Biography of Bollywood Actor Dev Kumar | लंबे-चौड़े खलनायक देव कुमार की कहानी जो आज भुलाए जा चुके हैं
"अगर बेवफा तुझको पहचान जाते। खुदा की कसम हम मुहब्बत ना करते।" रफी साहब का गाया ये गीत साल 1969 में आई फिल्म "रात के अंधेरे में" से है और इन साहब पर पिक्चराइज़्ड है। नाम है इनका Dev Kumar. पुरानी फिल्मों का एक जाना-पहचाना चेहरा।
फिल्मों में आने से पहले इन्होंने कई सरकारी नौकरियां की थी। ये सेना में थे। पुलिस में भी रहे। फिर कस्टम डिपार्टमेंट में भी काम किया। और उसके बाद ये फिल्मी दुनिया में आए।
वैसे इनका रियल नेम भी कुछ और ही था। इनका रियल नेम था Chaman Lal Kohli. पर चूंकि ये बचपन से ही देवानंद और दिलीप कुमार के फैन थे तो जब फिल्मी दुनिया में आए तो देव-दिलीप के नामों को मिलाकर इन्होंने अपना नाम Dev Kumar रखा।
Biography of Bollywood Actor Dev Kumar - Photo: Social Media
तबस्सुम जी को दिए एक इंटरव्यू में Dev Kumar जी ने बताया था कि फिल्में उन्हें बचपन से ही पसंद थी। लेकिन घर पर फिल्म लाइन में जाने की बात Dev Kumar चाहकर भी नहीं कह सके। क्योंकि घरवाले फिल्म लाइन को बेहद खराब समझते थे। देव कुमार जानते थे कि अगर उन्होंने घरवालों से फिल्मों में जाने की बात कही तो उनकी कुटाई हो जाएगी।
देव कुमार जी को लिखने का भी शौक था। और वो शौक भी उन्हें बचपन से ही था। वो कविताएं-शायरियां लिखा करते थे। अगर गलती से देव कुमार की लिखी कोई कविता, कोई शेर उनके पिता देख लेते थे तो वो बुरी तरह घबरा जाते थे।
ऐसा कई दफा हुआ भी था जब पिता ने देव कुमार का लिखा कुछ पढ़ा और उनसे पूछा कि ये किसने लिखा है। उस स्थिति में देव कुमार की हालत बहुत खराब हो जाती थी। लगता था जैसे पिता जी कभी भी पिटाई कर सकते हैं। हालांकि पिता ने कभी भी लिखने को लेकर देव कुमार पर हाथ नही उठाया।
Dev Kumar जी कहते हैं कि अगर माता-पिता का खौफ ना होता तो वो शायद बहुत पहले ही फिल्म इंडस्ट्री में आ जाते। खैर, जब Dev Kumar फिल्म इंडस्ट्री में आए तो कुछ फिल्मों में उन्होंने मुख्य हीरो के तौर पर ही काम किया था। मगर बाद में वो विलेन बन गए।
Dev Kumar जी ने तबस्सुम गोविल जी को दिए इंटरव्यू में कहा था कि वो जानबूझकर विलेन नहीं बने थे। फिल्म इंडस्ट्री ने ही उन्हें विलेन के रोल देने शुरू कर दिए थे। इसिलिए वो विलेन बनने को मजबूर हुए थे।
1 जनवरी 1930 को पेशावर में चमन लाल कोहली उर्फ देव कुमार जी का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम था श्रीराम कोहली। वो एक किसान थे। साथ ही साथ पहलवानी भी किया करते थे। कुश्तियां भी लड़ा करते थे। मजबूत कद काठी देव कुमार को अपने पिता से ही विरासत में मिली थी।
देव कुमार जी की मां एक गृहणी थी। उनका नाम था लालदई। देव कुमार जी के दो भाई व दो बहनें भी थी। 12वीं क्लास तक देव कुमार जी ने उर्दू मीडियम से पढ़ाई की थी। यही वजह है कि उर्दू भाषा पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ थी। उर्दू साहित्य की भी उन्हें गहरी समझ थी। देव कुमार जी ने दिल्ली से ग्रेजुएशन किया था।
देव कुमार जी को नाटक लिखने की प्रेरणा उर्दू साहित्य पढ़कर ही मिली थी। अक्सर घर वालों से छिपकर वो उर्दू भाषा में नाटक लिखते थे। और जैसा कि बताया जा चुका है कि उनके घर पर फिल्मों में काम करने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था।
इसलिए बचपन से ही एक्टर बनने का ख्वाब देखने वाले देव कुमार जी ने पहले वो किया जो उनके पिता चाहते थे। पिता की खुशी का ख्याल करते हुए वो पहले सेना में नौकरी करने पहुंचे। फिर पुलिस सेवा में आए। और फिर कस्टम अधिकारी बने। मगर इन सभी कामों में उनका दिल कभी नहीं लगा।
इन नौकरियों के दौरान ही देव कुमार जी ने उन ड्रामों में भी अभिनय किया जो किसी वक्त पर उन्होंने खुद लिखे थे। जब कस्टम डिपार्टमेंट में नौकरी करने वो आए तो वो नुक्कड़ नाटक करने भी लगे थे। उन दिनों देव कुमार दिल्ली में तैनात थे।
एक दिन एक नुक्कड़ नाटक के दौरान दिग्गज डायरेक्टर सत्येन बोस जी की नज़र Dev Kumar जी पर पड़ी। सत्येन बोस को देव कुमार बड़े सही लगे। वो देव कुमार को अपने साथ मुंबई ले आए। सत्येन बोस जी ने ही बहैसियत हीरो देव कुमार जी को अपनी फिल्म में पहला ब्रेक दिया था। उस फिल्म का नाम था "मेरे लाल" और वो फिल्म साल 1967 में रिलीज़ हुई थी। उस फिल्म में माला सिन्हा व इंद्राणी मुखर्जी देव कुमार के अपोज़िट थी।
देव कुमार के बारे में ये बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि उन्होंने कुछ हॉलीवुड फिल्मों में भी काम किया था। दरअसल, उनकी शारीरिक बनावट इतनी विशाल थी कि हॉलीवुड फिल्मों में काम करने के ऑफर भी उन्हें मिलने लगे।
साल 1971 में देव कुमार हिंदी फिल्म इंडस्ट्री छोड़कर हॉलीवुड चले गए। और वहां कुछ सालों तक उन्होंने काम किया। लेकिन उन्हें कभी बहुत खास रोल हॉलीवुड फिल्मों में ना मिल सके। इसिलिए अगले ही साल, यानि 1972 में देव कुमार भारत वापस लौट आए।
हॉलीवुड जाने के अपने फैसले को देव कुमार अपने फिल्मी करियर की सबसे बड़ी गलती मानते थे। क्योंकि उससे पहले वो हिंदी फिल्मों में बतौर हीरो काम कर रहे थे। काफी पैसा भी उन्होंने कमा लिया था। लेकिन जब वो हॉलीवुड से लौटे तो ना तो उनके पास पैसा था और ना ही काम था। उनकी स्थिति बहुत खराब थी।
वहां से लौटने के बाद। उस बुरे वक्त में शम्मी कपूर साहब ने अपनी फिल्म "मनोरंजन" में देव कुमार को काम दिया। हालांकि शम्मी कपूर ने उन्हें विलेन का रोल दिया था। इस तरह मनोरंजन(1974) फिल्म से देव कुमार ने बतौर विलेन फिल्मों में काम शुरू किया। हालांकि विलेन बनने का उन्हें दुख बहुत हुआ था।
मगर एक बड़ा फायदा भी हुआ था। विलेन के तौर पर देव कुमार को बहुत बड़ी-बड़ी फिल्मों में काम करने का मौका मिला। बड़े बैनर और बड़े बजट की फिल्मों में काम करने से फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें बढ़िया नाम मिला। देव कुमार ने उस दौर के हर बड़े डायरेक्टर-प्रोड्यूसर और एक्टर की फिल्मों में काम किया। और नाम व पैसा भी कमाया।
देव कुमार जी की निजी ज़िंदगी की बात करें तो साल 1966 में उनकी शादी हो गई थी। उनकी पत्नी का नाम नम्रता था। उन्होंने नम्रता जी से प्रेम विवाह किया था। नम्रता जी एयर होस्टेस थी। देव कुमार और नम्रता जी की तीन बेटियां हुई। बड़ी बेटी का नाम है मनीषा जो कि मॉडलिंग कर चुकी हैं। दूसरी बेटी दिव्या एक बिजनेसवुमन हैं। जबकी देव कुमार जी की सबसे छोटी बेटी रजनी आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं। रजनी जी के पति भी आयुर्वेदिक डॉक्टर ही हैं।
देव कुमार जी इस्कॉन से भी जुड़े थे। मुंबई के जुहू इलाके में मौजूद इस्कॉन मंदिर की स्थापना में देव कुमार जी ने बहुत सहयोग दिया था। चूंकि देव कुमार जी बहुत अच्छा बोलते थे और विभिन्न विषयों पर उनका ज्ञान बहुत बढ़िया था तो विभिन्न संस्थाएं व कॉलेजेस उन्हें अपने यहां स्पीच देने के लिए बुलाते थे।
17 सितंबर 1990 के दिन भी उन्हें के.सी.कॉलेज हॉल में एक स्पीच ही देनी थी। उन्होंने बहुत अच्छी स्पीच दी भी। देव कुमार को सुनने आए लोग उनकी स्पीच से इतना प्रभावित हुए कि हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। स्पीच खत्म करके देव कुमार वापस अपनी सीट पर आकर बैठे ही थे कि उन्हें हार्ट अटैक आ गया। और उनकी मौत हो गई।
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