Biography of Singer Poornima Shrestha | 90s की मशहूर गायिका पूर्णिमा श्रेष्ठ की जीवनी

"छतरी ना खोल बरसात में। भीग जाने दे आधी रात में।" या फिर "जेठ की दोपहरी में पांव जले हैं।" या फिर ये,"सरकाय लो घटिया जाड़ा लगे।" इस पर भी ध्यान दीजिए,"टुकुर टुकुर देखते हो क्या।" ये कुछ वो गीत हैं जो 90 के दशक में बहुत लोकप्रिय रहे हैं। इन गीतों में जो फीमेल वॉकल्स हैं वो पूर्णिमा श्रेष्ठ जी के हैं। उनकी

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Biography of Singer Poornima Shrestha - Photo: Social Media

06 सितंबर 1960 को Poornima Shrestha का जन्म हुआ था। Poornima Shrestha के बारे में कहा जाता है कि ये Nepal की राजधानी Kathmandu में जन्मी थी। लेकिन ये गलत है। हां, ये नेपाली मूल की ज़रूर हैं। लेकिन सालों पहले इनके Father Bholanath Shrestha नेपाल से कोलकाता आकर बस गए थे।

संगीत Poornima Shrestha के पिता को विरासत में मिला था। इसलिए एक वक्त ऐसा आया जब भोला श्रेष्ठ जी मुंबई आ गए और बॉम्बे टॉकीज़ में उस वक्त के दिग्गज संगीतकार खेमचंद प्रकाश जी के असिस्टेंट बन गए।

उनका ठिकाना मुंबई ही बन गया। और पूर्णिमा जी का जन्म भी मुंबई में ही हुआ। माता-पिता ने इन्हें सुषमा नाम दिया था।

पूर्णिमा श्रेष्ठा मात्र सात साल की ही थी जब इनके मामा ने पहली दफा इन्हें स्टेज पर गाने के लिए भेजा। उससे पहले इन्हें काफी रिहर्सल कराई गई थी।

स्टेज पर पहली दफा जो गीत पूर्णिमा जी ने गाया था वो था राजा और रंक फिल्म का गीत "तू कितनी अच्छी है। तू कितनी भोली है। तू प्यारी प्यारी है। ओ मां।"

नन्ही पूर्णिमा की गायकी ने शो देखने आए हर दर्शक का दिल जीत लिया। फिर तो स्टेज शोज़ का इनका सिलसिला पूरे ज़ोर-शोर से शुरू हो गया।

मुंबई के कई गणेशोत्सव पंडालों की ये शान बन गई थी। लोग इन पर इतना प्यार लुटाते थे कि शो खत्म होने के बाद इनके पास ढाई सौ से दो सौ रुपए जमा हो जाते थे। जो उस ज़माने में बहुत बढ़िया रकम मानी जाती थी।

9 बरस की उम्र में Poornima Shrestha ने अपना पहला फिल्मी गीत गाया। वो फिल्म थी अंदाज़ जो साल 1971 में रिलीज़ हुई थी। ये रमेश सिप्पी की बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म भी थी। फिल्म का म्यूज़िक कंपोज़ कर रहे थे शंकर-जयकिशन।

फिल्म के एक गीत के लिए शंकर-जयकिशन को एक बच्चे की आवाज़ चाहिए थी। वैसे तो उस दौर में बच्चों के गीत भी बड़े गायक ही गाते थे। लेकिन शंकर जी ने वो गीत किसी बच्चे से ही गवाने का फैसला किया।

तो तलाश शुरू हो गई किसी ऐसी बच्ची की जो अच्छा गा लेती हो। उन दिनों पूर्णिमा जी के नाना-नानी भी मुंबई में ही रहते थे। और एक उनके पड़ोसी थे जिनका नाम था चंद्रकांत भोसले।

चंद्रकांत भोसले शंकर-जयकिशन जी के असिस्टेंट हुआ करते थे। वो शंकर-जयकिशन जी के साथ ढोलक बजाने का काम भी करते थे। चंद्रकांत भोसले पूर्णिमा को जानते थे।

इसलिए जब उन्हें पता चला कि शंकर-जयकिशन किसी बढ़िया गाने वाली बच्ची की तलाश कर रहे हैं तो वो पूर्णिमा को शंकर-जयकिशन जी से मिलाने ले गए।

शंकर-जयकिशन को जब पता चला कि ये भोला श्रेष्ठ जी की बेटी हैं तो वो बहुत खुश हुए। शंकर जी ने पूर्णिमा को अपने पास बैठाया और इनका एक छोटा सा टेस्ट लिया। उस टेस्ट में पूर्णिमा जी पास हो गई। प्रतिभा बोर्डेकर नामक एक और बच्ची को पूर्णिमा जी के साथ ही चुना गया था।

अगले दिन पूर्णिमा जी ने उस गीत की रिकॉर्डिंग की। उस गीत के बोल थे "है ना बोलो बोलो।" अपने पहले ही ही गीत में पूर्णिमा श्रेष्ठ को रफी साहब और सुमन कल्याणपुर जैसे दिग्गज गायकों के साथ गायकी करने का मौका मिल गया।

जी हां, अगर आपने ये गीत सुना होगा तो आपको पता होगा कि इस गीत में रफी साहब और सुमन कल्याणपुर जी ने भी अपनी आवाज़ें दी हैं।

एक इंटरव्यू में पूर्णिमा जी ने बताया था कि जब उस गीत की रिकॉर्डिंग खत्म हुई तो रफी साहब ने पूर्णिमा और उस दूसरी गायिका बच्ची को अपनी तरफ से सौ-सौ रुपए ईनाम के तौर पर दिए थे। वो धनतेरस का दिन था। रफी साहब ने सौ रुपए देकर इन दोनों लड़िकयों से कहा कि दिवाली की मिठाई खा लेना मेरी तरफ से।

अंदाज़ 1971 में रिलीज़ हुई थी। लेकिन पूर्णिमा जी ने वो गीत 1969 में रिकॉर्ड किया था। उस गीत के बाद पूर्णिमा जी फिर से अपने स्टेज शोज़ में व्यस्त हो गई।

एक दिन पूर्णिमा जी को एक ऐसे शो में गाने का न्यौता मिला जो मुंबई स्थित पंजाब असोसिएशन द्वारा बहुत बड़े स्तर पर आयोजित किया जा रहा था।

उस शो में फिल्म इंडस्ट्री की कुछ बड़ी हस्तियां जैसे राज कपूर, जयदेव व प्राण साहब भी शिरकत करने वाले थे। इनके पिता ने इन्हें शो से पहले खूब रिहर्सल कराई।

पिता ही इनके गुरू भी थे। इनके पिता बहुत खुश थे। अपनी बेटी से उन्हें बहुत उम्मीदें थी। लेकिन शो से एक दिन पहले कार्डियक अरेस्ट की वजह से इनके पिता भोलानाथ श्रेष्ठ जी का निधन हो गया।

सबको लगा कि अब पूर्णिमा अगले दिन होने वाले अपने करियर के अब तक के सबसे बड़े शो में परफॉर्म करने नहीं जा पाएंगी। लेकिन इनकी मां ने इनसे शो में जाने को कहा।

मां ने कहा कि तुम्हारे पिता की बहुत ख्वाहिश थी कि तुम इस शो में परफॉर्म करो। वो बहुत खुश थे। वो जहां कहीं भी अब होंगे तो यही चाहते होंगे कि तुम उस शो में गाओ। किशोर दा, जो कि पूर्णिमा जी के पिता के बहुत अच्छे दोस्त थे, उन्होंने भी शो में जाने की सलाह इन्हें दी।

इतना हौंसला मिला तो पूर्णिमा अगले दिन उस शो में गाने पहुंच गई। लेकिन अब दिक्कत ये थी कि उनके साथ हारमोनियम कौन बजाए?

क्योंकि तय तो ये था कि पूर्णिमा के पिता ही उनके साथ बाजा बजाएंगे। लेकिन पिता तो अब रहे नहीं। ऐसे में नरेंद्र चंचल जी ने इनके लिए बाजा बजाया। क्योंकि नरेंद्र चंचल जी इनकी रिहर्सल के दौरान इनके साथ थे। उन्होंने ही एक पंजाबी गाना भी पूर्णिमा जी को सिखाया था। पूर्णिमा जी को उस शो में तीन गीत गाने थे। लेकिन ये दो गीत ही गा सकी।

इनकी परफॉर्मेंस जब खत्म हुई तो स्टेज पर प्राण साहब आए। प्राण साहब ने शो देखने आए लोगों को बताया कि एक दिन पहले ही इस बच्ची के पिता की मृत्यु हुई है।

कहते हैं कि वो सुनकर ऑडियन्स में मौजूद अधिकतर लोगों की आंखों में आंसू आ गए थे। सब ने खड़े होकर पूर्णिमा जी के लिए तालियां बजाई। वो शो पंजाब असोसिएशन आयोजित कराया था।

पंजाब असोसिएशन ने पूर्णिमा जी की संगीत की प्रॉपर ट्रेनिंग के लिए ढाई सौ रुपए महीना स्कॉलरशिप अनाउंस कर दी। पूर्णिमा जी कहती हैं कि सही मायनों में वहीं से इनके संगीत का सफर शुरू हुआ था।

यहां ये बताना भी ज़रूरी है कि उस समय तक इनका नाम पूर्णिमा नहीं हुआ था। लोग इन्हें सुषमा श्रेष्ठ के नाम से ही जानते थे। इनके शुरुआती कुछ गीत भी सुषमा श्रेष्ठ के नाम से ही आए थे।

चाइल्ड सिंगर के तौर पर सुषमा श्रेष्ठ बहुत लोकप्रिय हो चुकी थी। इन्होंने 1970 के दशक की कई फिल्मों में कुछ बहुत ही लोकप्रिय गीत गाए।

तो अब ये भी जान लिया जाए कि सुषमा श्रेष्ठ से ये पूर्णिमा श्रेष्ठ कैसे बनी। तो हुआ कुछ यूं कि 70 के दशक के आखिरी में ये कुछ कैसेट्स कंपनीज़ के साथ मिलकर बड़े-बड़े गायकों के कवर वर्ज़न गाया करती थी।

तब तक ये बड़ी भी हो चुकी थी। कैसेट कंपनी वालों को लगा कि अगर सुषमा श्रेष्ठ नाम से कैसेट लॉन्च की गई तो हो सकता है अधिकतर लोग उसे बच्चों की कैसेट समझ लें।

इसलिए नए नाम से कैसेट को लॉन्च किया जाएगा। फिर माथापच्ची हुई कि सुषमा को नया नाम क्या दिया जाए। तब सुषमा जी ने ही सजेस्ट किया कि पूर्णिमा नाम रखा जाए। क्योंकि उनकी जन्मपत्री में उनका नाम पूर्णिमा ही है। इस तरह सुषमना श्रेष्ठ बन गई पूर्णिमा श्रेष्ठ।

पूर्णिमा श्रेष्ठा बनने के बाद तो इन्होंने हीरोइनों के लिए गाना शुरू कर दिया। यानि तब फिल्मों में ये चाइल्ड सिंगर नहीं रही। एक प्रॉपर प्लेबैक सिंगर बन चुकी थी।

1980 की शुरुआत में जब इनकी शादी हुई थी तब इनके करियर में एक ठहराव ज़रूर आया था। लेकिन बाद में इन्होंने फिर वापसी की।

और 90s में तो इन्होंने कई सुपरहिट गीत गाए। जिनमें से कुछ का ज़िक्र इस लेख की शुरुआत में किया गया है। आजकल पूर्णिमा जी प्लेबैक सिंगिंग से ज़रा दूर हैं। क्योंकि अब इन्हें बहुत अधिक गीत नहीं मिलते। लेकिन कभी-कभी किसी स्टेज शो में गाती हुई वो ज़रूर दिख जाती हैं।

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