं। आप उन्हें समझाइए। Homi Wadia ने प्रिंसिपल को ये भी बताया कि कैसे उनके बड़े भाई ने उनसे वादा किया था कि अगर उन्होंने हाईस्कूल पास कर लिया तो बड़े भाई उन्हें अपने साथ फिल्म स्टूडियो दिखाने लेकर जाएंगे। लेकिन अब वो नहीं जा रहे हैं। प्रिंसिपल ने होमी की पूरी बात सुनी और कहा कि अपने बड़े भाई को बुलाकर लाओ।

बड़े भाई जब प्रिंसिपल से आकर मिले तो प्रिंसिपल ने उन्हें समझाया कि अगर तुमने होमी से वादा किया था तो तुम्हें अपना वादा निभाना चाहिए। अगर तुम इसे फिल्म स्टूडियो नहीं लेकर गए तो इसे बहुत बुरा लगेगा। और इस पर वो गलत असर डालेगा। 

प्रिंसिपल की बात सुनने के बाद बड़े भाई होमी को साथ लेकर घर लौट आए। घर आकर उन्होंने अपनी मां से बात की और प्रिंसिपल द्वारा दी गई सलाह के बारे में भी बताया। इनकी मां ने आखिरकार झिझकते हुए होमी को स्टूडियो ले जाने की इजाज़त दे दी। साथ ही कहा कि होमी का ध्यान रखना।

जिस वक्त ये सारा घटनाक्रम चल रहा था उससे काफी पहले ही पिता का साया होमी वाडिया के सर से उठ चुका था। घर के सभी फैसले इनकी मां व इनकी बड़ी बहन मिलकर लिया करते थे। घर का बड़ा बेटा तो किसी तरह फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ गया था। 

लेकिन वो नहीं चाहते थे कि छोटा बेटा भी फिल्म लाइन में जाए। क्योंकि उस ज़माने में फिल्मों में काम करना खराब बात मानी जाती थी। मगर होमी को तो बचपन से ही फिल्में अपनी तरफ आकर्षित करती थी। वो अखबारों व पत्र-पत्रिकाओं में फिल्मों पर लिखे जाने वाला हर लेख बड़े शौक से पढ़ते थे। 

यही वजह है कि जब होमी के बड़े भाई जे.बी.एच.वाडिया ने फिल्म इंडस्ट्री जॉइन की थी तो होमी बड़े खुश हुए थे। और उन्होंने तय कर लिया था कि वो भी भाई की तरह फिल्म लाइन में ही काम करेंगे। तभी तो घरवालों के तमाम विरोध के बावजूद होमी वाडिया ने किसी की परवाह नहीं की। 

वादे के मुताबिक इनके बड़े भाई एक दिन इन्हें अपने साथ अपनी लैब में ले गए। और इस तरह शुरू हो गया होमी वाडिया का फिल्मी सफर। भाई समझ चुके थे कि होमी मानेगा नहीं। इसलिए उन्होंने अपनी लैब में होमी को अपना असिस्टेंट बना लिया। 

थोड़े ही वक्त में होमी वाडिया ने लैब का सारा काम सीख लिया। वो अपने भाई के हैल्पिंग हैंड बन गए। वो साइलेंट फिल्मों का ज़माना था। एक दिन होमी वाडिया के मन में ख्याल आया कि वो दूसरों की फिल्मों के लिए इतना काम करते हैं। खुद कोई फिल्म क्यों नहीं बना सकते? हो

मी ने अपने बड़े भाई से कहा,"भाई। चलो हम दोनों भी कोई फिल्म बनाते हैं।" बड़े भाई बोले,"स्टोरी कहां से लाएंगे?" होमी वाडिया ने कहा,"तुम पढ़े लिखे हो। तुम्हें तो पता ही है कि दुनिया की सबसे बढ़िया स्टोरी मार्क ऑफ दि ज़ोरो है। हर फिल्म में ज़ोरो की ही कहानी कहीं ना कहीं होती है।"

जे.बी.एच.वाडिया तैयार हो गए। अब ज़रूरत थी फिल्म बनाने के लिए सामान इकट्ठा करने की। कहानी की ज़िम्मेदारी तो बड़े भाई ले ही चुके थे। इत्तेफाक से कोहीनूर स्टूडियो के मालिक के पास एक कैमरा भी मौजूद था। होमी वाडिया ने 500 रुपए में वो कैमरा खरीद लिया। वो भी 50 रुपए महीना की किश्त चुकाने का वादा करके। 

अब ज़रूरत थी एक फाइनेंसर ढूंढने की। होमी का एक दोस्त था जो काफी अमीर था। उसे जब पता चला कि होमी फिल्म बनाना चाहता है और फाइनेंसर तलाश रहा है तो उसने होमी से कहा कि मैं तुम्हें एक हज़ार रुपए फिल्म बनाने के लिए दूंगा। 

होमी ने कहा कि मुझे कार की ज़रूत भी होगी। वो दोस्त अपनी कार देने को भी राज़ी हो गया। इस शर्त पर की फिल्म के असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर उसका नाम दिया जाना चाहिए।

अब ज़रूरत थी फिल्म रील की। उस ज़माने में फिल्म रील बहुत महंगी आती थी। किसी फिल्म प्रोड्यूसर के सामने सबसे बड़ी चुनौती फिल्म रील को बर्बाद होने से बचाना ही होती थी। चूंकि होमी के पास बजट ज़्यादा नहीं था तो उन्होंने इसका एक तगड़ा तोड़ निकाला। 

उन्होंने निगेटिव रील इस्तेमाल करने की बजाय पॉजॉिटिव्स पर ही शूटिंग करने का फैसला किया। उस ज़माने में कुछ ही रंगों में निगेटिव्स को पॉजिटिव्स में क्रिएट किया जाता था। 

उनमें से एक रंग पीला भी था। और पीले रंग की ये खासियत थी कि उसे फिर से शूटिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था। उस ज़माने में और भी कई प्रोड्यूसर्स ऐसा ही करते थे। शर्त बस ये थी की शूटिंग आउटडोर होनी चाहिए। होमी ने अपने भाई से कह दिया कि स्क्रिप्ट ऐसे लिखिए कि सभी सीन्स आउटडोर शूट हों। इंडोर कुछ भी ना हो।

ये सब होने के बाद अब बारी थी फिल्म के लिए एक्टर्स तलाशने की। एक दिन होमी की नज़र एक लड़के पर गई। वो लड़का कोहिनूर फिल्म कंपनी के कपाउंड में ही रहता था। उसे जिम्नास्टिंग का बड़ा शौक था। होमी ने भांप लिया कि ये लड़का फिल्मों में भी काम करना चाहता है। 

उस लड़के का नाम था यशवंत भावे। वो लड़का दिखने में भी अच्छा था। होमी उस लड़के के पास गए और उससे बोले कि मैं तुम्हें अपनी फिल्म में हीरो के तौर पर लेना चाहता हूं। लेकिन मैं तुम्हें कोई पैसा नहीं दे सकूंगा। हां, अगर फिल्म सेल हो गई तब मैं तुम्हें पांच सौ रुपए ज़रूर दूंगा।

यशवंत भवे नामक उस लड़के ने होमी से कहा कि मैं एक्टिंग करना चाहता हूं। हीरो बनना चाहता हूं। इसलिए फिलहाल अगर तुम मुझे पैसा नहीं भी दोगे तो मुझे कोई परेशानी नहीं है। इस तरह होमी वाडिया को अपनी पहली फिल्म के लिए हीरो मिल गया। उसी दौरान कोहीनूर फिल्म कंपनी में ही एक लड़की बतौर एक्स्ट्रा कलाकार नौकरी कर रही थी। 

होमी वाडिया ने उसे फिल्म की हीरोइन की हैसियत से साइन कर लिया। और फिल्म के विलेन बाबूराओ पाई जो उन दिनों एक्टिंग करने का मौका हासिल करने की ताक में थे। वो भी बिना किसी पैसे के फिल्म में काम करने के लिए राज़ी हो गए।

इस तरह होमी वाडिया और उनके भाई जे.बी.एच. वाडिया ने मिलकर अपनी पहली फिल्म बनाई जिसका अंग्रेजी नाम था थंडरबोल्ट। महज़ दस दिनों के भीतर फिल्म की शूटिंग कंप्लीट कर ली गई थी। हिंदी में उस फिल्म को दिलेर डाकू के नाम से रिलीज़ किया गया था। 

ये एक साइलेंट फिल्म थी जो साल 1931 में रिलीज़ हुई थी। और फिल्म को बनाने में दो हज़ार रुपए का खर्च आया था। जिस डिस्ट्रीब्यूटर ने फिल्म डिस्ट्रीब्यूट करने की ज़िम्मेदारी ली थी उसने पहले दो हज़ार रुपए वाडिया ब्रदर्स को चुकाए। इस फिल्म बनाने के लिए जो कर्ज़ इन्होंने लिया था वो इन्होंने चुका दिया। 

फिल्म का पहला शो सुपर सिनेमा में रखा गया था। इस वक्त तक होमी वाडिया अपने दोस्त की कार उसे लौटा चुके थे। और चूंकि तब इनके पास कोई कार नहीं थी तो दोनों भाई ट्राम की सवारी करके सुपर सिनेमा तक पहुंचे थे। सिनेमा हॉल जाकर दोनों भाई काफी खुश हुए। क्योंकि शो हाउसफुल था। होमी वाडिया और उनके भाई की खूब तारीफें हुई। 

इस तरह भारती सिनेमा को मिले होमी वाडिया जिन्होंने बाद में अपना खुद का बैनर वाडिया मूवीटोन स्थापित किया। और कई सुपरहिट धार्मिक व स्टंट फिल्मों का निर्माण किया। जिनमें साल 1961 की बहुचर्चित फिल्म सम्पूर्ण रामायण भी शुमार होती है। 

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