राज कपूर की आत्मा कहे जाने वाले महान गायक मुकेश जी की कहानी
Mukesh. भारतीय उपमहाद्वीप का वो महान गायक, जिसकी आवाज़ की खनक आज भी लोगों को अपना दीवाना बनाती है। जिसकी आवाज़ का दर्द अब भी संगीत के शौकीनों की आंखें नम कर देता है।
भारतीय सिनेमा के इतिहास में सन 1950 से लेकर सन 1970 के दशक में सबसे लोकप्रिय गायकों की लिस्ट बिना मुकेश के नाम के अधूरी मानी जाती है।

Biography of Legendary Singer Mukesh Ji - Photo: Social Media
Meerut Manthan आज आपको भारत के अजीमु्श्शान गायक Mukesh की ज़िंदगी की कहानी बता रहा है। संगीत के हर शौकीन को Mukesh की ये कहानी ज़रूर पसंद आएगी और बेहद पसंद आएगी।
Mukesh की शुरूआती ज़िंदगी
मुकेश का जन्म हुआ था 22 जुलाई सन 1923 को पंजाब के लुधियाना शहर में। इनका पूरा नाम था मुकेश चंद माथुर। ज़ोरावर चंद माथुर और चांद रानी की 10 संतानों में मुकेश छठे नंबर पर थे।
जब ये काफी छोटे थे तब इनकी बड़ी बहन सुंदर प्यारी को संगीत की शिक्षा देने के लिए इनके घर एक म्यूज़िक टीचर आया करते थे।
बहन जब संगीत का रियाज़ करती थी तो मुकेश कोने में बैठकर अपनी बहन को बड़े गौर से देखा करते थे।
इनके घरवालों को ये तो समझ में आ गया था कि इस बच्चे को कला से बड़ी मुहब्बत है। लेकिन उन्होंने ये कभी नहीं सोचा था कि एक दिन ये बच्चा हिंदुस्तान का एक बेहद नामी गायक बनेगा।
इस तरह मुंबई पहुंचे Mukesh
मुकेश ने केवल 10वीं तक ही पढ़ाई की थी। इनकी नौकरी पीडब्ल्यूडी में लग गई और ये फिर वहां नौकरी करने लगे। काम के दौरान ही ये गाना गाते हुए अपनी आवाज़ रिकॉर्ड करते थे।
इनकी आवाज़ का चर्चा इनके आस-पास और इनके रिश्तेदारों में होने लगा था। लोग इनसे गाना सुनाने के लिए कहा करते थे। और इसी तरह गाते-गाते ये मुंबई भी पहुंच गए।
हुआ कुछ यूं, कि मुकेश जी की बहन की शादी दिल्ली में हो रही थी। खुद मुकेश जी का काफी वक्त भी दिल्ली में ही गुज़रा था। इसी शादी में इनके दूर के रिश्तेदार मोती लाल भी आए थे।
मोती लाल उस दौर के एक बेहद ज़बरदस्त एक्टर थे। मोती लाल के अभिनय का लोहा एक दौर में सारे भारत में माना जाता था। शादी में लोगों ने इनसे मोती लाल को गाना सुनाने को कहा।
मुकेश ने जब गाना शुरू किया तो मोती लाल हैरान रह गए। उन्हें मुकेश की आवाज़ इतनी पसंद आई कि उन्होंने फैसला कर लिया कि हर हाल में मुकेश को मुंबई लेकर जाएंगे।
एक्टिंग भी की थी Mukesh ने
मोती लाल उस वक्त तो मुकेश को मुंबई ना ले जा सके। लेकिन वो मुकेश के मुंबई आने का प्रबंध कर गए थे। मुकेश जब मुंबई आ गए तो मोती लाल ने पंडित जगन्नाथ प्रसाद से उन्हें संगीत की शिक्षा दिलाई।उसके बाद साल 1941 में मुकेश ने पहली दफा फिल्म निर्दोष से अपना डेब्यू किया। और मुकेश ने केवल गायकी में ही नहीं, अभिनय में भी इसी फिल्म से डेब्यू किया था।
मुकेश ने इस फिल्म में नरेंद्र का किरदार निभाया था। साथ ही फिल्म के गाने भी मुकेश ने ही गाए थे। मुकेश के करियर का सबसे पहला गाना था "दिल ही बुझा हुआ हो तो।"
इस फिल्म के बाद मुकेश को काफी लोग जानने लगे थे। मुकेश ने केवल निर्दोष में ही नहीं, बल्कि माशूका, आह, दुल्हन और अनुराग में भी एक्टिंग की थी।
लेकिन जल्दी ही ये जान गए थे कि एक्टिंग इनके लिए नहीं बनी है। इन्हें तो केवल गायकी करनी चाहिए। और फिर इन्होंने एक्टिंग को छोड़ दिया और अपना सारा ध्यान गायकी पर लगा दिया।
जब केएल सहगल भी रह गए हैरान
मुकेश केएल सहगल साहब के बहुत बड़े फैन थे। उस दौर में वैसे भी हर युवा केएल सहगल साहब का फैन था और उनके जैसा ही बनना चाहता था।मुकेश ने जब फिल्म पहली नज़र में दिल जलता है तो जलने दे गाना गाया तो वो गाना सुनने वाले कई लोगों को ये ही लगा कि इसे केएल सहगल ने गाया है।
खुद केएल सहगल ने जब वो गीत सुना था तो उन्होंने कहा था कि उन्हें याद नहीं आ रहा कि उन्होंने ये गाना कब गाया। फिर उन्हें बताया गया कि ये गाना आपने नहीं, एक नए लड़के ने गाया है जिसका नाम मुकेश है।
बड़ा दिलचस्प है Mukesh की शादी का किस्सा
मुकेश साहब की शादी का किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है। दरअसल, मुकेश साहब को सरल त्रिवेदी से प्यार हो गया। उन्हें भी मुकेश साहब की सादगी बेहद पसंद आई थी और वो भी इन्हें चाहती थी।दोनों शादी करना चाहते थे। लेकिन उस ज़माने में प्रेम विवाह करना बेहद खराब बात समझी जाती थी। और अगर कोई इंटरकास्ट प्रेम विवाह करना चाहता हो तो तब तो ये सबसे बड़ा पाप माना जाता था।
लेकिन मुकेश जी और सरल जी एक-दूजे से इतना प्यार करते थे कि इन्होंने किसी की परवाह नहीं कि और घर से भागकर इन्होंने शादी कर ली। इनकी शादी में कन्यादान किया था महान अभिनेता मोती लाल ने।
वही मोती लाल जो मुकेश को मुंबई लेकर आए थे। मुकेश जी और सरल जी की शादी के बाद कई लोगों ने कहा था कि ये शादी ज़्यादा दिन नहीं चलेगी।
लेकिन इस जोड़ी ने हर किसी की बोलती बंद की। मुकेश जी और सरल जी के 5 बच्चे थे। बेटे मोहनीश और नितिन और बेटियां रीता, नलिनी और नम्रता।
इनके बड़े बेटे नितिन ने इनके नक्शे कदम पर चलते हुए फिल्मों में गायकी की। वो नितिन मुकेश के नाम से मशहूर हुए। वहीं इनके पोते नील नितिन मुकेश ने फिल्मों में बतौर अभिनेता काम किया।
हर बड़े स्टार की आवाज़ बने मुकेश
मुकेश कुमार ने अपने दौर के हर सुपरस्टार के लिए गाने गाए थे। फिर चाहे वो शशी कपूर रहे हों या फिर शम्मी कपूर रहे हों। राज कपूर हों या फिर दिलीप कुमार हों।देव आनंद हों या फिर राजेश खन्ना। मनोज कुमार हों या फिर अमिताभ बच्चन। मुकेश ने इन सभी को अपनी आवाज़ दी है। लेकिन फिर भी राज कपूर और मुकेश की जोड़ी को दर्शकों ने सबसे ज़्यादा पसंद किया था
खुद राज कपूर कहा करते थे कि मुकेश के बिना वो एकदम अधूरे हैं। राज कपूर का कहना था कि अगर वो शरीर हैं तो मुकेश उस शरीर में बसने वाली आत्मा हैं।
राज कपूर की आत्मा थे मुकेश
50 के दशक में मुकेश राज कपूर की आवाज़ के तौर पर स्थापित हो चुके थे। मकुेश ने अपने करियर में दो सौ से भी ज़्यादा फिल्मों में गाने गाए थे।1959 में रिलीज़ हुई फिल्म अनाड़ी के गीत सब कुछ सीखा हमने के लिए मुकेश को फिल्मफेयर बेस्ट प्लेबैक सिंगर मेल का अवॉर्ड दिया गया था। इसी फिल्म के लिए राज कपूर को भी उनका पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था।
इसके अलावा साल 1970 में मुकेश को पहचान फिल्म के गीत सबसे बड़ा नादान के लिए भी फिल्मफेयर बेस्ट प्लेबैक सिंगर मेल का अवॉर्ड दिया गया था।
फिर साल 1972 में रिलीज़ हुई फिल्म बेईमान के जय बोलो बेईमान की और साल 1976 में रिलीज़ हुई फिल्म कभी कभी के गीत कभी कभी मेरे दिल में ख्याल के लिए इन्हें फिल्मफेयर बेस्ट प्लेबैक सिंगर मेल का अवॉर्ड दिया गया था।
इतना ही नहीं, साल 1974 में इन्हें फिल्म रजनीगंधा के गीत कई बार यूं ही देखा है के लिए नेशनल अवॉर्ड भी दिया गया था।
मुकेश की ज़िंदगी का आखिरी टूर
साल 1976 में मुकेश अमेरिका टूर पर थे। इस टूर पर इनके साथ लता मंगेशकर भी थी और इनका बड़ा बेटा नितिन मुकेश भी था।अमेरिका के डेट्रॉयट शहर में ये एक स्टेज शो के दौरान अपना मशहूर गीत इक दिन बिक जाएगा माटी के मोल गा रहे थे। कि तभी अचानक इनकी तबियत खराब होनी शुरू हो गई।
मुकेश को आराम करने के लिए उनके होटल वापस भेजा गया। लेकिन होटल में इन्हें एक बेहद तेज़ दिल का दौरा पड़ा और 27 अगस्त 1976 को इनकी मौत हो गई।
ऐसे थे मुकेश
मुकेश जी से जब भी कोई पूछता था कि गायकी के बारे में आपके क्या ख्याल हैं तो वो कहते थे कि ये एक बढ़िया शौक ज़रूर है। लेकिन ये एक बेहद दर्दनाक पेशा भी है।मुकेश को इस दुनिया से गए अब बरसों बीत चुके हैं। लेकिन आज भी भारत के हर संगीत प्रेमी के दिलों में मुकेश अमर हैं।
मेरठ मंथन हिंदी संगीत की इस महान शख्सियत को दिल से सलाम करता है और वादा करता है कि संगीत में इनके योगदान का मेरठ मंथन हमेशा आभारी रहेगा। जय हिंद।
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