Woh 7 Din 1983 | 15 Unknown Facts | Anil Kapoor | Naseeruddin Shah | Padmini Kolhapure | Boney Kapoor

Woh 7 Din. ये वो फिल्म है जिसने सही मायनों में अनिल कपूर को लीड एक्टर बनाया था।  एक ऐसी फिल्म जिसने प्रेम को भारतीय संस्कृति के नज़रिए से सिल्वर स्क्रीन पर प्रजेंट किया। कहना चाहिए कि इस फिल्म ने प्रेम का सही मतलब बताया था। इस फिल्म में बताने की कोशिश की गई है कि तलाक विदेशी संस्कृति है।

हमारे भारत में अगर पति.पत्नी एक बार परिणय सूत्र में बंध गए तो फिर ये बात कोई मायने नहीं रखती कि उनका अतीत क्या था। "वो 7 दिन" 23 जून 1983 को रिलीज़ हुई थी। यानि आज इस फिल्म को रिलीज़ हुए 41 साल पूरे हो गए। अनिल कपूर और पद्मिनी कोल्हापुरे स्टारर ये फिल्म दर्शकों को काफी पसंद आई थी। 

" वो 7 दिन" पहली ऐसी फिल्म थी जिसमें अनिल कपूर लीड रोल ने लीड रोल निभाया था। इस फिल्म में नसीरुद्दीन शाह, सतीश कौशि, नीलू फूले, जगदीप, दीना पाठक, आशालता वबगांवकर, सुचित्रा त्रिवेदी और राजू श्रेष्ठा ने भी अहम भूमिकाएं निभाई थी। 

फिल्म में कुल पांच गाने थे जिन्हें आनंद बक्षी ने कलमबद्ध किया था और लक्ष्मीकांत.प्यारेलाल ने इन गीतों को अपनी धुनों से सजाया था। फिल्म का सबसे लोकप्रिय गीत था प्यार किया नहीं जाता हो जाता है। और ये गीत आज भी युवाओं के बीच काफी पसंद किया जाता है। 

woh-7-din-movie-trivia
Woh 7 Din Movie Trivia - Photo: Social Media

Meerut Manthan पर आज "Woh 7 Din" फिल्म की मेकिंग से जुड़ी कुछ अनसुनी और रोचक कहानियां कही जाएंगी। उम्मीद है ये कहानियां आपको पसंद आएंगी।

पहली कहानी

"वो 7 दिन" आंधा 7 नातकल नाम की एक तमिल फिल्म का रीमेक थी। उस फिल्म को नामी तमिल डायरेक्टर के. भाग्यराज ने डायरेक्ट किया था। और खुद के. भाग्यराज ने ही उस फिल्म में लीड रोल भी निभाया था। 

जानकारी के लिए बता दें कि हिंदी में रीमेक होने से पहले ये फिल्म तेलुगू में राधा कल्यानम नाम से रीमेक की गई थी। तेलुगू रीमेक में लीड रोल निभाया था चंद्र मोहन और राधिका ने। तेलुगू रीमेक को डायरेक्ट किया था बापू ने। और उन्होंने ही इस फिल्म के हिंदी वर्जन "वो 7 दिन" को भी डायरेक्ट किया था।

दूसरी कहानी

"वो 7 दिन" बतौर लीड हीरो अनिल कपूर की पहली फिल्म थी। इससे पहले अनिल कपूर ने कुछ फिल्मों में काम ज़रूर किया था। लेकिन उन सबमें वो सपोर्टिंग रोल्स में ही नज़र आए थे। 

कुछ में तो उन्होंने कैमियो ही किया था। ये वो वक्त था जब कोई भी बड़ा डायरेक्टर अनिल कपूर को अपनी फिल्म में लीड रोल में कास्ट नहीं करना चाहता था। 

पर चूंकि "वो 7 दिन" अनिल कपूर के पिता सुरिंदर कपूर और भाई बोनी कपूर मिलकर प्रोड्यूस कर रहे थे तो इस फिल्म में उन्हें हीरो बनने का मौका मिल गया। अनिल कपूर ने भी इस मौके को गंवाया नहीं। उन्होंने फिल्म में बहुत बढ़िया काम किया और ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर खूब चली।

तीसरी कहानी

"वो 7 दिन" फिल्म बनाने के लिए अनिल कपूर के भाई बोनी कपूर को काफी संघर्ष करना पड़ा था। यूं तो उनके पिता सुरिंदर कपूर एक फिल्म प्रोड्यूसर थे। 

लेकिन वो कोई सफल फिल्म प्रोड्यूसर नहीं थे। लिहाजा उनके पास बजट की कमी थी। केण्भाग्यराज से इस फिल्म के हिंदी रीमेक के राइट्स खरीदने के लिए बोनी और अनिल कपूर दोनों चेन्नई गए थे।

लेकिन भाग्यराज ने इनसे इस फिल्म के राइट्स देने के बदले जो रकम मांगी वो इनके पास नहीं थी। इत्तेफाक से उसी वक्त संजीव कुमार भी चेन्नई में अपनी एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। 

अनिल और बोनी संजीव कुमार से मदद मांगने पहुंच गए। संजीव कुमार ने बड़ा दिल दिखाते हुए बोनी को कुछ लाख रुपए दे दिए। जबकी शबाना आज़मी ने भी बोनी कपूर को कुछ रुपए दिए। और फिर फाइनली भाग्यराज से बोनी कपूर ने इस फिल्म के राइट्स खरीद लिए। 

चौथी कहानी

"वो 7 दिन" की सफलता ने जहां अनिल कपूर को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित कर दिया। तो वहीं बोनी कपूर भी इस फिल्म से काफी पैसा कमाने में सफल रहे। 

इस फिल्म की सफलता से उत्साहित बोनी कपूर ने अनिल कपूर और श्रीदेवी को लेकर गोविंदा नाम की एक फिल्म बनाने का ऐलान कर दिया। उस फिल्म के डायरेक्शन का ज़िम्मा भी बोनी ने "वो 7 दिन" के डायरेक्टर बापू को दिया। 

लेकिन वो फिल्म कभी नहीं बन पाई। और वो इसलिए क्योंकि उसी वक्त बोनी कपूर को मिस्टर इंडिया का आइडिया मिल गया और वो पूरी तरह से उसी पर फोकस्ड हो गए। 

पांचवी कहानी

"वो 7 दिन" के लिए बोनी कपूर ने पद्मिनी कोल्हापुरे को साल 1982 में उस वक्त साइन किया था जब उनकी फिल्म प्रेम रोग रिलीज़ भी नहीं हुई थी। 

लेकिन "वो 7 दिन" साइन करने के कुछ ही दिन बाद "वो 7 दिन" रिलीज़ हो गई और उस फिल्म की कामयाबी ने पद्मिनी कोल्हापुरे को रातों.रात इंडस्ट्री की टॉप एक्स्ट्रेसेज़ की कतार में शुमार करा दिया।

पद्मिनी कोल्हापुरे के पास फिल्मों के ऑफर्स की बाढ़ सी आ गई। और "वो 7 दिन" फिल्म के लिए डेट निकाल पाने में पद्मिनी को बहुत परेशानियां हुई। तब अनिल कपूर ने पद्मिनी कोल्हापुरे से डेट लेने के लिए बहुत मेहनत की। अनिल पद्मिनी की हर फिल्म की शूटिंग पर नज़र बनाकर रखते। 

और जैसे ही उन्हें पता चलता कि सप्ताह के किसी पर्टिकुलर दिन में पद्मिनी किसी फिल्म की शूटिंग नहीं कर रही हैंए वो पद्मिनी को "वो 7 दिन" फिल्म की शूटिंग करने के लिए राज़ी कर लेते थे। 

कहा तो ये भी जाता है कि पद्मिनी फिल्म ना छोड़ें इसके लिए अनिल कपूर उनकी हर फिल्म के सेट पर उनके लिए खाने का टिफिन भिजवाते थे। 

और इतना झंझट अनिल व बोनी कपूर को इसलिए करना पड़ रहा था क्योंकि एक तो प्रेम रोग की सफलता के बाद पद्मिनी कोल्हापुरे स्टार बन गई थी।  

उनका फिल्म में होना काफी फायदे का सौदा हो सकता था। दूसरे ये कि उस वक्त की कोई भी टॉप एक्ट्रेस नए.नवेले अनिल कपूर के साथ काम करने के लिए तैयार नहीं हो रही थी।

छठी कहानी

"वो 7 दिन" फिल्म में नसीरुद्दीन शाह का निभाया डॉक्टर आनंद का किरदार काफी चर्चित रहा था। लेकिन ये बात कम ही लोगों को मालूम है कि पहले नसीरुद्दीन शाह ने ये फिल्म ठुकरा दी थी।

दरअसल नसीरुद्दीन शाह को लग रहा था कि अनिल कपूर जैसे एक न्यूकमर आर्टिस्ट के सामने सपोर्टिंग रोल करना उनके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। इससे उनकी मार्किट वैल्यू गिर सकती है। 

पर चूंकि बोनी कपूर चाहते थे कि नसीरुद्दीन शाह इस फिल्म में ज़रूर काम करें। इसलिए उन्होंने नसीरुद्दीन शाह को उनकी फीस से भी ज़्यादा कीमत चुकाई थी। 

दरअसल बोनी को लगता था कि अनिल को तो कोई जानता नहीं है। लेकिन पद्मिनी कोल्हापुरे और नसीरुद्दीन शाह को सब जानते हैं। इन दो बड़े नामों के होने से डिस्ट्रिब्यूटर्स इस फिल्म को खरीदने में दिलचस्पी ज़रूर दिखाएंगे। और हुआ भी ठीक ऐसा ही था।

सातवी कहानी

"वो 7 दिन" फिल्म में बोनी कपूर पहले मिथुन चक्रवर्ती को लेना चाहते थे। लेकिन उस वक्त तक डिस्को डांसर फिल्म की ज़बरदस्त सफलता ने मिथुन को स्टार बना दिया था। 

बोनी जब इस फिल्म का ऑफर लेकर मिथुन के पास गए तो उन्होंने अपनी फीस दोगुनी कर दी। लिहाज़ा बोनी ने मिथुन को कास्ट करने का आइडिया ड्रॉप कर दिया। 

मिथुन की तरफ से निराशा मिलने के बाद अनिल कपूर ने भाई बोनी कपूर से कहा था कि आप मुझे इस फिल्म में कास्ट कीजिए। 

लेकिन चूंकि अनिल को उस वक्त तक कोई जानता नहीं था तो बोनी को ये बात सही नहीं लगी। बोनी ने संजीव कुमार और रणधीर कपूर को भी इस फिल्म में लेने की प्लानिंग की थी। 

मगर वहां भी बोनी की दाल नहीं गल पाई। और आखिरकार अपना दिल मजबूत करके बोनी ने अपने छोटे भाई अनिल कपूर  को ही इस फिल्म में लीड रोल के लिए कास्ट कर लिया। जो अल्टीमेटली फायदे का सौदा ही साबित हुआ।

आठवीं कहानी

"वो 7 दिन" फिल्म से पहले अनिल कपूर का फिल्म इंडस्ट्री में क्या ओहदा था इसका अंदाज़ा आप ऐसे लगा सकते हैं कि जब बोनी कपूर ने अनिल को लेकर ये फिल्म बनाने का ऐलान किया तो एक के बाद एक दो फाइनेंसर्स ने इस फिल्म में पैसा लगाने से मना कर दिया। 

जबकी दो तीन नामी डिस्ट्रीब्यूटर्स ने भी इस फिल्म से जुड़ने से इन्कार कर दिया। और तो और कुछ एक्ट्रेसेज़ ने भी अनिल कपूर का नाम सुनकर ही इस फिल्म में काम करने से मना कर दिया था।

दरअसलए ये वो दौर था जब किसी को नहीं लग रहा था कि अनिल कपूर कभी फिल्म इंडस्ट्री में सफल होंगे। लेकिन इस फिल्म के रिलीज़ होने के बाद अनिल कपूर ने उन सबकी बोलती बंद कर दी जो उनके टैलेंट पर शक कर रहे थे।

नौंवी कहानी

"वो 7 दिन" नामी कॉमेडियन और डायरेक्टर रहे स्वर्गीय सतीश कौशिक की डेब्यू फिल्म थी। फिल्म में सतीश कौशिक का रोल काफी छोटा था। और इस रोल के लिए उन्हें मात्र 201 रुपए देने का वादा बोनी कपूर ने किया था। 

लेकिन शूटिंग के दौरान अनिल कपूर और सतीश कौशिक के बीच इनती बढ़िया दोस्ती हुई की अनिल ने अपने भाई बोनी कपूर से सतीश कौशिक को पूरे पांच सौ रुपए देने की रिक्वेस्ट की। बोनी ने अनिल की रिक्वेस्ट मान भी ली। 

मुंबई के वर्ली स्थित एक मंदिर में सतीश कौशिक के कुछ सीन्स शूट किए गए। और वहीं पर बोनी कपूर ने सतीश कौशिक को पांच सौ रुपए दे दिए। उसी दिन से सतीश कौशिक वर्ली के उस मंदिर को अपने लिए शुभ मानने लगे थे। 

दसवीं कहानी

"वो 7 दिन" नाम रखने से पहले बोनी कपूर इस फिल्म का नाम संजोग रखना चाहते थे। इसी नाम से ही "वो 7 दिन" की शूटिंग शुरू भी हुई थी। 

लेकिन बाद में बोनी कपूर ने इस फिल्म का नाम संजोग से बदलकर "वो 7 दिन" रख दिया। इसी फिल्म में बेबी सुचिता भी नज़र आई थी जिन्होंने नसीरुद्दीन शाह की बेटी का किरदार निभाया था। ये फिल्म बेबी सुचिता की पहली फिल्म थी।

बेबी सुचिता ने इसके बाद अनिल कपूर और पूनम ढिल्लन की फिल्म लैला में भी काम किया था जो "वो 7 दिन" के एक साल बाद यानि 1984 में रिलीज़ हुई। 

आगे चलकर बेबी सुचिता, सुचिता त्रिवेदी के नाम से मशहूर हुई और इन्होंने मिशन कश्मीर और फ़िराक़ जैसी फिल्मों में काम किया। 

हालांकि फिल्मों से ज़्यादा ये छोटे पर्दे पर सफल हुई और इन्होंने कहानी घर घर की, बा बहु और बेबी सहित कई नामी टीवी शोज़ में काम किया।

11वीं कहानी

"वो 7 दिन" में अपने भाई अनिल कपूर को साइन करने की वजह से बोनी कपूर फिल्म इंडस्ट्री के लोगों में चर्चा का विषय बन गए थे। 

अक्सर लोग कहते थे कि बोनी की हिम्मत की दाद देनी होगी। जिस लड़के को कोई फिल्म में लेना नहीं चाहता। कोई एक्ट्रेस जिसके साथ काम नहीं करना चाहती।

वो उस लड़के को लेकर फिल्म बना रहे हैं। अपने भाई पर बोनी बहुत बड़ा जुआ खेल रहे हैं जिसमें अगर उनकी हार हुई तो वो तबाह हो जाएंगे। 

लेकिन हम यहां आपको एक बात बताना चाहेंगे जो ज़्यादा लोग नहीं जानते। बोनी कोई इकलौते इंसान नहीं थे जिन्होंने उस वक्त अनिल कपूर पर दांव लगाया था जब उन्हें लोग लंगड़ा घोड़ा समझ रहे थे।

उसी दौरान सावन कुमार और यश चोपड़ा ने भी अनिल कपूर पर भरोसा जताया था। सावन कुमार ने अनिल कपूर को अपनी फिल्म लैला में साइन किया था। 

जबकी यश चोपड़ा ने मशाल में अनिल कपूर को कास्ट किया था। और इन दोनों ही फिल्मों की शूटिंग "वो 7 दिन" से पहले ही शुरू हो गई थी। 

लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि "वो 7 दिन" लैला व मशाल से पहले कंप्लीट भी हो गई व रिलीज़ भी हो गई। "वो 7 दिन" बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट साबित हुई। 

अनिल की कामयाबी का फायदा यश चोपड़ा की मशाल को भी मिला। मशाल में भी लोगों ने अनिल कपूर के काम को बहुत पसंद किया। 

मशाल के लिए तो अनिल कपूर को फिल्मफेयर ने बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर अवॉर्ड भी दिया जो कि अनिल कपूर के करियर का पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड था। 

12वीं कहानी

"वो 7 दिन" अनिल कपूर की लीड हीरो के तौर पर पहली फिल्म ज़रूर है। लेकिन एक वक्त पर ये लगभग तय ही हो गया था कि अनिल कपूर सावन कुमार की फिल्म लैला से बतौर लीड एक्टर लॉन्च किए जाएंगे। 

हालांकि अनिल कपूर अपने भाई बोनी कपूर की फिल्म "वो 7 दिन" भी साइन कर चुके थे। जबकी लैलाकी शूटिंग "वो 7 दिन" की शूटिंग से काफी पहले ही शुरू हो चुकी थी। 

लेकिन चूंकि लैला की शूटिंग में देरी हो गई तो "वो 7 दिन" पहले कंप्लीट और रिलीज़ हो गई। फिल्म कामयाब रही और अनिल को भी स्टारडम मिल गया। 

ये बात जब सावन कुमार को पता चली कि अनिल कपूर ने उनसे "वो 7 दिन" में काम करने की बात छिपाई थी तो वो अनिल पर बहुत ज़्यादा गुस्सा हुए थे। 

उन्होंने इस बात के लिए कुछ इंटरव्यूज़ में अनिल की आलोचना भी की थी। सावन कुमार को इसलिए भी ज़्यादा गुस्सा आ रहा था क्योंकि अनिल ने उनसे ये बात छिपाकर रखी थी कि वो किसी और फिल्म में भी लीड हीरो के तौर पर काम कर रहे हैं। 

मगर उस वक्त तक बहुत देर हो चुकी थी और सावन कुमार को अपना गुस्सा पीना पड़ा। लेकिन अगर आप लैला फिल्म देखेंगे तो उसके क्रेडिट्स में आपको इंट्रोड्यूज़िंग अनिल कपूर लिखा दिखेगा।

जिससे ये बात साबित होती है कि अनिल कपूर बतौर लीड एक्टर लैला से अपनी शुरूआत करने वाले थे।

13वीं कहानी

"वो 7 दिन" फिल्म का वो सीन जब नसीरुद्दीन शाह पहली दफा अनिल कपूर से मिलते हैं तो उस वक्त बैकग्राउंड में एक धुन हमें सुनाई देती है। ये धुन साल 1981 में रिलीज़ हुई ब्रिटिश स्पोर्ट्स ड्रामा फिल्म चैरियट ऑफ़ फॉायर का थीम म्यूज़िक है। 

इसी थीम म्यूज़िक को बाद में साल 1988 में रिलीज़ हुई रेखा की फिल्म ख़ून भरी मांग के सॉन्ग मैं तेरी हूं जानम में भी रीक्रिएट किया गया था। 

14वीं कहानी

"वो 7 दिन" की सफलता ने अनिल कपूर को रातों.रात देशभर मे मशहूर कर दिया था। कहां तो इस फिल्म की रिलीज़ से कुछ दिन पहले तक अनिल को कोई जानता भी नहीं था। 

और कहां अब हर कोई उन्हें "वो 7 दिन" के प्रेम प्रताप सिंह;पटियाला वालेद्ध के नाम से पहचानने लगा था। "वो 7 दिन" के सिनेमैटोग्राफर बाबा आज़मी थे जो शबाना आज़मी के भाई हैं। 

शबाना आज़मी ने इस फिल्म के लिए बोनी कपूर को कुछ पैसे उधार दिए थे। और इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान बाबा आज़मी से भी अनिल कपूर की बढ़िया दोस्ती हो गई थी। 

बाबा आज़मी ने ही आगे चलकर अनिल कपूर की मिस्टर इंडिया, बेटा और पुकार जैसी फिल्मों की सिनेमैटोग्राफी का ज़िम्मा संभाला था।

15वीं कहानी

"वो 7 दिन" फिल्म ने नामी डायरेक्टर संजय लीला भंसाली को भी बहुत प्रभावित किया था। "वो 7 दिन" की कहानी से मिलती जुलती ही एक फिल्म साल 1999 में संजय लीला भंसाली ने बनाई। 

और वो फिल्म भी बहुत बड़ी हिट रही थी। उस फिल्म का नाम था हम दिल दे चुके सनम। उस फिल्म में सलमान खान, ऐश्वर्या राय बच्चन और अजय देवगन मुख्य भूमिकाओं में थे। 

एक और रोचक बात जो "वो 7 दिन" फिल्म से जुड़ी है वो ये कि इस फिल्म को एन. चंद्रा ने एडिट किया था। एन. चंद्रा आगे चलकर नामी डायरेक्टर बने। 

एन. चंद्रा अनिल कपूर को अपनी फिल्म तेज़ाब में डायरेक्ट किया। और हम सभी जानते हैं कि तेज़ाब कितनी ज़बरदस्त फिल्म साबित हुई थी। तेज़ाब साल 1988 की सबसे बड़ी हिट थी। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Gavin Packard | 90s के बॉलीवुड का एक हैंडसम खलनायक, जिसका अंत बहुत बुरा हुआ | Biography

Anup Jalota | Bhajan Samrat से जुड़े आठ बड़े ही रोचक और Lesser Known Facts

Actor Ali Khan Biography | कहानी Khuda Gawah के Habibullah की जो मुंबई को अपना ख़ून देकर कामयाब हुआ