Raj Kapoor की Debut Movie Neel Kamal 1947 बनने की बेहद रोचक कहानी | Kidar Sharma | Madhubala | Chandulal Shah
सन 1942 या 1943 की बात है। रंजीत स्टूडियोज़ के बैनर तले डायरेक्टर किदार शर्मा एक फिल्म बना रहे थे जिसका नाम था विषकन्या। उस फिल्म में सुरिंदर नाथ, साधना और पृथ्वीराज कपूर मुख्य किरदार निभा रहे थे। पृथ्वीराज कपूर और किदार शर्मा बहुत अच्छे दोस्त थे।
ये दोनों किसी वक्त पर कलकत्ता के न्यू थिएटर्स में नौकरी किया करते थे। कलकत्ता में ही इन दोनों की पहली मुलाकात भी हुई थी। और ये पृथ्वीराज कपूर ही थे जिन्होंने किदार शर्मा को कलकत्ता से बंबई बुलाया था।
विषकन्या की शूटिंग के दौरान किदार शर्मा ने नोटिस किया कि पृथ्वीराज कपूर कुछ उदास से रहते हैं। यूं तो पृथ्वीराज कपूर ने अपनी उदासी कभी किसी पर ज़ाहिर नहीं की थी। लेकिन किदार शर्मा उनके मूड को बहुत अच्छी तरह से पहचानते थे।
उन्हें आभास हो जाता था कि कब पृथ्वीराज बहुत खुश हैं और कब वो अंदर ही अंदर दुखी हैं। दो-चार दिन तो किदार शर्मा ने पृथ्वीराज कपूर से उनकी उदासी के बारे में कोई बात नहीं की। लेकिन फिर किदार शर्मा ने पृथ्वीराज कपूर से पूछ ही लिया।
उन्होंने पृथ्वीराज कपूर से कहा कि अगर कुछ पर्सनल है जो बताने लायक नहीं है तो रहने दो। लेकिन अगर बता सकते हो तो मुझे ज़रूर बताओ। मैं देख रहा हूं तुम कुछ परेशान हो। मुझे बताओगे तो शायद मैं तुम्हारी मदद कर सकूं।

Story of the Raj Kapoor's debut movie Neel Kamal 1947 Directed by Kidar Sharma - Photo: Social Media
पृथ्वीराज कपूर जानते थे कि किदार शर्मा बहुत ख़ास व्यक्तित्व के इंसान हैं। इसलिए उन्होंने अपनी परेशानी किदार शर्मा को बता ही दी। पृथ्वीराज कपूर बोले,"किदार, मैं अपने बेटे राजू(राज कपूर) को लेकर परेशान हूं। अपनी जवानी में वो गुमराही के रास्ते पर निकल पड़ा है। मैंने उसे कॉलेज पढ़ने भेजा। लेकिन उसका ध्यान पढ़ाई पर नहीं, लड़कियों पर रहा। पता नहीं उसका क्या होगा?"
पृथ्वीराज कपूर की बात सुनकर किदार शर्मा कुछ सेकेंड चुप रहे। फिर बोले,"उसे मेरे पास भेज दो। मैं उसे अपनी निगरानी में रखूंगा। मैं किसी गुरू की तरह उसको तराशूंगा। मैं उसे डायरेक्शन सिखाऊंगा। ज़िंदगी के और सबक भी बताऊंगा। लेकिन तुम कोई दखलअंदाज़ी नहीं करोगे। क्योंकि हो सकता है मैं कुछ सख्ती भी बरतूं। मैं उसे अपना असिस्टेंट डायरेक्टर बनाऊंगा।"
अगले दिन पृथ्वीराज कपूर राजू को अपने साथ रंजीत स्टूडियोज़ लेकर आए। किदार शर्मा को देखते ही राजू ने उनके पैर छुए। किदार शर्मा मुस्कुराए। उन्होंने राजू से बातचीत की और कलकत्ता के दिनों के बारे में याद दिलाया कि कैसे वो कलकत्ता में राजू से पहली दफा तब मिले थे जब वो छोटा सा लड़का था।
किदार शर्मा ने राजू, जो अब राज कपूर था, उनसे कहा,"तुम्हें याद है राजू कलकत्ता में तुमने एक फिल्म रील देखकर मुझसे पूछा था कि अंकल, ये तस्वीरें पर्दे पर चलती हुई कैसे दिखती हैं? उस वक्त मैंने तुमसे कहा था कि जब मुझे पता चलेगा कि ये तस्वीरें पर्दे पर चलती हुई कैसे दिखती हैं तो तुम्हें ज़रूर बतताऊंगा। वो वक्त आ गया है। मैं चाहता हूं कि अब तुम्हें भी वो सब सिखाऊं जो मैंने आज तक सीखा है।
किदार शर्मा ने राज कपूर को अपना तीसरा असिस्टेंट डायरेक्टर बना लिया। किदार शर्मा चाहते थे कि राज कपूर की शुरुआत एकदम ज़ीरो से हो। इसलिए उन्होंने राज कपूर को क्लैपर बॉय का काम दिया।
कुछ दिन राज कपूर को साथ रखकर किदार शर्मा को अहसास हुआ कि राजू ज़रा नटखट है। लेकिन है बहुत प्यारा बच्चा। जब भी कोई शूट होता और किदार शर्मा राज कपूर को क्लैप देने को कहते तो राज कपूर पूरे जोश के साथ व तेज़ आवाज़ में जवाब देते,"यस अंकल।"
एक आदत और थी राज कपूर में जो किदार शर्मा को बहुत पसंद तो नहीं आती थी। लेकिन उन्होंने उसके लिए तब तक राज कपूर को टोका नहीं था जब तक कि राज कपूर ने उस आदत की वजह से एक बड़ा कांड नहीं कर दिया। राज कपूर की आदत थी कि जब भी उन्हें किदार शर्मा शॉट शुरू करने से पहले क्लैप देने को कहते, वो पहले अपने बालों को कंघी करते और फिर कैमरे के सामने अपना फेस लाते हुए स्माइल करते। मानो वो खुद कैमरे के सामने पोज़ कर रहे हों। तब जाकर राज कपूर क्लैप देते।
एक बार किदार शर्मा अपनी यूनिट संग एक आउटडोर शूट पर गए। वो जगह थी घोडबंदर जो मुंबई से दूर एक खूबसूरत सा गांव है। उस गांव में किदार शर्मा फिल्म के मुख्य किरदार पर सूर्यास्त के समय का कोई दृश्य फिल्माना चाहते थे।
वो काफी पहले वहां पहुंच गए थे। और सारी सैटिंग्स करके बस सही समय का इंतज़ार कर रहे थे ताकि शॉट ले सकें। जिस एक्टर पर वो दृश्य फिल्माया जाना था उसके चेहरे पर नकली दाढ़ी लगाई गई थी।
सीन कुछ यूं था कि एक राजा है जो अब अपने पतन की तरफ बढ़ रहा है। पतन को डिपिक्ट करने के लिए सूर्यास्त की रोशनी में राजा को किदार शर्मा दिखाना चाहते थे।
कैमरा पॉजिशन पर खड़ा कर दिया गया। अब बस सही समय का इंतज़ार था। गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी। क्योंकि अगर सही समय पर शॉट ना लिया जाता तो पूरी यूनिट को एक दिन और वहां रुकना पड़ता। और इतने लोगों को एक दिन और वहां रोकने का मतलब था फालतू का खर्च।
उस दिन वो शॉट लेने से पहले किदार शर्मा ने राज कपूर से लगभग विनती करते हुए कहा कि आज वो कैमरे के सामने कंघी करके मुस्कुराते हुए शॉट ना दे। क्योंकि इससे वक्त ज़ाया होगा।
फिर जब वो वक्त आया जब किदार शर्मा को लगा कि अब शॉट लेना चाहिए, उन्होंने राज कपूर से ज़ोर से पूछा,"राज, आर यू रेडी?" "यस अंकल।" राज कपूर ने हमेशा की तरह पूरे जोश में जवाब दिया।
फिर किदार शर्मा ज़ोर से बोले,"कैमरा।" इसका मतलब था कि राज कपूर को क्लैप देना है। लेकिन राज कपूर ने क्लैप नहीं दिया। आदत के मुताबिक उन्होंने फिर से अपने बालों में कंघी घुमाई, फिर कैमरे के सामने मुस्कुराते हुए खड़ा होकर क्लैप दिया।
मगर उस दिन राज कपूर को जाने क्या हुआ होगा, उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि क्लैपर बोर्ड को उन्होंने कहां पॉजिशन किया है। जैसे ही उन्होंने क्लैप दिया, एक्टर की वो नकली दाढ़ी उस क्लैपर बोर्ड में फंस गई।
राज कपूर को तब भी नहीं पता चला कि एक्टर की दाढ़ी क्लैपर बोर्ड में फंस गई है। वो कैमरे के सामने से हटकर एक तरफ जाने लगे। लेकिन उनके हटते ही एक्टर के चेहरे से उसकी नकली दाढ़ी उखड़ गई। वो एक्टर(वो एक्टर कौन था इसका पता नहीं चल सका) बुरी तरह शॉक्ड था और किदार शर्मा को देख रहा था।
किदार शर्मा को भी ज़बरदस्त शॉक लगा। जिस खास पल में शूटिंग करने के लिए वो कई घंटों से वहां इंतज़ार कर रहे थे वो धीमे-धीमे गुज़र गया। कुछ ही देर में सूरज पूरी तरह छिप गया। किदार शर्मा गुस्से से आग-बबूला हो गए। उन्होंने राज कपूर को बुलाया। राज कपूर डरते-डरते आए।
किदार शर्मा ने सबके सामने एक ज़ोरदार थप्पड़ राज कपूर को जड़ दिया। जिस वक्त राज कपूर को किदार शर्मा का थप्पड़ पड़ा था उस वक्त वहां सिर्फ यूनिट के लोग ही नहीं, कई लोकल लोग भी मौजूद थे जो शूटिंग देखने आए थे। राज कपूर के गाल पर किदार शर्मा की उंगलियों के निशान भी आ गए।
थप्पड़ मारने के बाद किदार शर्मा को लगा कि शायद राजू कोई प्रतिक्रिया देगा। वो शायद कहेगा कि आप मुझे इतने पैसे नहीं देते कि ऐसे थप्पड़ मारें। या कहेगा कि मैं एक बड़े फिल्मस्टार का बेटा हूं। आपकी हिम्मत कैसे हुई मुझे थप्पड़ मारने की?
लेकिन राज कपूर चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट लिए चुपचाप एक तरफ चले गए। किदार शर्मा ने पैकअप अनाउंस किया और स्टाफ से कहा कि अगले दिन फिर से ये शॉट लिया जाएगा। कोई कुछ नहीं बोला। खामोशी से सारा सामान पैक किया गया और सब वहां से चले गए।
उस रात किदार शर्मा सो नहीं सके। शाम के वक्त गुस्से में उन्होंने राज कपूर को सबके सामने थप्पड़ तो मार दिया। मगर अब उन्हें बहुत अफसोस हो रहा था। वो शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे।
उस रात किदार शर्मा को ये अहसास भी हुआ कि राज कपूर को कैमरे के सामने आना पसंद है। इसिलिए वो हमेशा कैमरे के सामने मुस्कुराते हए क्लैप देता है। वो कैमरे के पीछे रहने वाले लोगों में नहीं है। वो ज़रूर एक दिन अपने पिता की तरह एक्टर ही बनेगा।
अगले दिन सूर्यास्त वाला वो दृश्य सही से शूट कर लिया गया और यूनिट वापस मुंबई लौट आई। किदार शर्मा ने राज कपूर से अपने ऑफिस आकर मिलने को कहा। राज कपूर डरते-डरते किदार शर्मा के ऑफिस में आए और बोले,"क्या अब आप मेरे दूसरे गाल पर भी थप्पड़ मारेंगे?"
जवाब में किदार शर्मा ने कहा,"नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। मैंने एक ज़रूरी फैसला लिया है।" एक कागज़ राज कपूर की तरफ बढ़ाते हुए किदार शर्मा बोले,"ये 25 हज़ार रुपए का कॉन्ट्रैक्ट है। तुम मेरी अगली फिल्म के हीरो बनोगे।"
किदार शर्मा की वो बात सुनकर राज कपूर दंग रह गए। कुछ पल के लिए वो कुछ बोल ही ना सके। किसी तरह शब्द जुटाकर राज कपूर बोले,"नहीं अंकल। मेरे लिए आप खुद को बर्बाद मत कीजिए। मैं तो बस एक जोकर हूं। मैं कुछ नहीं हूं। स्टार बनने लायक भी नहीं हूं। आप किसी और को हीरो ले लीजिए।"
राज कपूर जब किदार शर्मा से ये सब कह रहे थे तब उनकी आंखें आंसुओं से भरी हुई थी। किदार शर्मा ने उन्हें रोका और बोले,"बेटा, कल जब मैंने तुम्हें थप्पड़ मारा था तब तुम नहीं रोए थे। मगर आज तुम्हारें आंसू बह रहे हैं।"
जवाब में राज कपूर ने कहा,"मेरी गलती होती है तो मैं किसी का भी गुस्सा बर्दाश्त कर सकता हूं। लेकिन इस तरह प्यार से कोई बात करता है तो मेरी आंखों में हमेशा आंसू आ जाते हैं। आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो आपने मुझे इस काबिल समझा।"
कुछ पल तक किदार शर्मा और राज कपूर खामोश रहे। फिर आखिरकार राज कपूर ने स्वीकार किया कि वो एक्टर बनना चाहते हैं और अपना एक्टिंग टैलेंट दुनिया को दिखाना चाहते हैं। उन्होंने किदार शर्मा से वादा किया कि वो उन्हें कभी निराश नहीं करेंगे। किदार शर्मा ने राज कपूर को गले से लगा लिया।
राज कपूर धीमे से उनसे बोले,"प्लीज़ अंकल। प्लीज़, हीरोइन के लिए उस लड़की मुमताज को लीजिए। मुझे वो पसंद है। आपको भी उसकी मासूमियत और खूबसूरती पसंद आएगी। और वो मुझसे थोड़ी छोटी भी है।"
यूं तो मुमताज उस वक्त अपनी किशोरावस्था में ही थी। उन्हें बहुत अधिक अनुभव भी नहीं था। लेकिन राज कपूर की गुज़ारिश पर किदार शर्मा ने मुमताज को साइन कर लिया। आगे चलकर दुनिया ने उसी मुमताज को मधुबाला के नाम से जाना।
साथियों ये कहानी डायरेक्टर किदार शर्मा ने अपनी ऑटोबायोग्राफी "द वन एंड लोनली:किदार शर्मा" के ज़रिए बयां की थी। अपनी ऑटोबायोग्राफी में ही किदार शर्मा जी ने ये भी लिखा था कि उन्हें पता था कि मुमताज के पिता अताउल्ला खान ज़रा लालची किस्म के इंसान हैं।
जब उन्होंने अपनी फिल्म में मुमताज को कास्ट करने का ऑफर अताउल्ला खान को दिया तो वो बहुत खुश हुए। और उन्होंने किदार शर्मा का बहुत आभार भी जताया।
मुमताज इससे पहले कुछ फिल्मों में काम तो कर चुकी थी। लेकिन उन सभी फिल्मों में वो बाल कलाकार के तौर पर ही नज़र आई थी और बेबी मुमताज के नाम से जानी जाती थी।
ऐसे ही राज कपूर भी चंद फिल्मों में बाल कलाकार की हैसियत से कैमरा फेस कर चुके थे। यानि किदार शर्मा की वो फिल्म एज़ ए हीरो-हीरोइन मुमताज और राज कपूर की पहली फिल्म थी।
चूंकि उन दिनों किदार शर्मा रंजीत स्टूडियोज़ में नौकरी किया करते थे तो उनके लिए ये ज़रूरी था कि वो अपने बॉस सेठ चंदूलाल शाह और मिस गौहरबाई को इस बात की जानकारी दें कि वो एक फिल्म बना रहे हैं। और अपनी फिल्म वो खुद ही प्रोड्यूस भी करेंगे।
अगले दिन जब किदार शर्मा ने सेठ चंदूलाल शाह और मिस गौहरबाई को अकेले देखा तो वो उनके पास गए और बोले,"सेठजी। मैं एक फिल्म प्रोड्यूस करने जा रहा हूं जिसका नाम होगा बेचारा भगवान। लेकिन मैं अपनी फिल्म पर मैं नौकरी के घंटों के बाद ही काम करूंगा। मैं हर दिन तीन घंटे अपनी फिल्म की शूटिंग करूंगा। मैं वादा करता हूं कि रंजीत स्टूडियोज़ के मेरे काम में कोई परेशानी इस वजह से नहीं होगी। मैं ये नौकरी छोड़कर कोई फिल्म नहीं बना सकता। इसलिए आपको बताना ज़रूरी था। फिल्म बनाने के लिए मुझे पैसों की ज़रूरत पड़ेगी। और पैसे मुझे इस नौकरी से ही मिल सकते हैं।"
"मुझे आपकी फिल्म का नाम बहुत अच्छा लगा है।" मिस गौहरबाई किदार शर्मा से बोली। लेकिन चंदूलाल शाह चुप रहे। वो काफी देर तक चुप ही बैठे रहे। और फिर जब बोले तो उन्होंने किदार शर्मा से पूछा,"तुम्हारे पास अपनी फिल्म बनाने के लिए कितना कैश है?"
किदार शर्मा ने उन्हें बताया कि उनके स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के खाते में एक लाख रुपए जमा हैं। ये सुनकर सेठ चंदूलाल शाह बोले,"मैं तुम्हें एक लाख रुपए का चैक दूंगा। इस तरह तुम्हारे पास दो लाख रुपए हो जाएंगे। तुम्हारी फिल्म भी शुरू हो जाएगी और मैं तुम्हारा पार्टनर भी बन जाऊंगा। उम्मीद है कि तुम मेरा ये प्रस्ताव स्वीकार कर लोगे और मुझे अपना पार्टनर बना लोगे।"
किदार शर्मा वाकई में उनके प्रस्ताव से बहुत खुश थे। उन्होंने सेठ चंदूलाल शाह से कहा कि ये उनके लिए सम्मान की बात होगी। चंदूलाल शाह बोले,"ठीक है। अपनी फिल्म पर काम शुरू करो। अब तुम डायरेक्टर के साथ-साथ फिल्म प्रोड्यूसर भी बन जाओगे मिस्टर किदार शर्मा।
बतौर प्रोड्यूसर अपनी पहली फिल्म को लेकर अब किदार शर्मा बहुत खुश थे। और वो चाहते थे कि अपनी फिल्म के ज़रिए वो अधिक से अधिक नए कलाकारों को मौका दें। इसलिए संगीत देने के लिए उनके ज़ेहन में सबसे पहला नाम आया वासुदेव भाटकर का।
वासुदेव भटकर उन दिनों एचएमवी में हारमोनियम वादक की नौकरी करते थे और एक दफा चित्रलेखा(1941) फिल्म के दौरान किदार शर्मा और वासुदेव भाटकर की मुलाकात हुई थी।
किदार शर्मा ने वासुदेव भाटकर को संदेश भिजवाया कि रविवार के दिन वो सुबह ठीक 10 बजे रंजीत स्टूडियोज़ में मिलें। रविवार को ठीक दस बजे वासुदेव भाटकर किदार शर्मा से मिलने आ भी गए।
किदार शर्मा ने वासुदेव भाटकर से कहा,"तुम्हें याद है तुमने एक दिन मुझसे कहा था कि तुम भी संगीतकार बनना चाहते हो? तुम नहीं चाहते कि सारी ज़िंदगी तु एचएमवी में हारमोनियम वादक की नौकरी करते रहो? और तुमने ये भी कहा था कि लेकिन तुम्हारे ऊपर रिस्क लेगा भी कौन?"
हैरान वासुदेव भाटकर ने किदार शर्मा से कहा कि उन्हें वो सब बातें बहुत अच्छी तरह से याद हैं। ठीक तभी किदार शर्मा ने अपनी जेब से पांच हज़ार रुपए निकाले और वासुदेव भाटकर को थमाते हुए कहा,"मैं भी तुम्हारी वो बातें नहीं भूला हूं। मैं तुम पर रिस्क लूंगा। मेरी फिल्म बेचारा भगवान का संगीत बनाने की ये तुम्हारी फीस है। मैं ये फिल्म सेठ चंदूलाल शाह के साथ पार्टनरशिप में प्रोड्यूस करने जा रहा हूं।"
पांच हज़ार रुपए उस ज़माने में अच्छी-खासी रकम हुआ करती थी। ज़ाहिर है, वासुदेव भाटकर ने जब वो पांच हज़ार रुपए अपने हाथ में पकड़े तो एक खुशी, साथ ही साथ कशमकश ने उन्हें घेर लिया।
वो किदार शर्मा से बोले,"आप मुझे सारी फीस एडवांस में क्यों चुका रहे हैं? मैंने आज से पहले कभी हज़ार रुपए का नोट देखा भी नहीं था। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद इसके लिए।" किदार शर्मा ने उनसे कहा,"नहीं मिस्टर भाटकर। ये सिर्फ साइनिंग अमाउंट है। आपको टोटल 25 हज़ार रुपए मिलेंगे।"
पांच हज़ार रुपए कैश हाथ में पकड़कर बुरी तरह दंग हुए वासुदेव भाटकर को जब पता चला कि उन्हें पूरी फिल्म के 25 हज़ार रुपए मिलेंगे तो आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उस वक्त उनकी स्थिति क्या हुई होगी। वो सिर्फ इतना ही कह सके,"25 हज़ार रुपए।" ये वही वासुदेव भाटकर हैं जिन्हें आप और हम संगीतकार स्नेहल भाटकर के नाम से जानते हैं।
अगले दिन सेठ चंदूलाल शाह ने किदार शर्मा को मिलने के लिए बुलाया। वो जानना चाहते थे कि किदार शर्मा अपनी फिल्म बेचारा भगवान पर क्या काम कर रहे हैं। किदार शर्मा ने उन्हें बताया कि वो म्यूज़िक डायरेक्टर फाइनल कर चुके हैं।
चंदूलाल शाह ने पूछा कि कौन है वो म्यूज़िक डायरेक्टर तो किदार शर्मा बोले कि मिस्टर भाटकर हैं। बहुत जीनियस हैं। ये सुनकर मिस गौहर बोली,"आपके इस जीनियस म्यूज़िक डायरेक्टर का नाम तो कभी सुना नहीं।"
सेठ चंदूलाल शाह ने अपना चश्मा उतारा और घूरते हुए किदार शर्मा से कहा,"कास्टिंग का क्या हुआ? हीरो-हीरोइन कौन होंगे तुम्हारी फिल्म के?"
किदार शर्मा ने उन्हें बताया कि उनका हीरो होगा पृथ्वीराज कपूर का बेटा राजू। और हीरोइन होगी मुमताज़। तभी सेठ चंदूलाल शाह ने कहा कि फिलहाल उन्हें कहीं जाना है। कल इस बारे में फिर से बात करेंगे।
अगले दिन जब सेठ चंदूलाल शाह और मिस गौहरबाई से किदार शर्मा की मुलाकात हुई तो किदार शर्मा को अहसास हुआ कि सेठ चंदूलाल शाह को लग रहा है कि वो एक्ट्रेस मुमताज शांति को अपनी फिल्म बेचारा भगवान की हीरोइन लेने वाले हैं।
उन्होंने चंदूलाल शाह को बताया कि वो वास्तव में बेबी मुमताज को हीरोइन लेने वाले हैं। ना कि मुमताज शांति को। मुमताज शांति तो राज कपूर की हीरोइन नहीं, मां दिखेंगी। किदार शर्मा की वो बात सुनकर सेठ चंदूलाल शाह को जैसे झटका सा लगा।
वो हैरानी से किदार शर्मा को कुछ देर तक देखते रहे। फिर बोले,"मुझे मेरे एक लाख रुपए वापस चाहिए। मैं इस फिल्म पर पैसे नहीं लगाऊंगा। या तो तुम बेबी मुमताज, राज कपूर और वासुदेव भाटकर को अपनी फिल्म से बाहर करो और उनकी जगह ऐसे लोगों को लो जिनके नाम पर फिल्म सेल हो सके, या मेरे पैसे वापस कर दो।"
किदार शर्मा बहुत मुश्किल में फंस गए। क्योंकि सेठ चंदूलाल शाह ऐसे वक्त में अपने पैसे वापस मांग रहे थे जब किदार शर्मा अपनी फिल्म की शूटिंग शुरू भी कर चुके थे। और इत्तेफ़ाक से इस समय तक उन्होंने उस फिल्म का नाम बेचारा भगवान से बदलकर नील कमल भी कर दिया था।
उन्होंने बाकायदा एक टीम भी हायर कर ली थी जिसे शूटिंग पूरी होने तक उन्हें हर महीने पगार भी देनी थी। लेकिन सेठ चंदूलाल शाह की शर्त से वो मुश्किल में आ गए। फिल्म बंद करने की स्थिति में किदार शर्मा थे नहीं।
इसलिए उन्होंने सेठ चंदूलाल शाह के एक लाख रुपए लौटाकर अपने दम पर फिल्म बनाने का फैसला किया। मगर ये कोई आसान बात नहीं थी। शूटिंग जारी रखने के लिए पैसे की ज़रूरत थी। और पैसा जुटाना बहुत चुनौतीपूर्ण था।
किदार शर्मा एक दिन यूं ही टेंशन में रंजीत स्टूडियोज़ के अपने ऑफिस में टेंशन में बैठे थे कि तभी एक्ट्रेस नज़ीराबाई उनके रूम में आई। नज़ीराबाई भी नील कमल में काम कर रही थी।
नज़ीराबाई का वास्तविक नाम निशि था। पर चूंकि उन्होंने एक मुस्लिम युवक से शादी की थी तो उन्होंने अपना नाम निशि से नज़ीराबाई कर लिया था। उस दिन नज़ीराबाई के पास एक पैकेट था जिसे वो एक रुमाल में लपेटकर लाई थी।
वो किदार शर्मा को देखकर मुस्कुरा रही थी। इससे पहले कि नज़ीराबाई कुछ कहती, किदार शर्मा गुस्से से बोले,"मैं अभी तक मरा नहीं हूं नज़ीराबाई। मुझे थोड़ा समय और दो। दे दूंगा तुम्हारी तनख्वाह। फिलहाल मुझे अकेला छोड़ दो।" बेचारी नज़ीराबाई वहां से चली गई। लेकिन जाने से पहले अपने साथ रुमाल में लपेटकर लाई पैकेट किदार शर्मा की टेबल पर ही छोड़ गई।
किदार शर्मा को लगा कि जैसे नज़ीराबाई पहले भी कई दफा उनके लिए कुछ खाने को लाती रही है, आज भी कुछ लाई होगी। मगर जब उन्होंने वो पैकेट खोला तो उन्हें कुछ सेकेंड्स तक यकीन ही नहीं हुआ कि वो जो देख रहे हैं वो सच्चाई है या कोई ख्वाब है। उस पैकेट में 17 हज़ार रुपए और सोने के कुछ गहने थे।
यानि नज़ीराबाई किदार शर्मा से तनख्वाह मांगने नहीं, उनकी मदद करने आई थी। किदार शर्मा खुद पर बड़े शर्मिंदा हुए। वो फौरन नज़ीराबाई की तरफ दौड़े। जब सीढ़ियों पर वो नज़ीराबाई से मिले तो उन्होंने देखा कि वो रो रही थी। नज़ीराबाई की आंखें लाल हो चुकी थी।
किदार शर्मा ने हाथ जोड़कर नज़ीराबाई से माफी मांगी। धन्यवाद कहा। फिर मुस्कुराकर बोले कि आप अपने रुपए और गहने वापस रख लीजिए। अगर हो सके तो कल मेरे लिए कुछ भजिया पकाकर ले आइएगा। किदार शर्मा ने नज़ीराबाई को आश्वासन दिया कि अगले कुछ दिनों में वो कहीं से लोन पर रुपए लेकर फिर से काम शुरू कर देंगे।
अगर आप किदार शर्मा की बायोग्राफी "वन एंड लोनली:किदार शर्मा" पढ़ेंगे तो आपको पता लगेगा कि जीवन में जब भी किदार शर्मा किसी मुसीबत में फंसते थे तो अपनी दादी का याद कराया एक भजन गाते थे। और चमत्कारिक रूप से उन्हें कहीं ना कहीं से मदद मिल भी जाती थी। इस दफा भी ऐसे ही हुआ।
जब किदार शर्मा को कहीं से कोई उम्मीद नहीं दिखी तो उन्होंने फिर से अपनी दादी का भजन गुनगुनाया। और भगवान ने किदार शर्मा के पास फिर से मदद भेज दी। हुआ यूं कि किदार शर्मा की फिल्म के बारे में एक डिस्ट्रीब्यूटर को पता चला।
वो डिस्ट्रीब्यूटर किदार शर्मा के हुनर को उनकी फिल्म चित्रलेखा(1941) के समय से ही पहचानता था। जब उसे पता चला कि किदार शर्मा खुद फिल्म प्रोड्यूस कर रहे हैं और पैसों की तंगी की वजह से फिल्म पर काम नहीं कर पा रहे हैं तो उसने सेंट्रल इंडिया टैरिटरी में फिल्म के राइट्स खरीदने का ऑफर किदार शर्मा को दिया।
किदार शर्मा ने उस डिस्ट्रीब्यूटर से कहा कि वो राइट्स सेल कर देंगे। लेकिन उन्हें एक लाख रुपए एडवांस चाहिए। उस ज़माने में किसी डिस्ट्रीब्यूटर द्वारा प्रोड्यूसर को एक लाख रुपए एडवांस चुकाना किसी ने सोचा भी नहीं था।
लेकिन वो डिस्ट्रीब्यूटर किदार शर्मा को एक लाख रुपए चुकाने को तैयार हो गया। बल्कि अगले दिन वो खुद एक लाख रुपए कैश साथ लेकर किदार शर्मा से मिलने आया।
उस डिस्ट्रीब्यूटर ने ना सिर्फ सेंट्रल इंडिया, बल्कि दो और टैरिटरीज़ के राइट्स भी खरीद लिए। फिर तो देखते ही देखते बंगाल को छोड़कर लगभग सभी टैरेटरीज़ में फिल्म के राइट्स सेल हो गए।
जबकी फिल्म तब तक पूरी भी नहीं हुई थी। ना ही बेगम पारा को छोड़कर फिल्म में कोई और मशहूर चेहरा था। बेगम पारा राजकुमारी का किरदार निभा रही थी। राज कपूर बने थे मधुसूदन और बेबी मुमताज(मधुबाला) बनी थी गंगा।
फिल्म पूरी करने के बाद किदार शर्मा ने सेठ चंदूलाल शाह और मिस गौहरबाई को फर्स्ट ट्रायल देखने के लिए आमंत्रित किया। वो दोनों आए और फिल्म देखकर किदार शर्मा से बहुत प्रभावित भी हुए। सेठ चंदूलालशाह ने किदार शर्मा से पूछा कि क्या कोई टैरेटरी है जहां इस फिल्म के राइट्स अभी तक सेल ना हुए हों?
सेठ चंदूलाल शाह किदार शर्मा की मूंह मांगी कीमत पर नील कमल के राइट्स खरीदना चाहते थे। और दस हज़ार रुपए पेशगी के तौर पर फौरन देने को भी तैयार थे।
किदार शर्मा ने उनका आभार व्यक्त किया और उन्हें बताया कि बंगाल टैरेटरी के राइट्स अभी तक सेल नहीं हुए हैं। सेठजी चाहें तो वो खरीद सकते हैं। और बदले में उन्हें कोई पैसा देने की भी ज़रूरत नहीं है। वो रंजीत स्टूडियो के बिल्स में बंगाल टैरेटरी के राइट्स की रकम एडजस्ट कर लेंगे।
दरअसल, अपनी फिल्म नील कमल की शूटिंग में रंजीत स्टूडियोज़ के जिन इक्विपमेंट्स व जगह का इस्तेमाल किदार शर्मा ने किया था उसके लिए उन्हें रंजीत स्टूडियोज़ को फीस भी चुकानी थी।
नील कमल पूरी तो हो चुकी थी। लेकिन किदार शर्मा को अभी और साठ हज़ार रुपए की ज़रूरत थी। वो मदद की आस लिए मिस गौहरबाई के पास गए। गौहरबाई ने उन्हें सेठ चंदूलाल शाह के पास जाने की सलाह दी।
गौहरबाई ने उनसे कहा कि सेठजी तुम्हारे काम से बहुत प्रभावित हैं। तुम्हारा बहुत सम्मान करते हैं। वो तुम्हें कतई मना नहीं करेंगे। गौहरबाई की सलाह पर किदार शर्मा सेठ चंदूलाल शाह से मिले और उन्हें अपनी परेशानी बताई। उन्होंने किदार शर्मा को एक लिफाफा थमाया और ऑफिस से चले गए।
उनके जाने के बाद जब किदार शर्मा ने वो लिफाफा खोला तो उसमें साठ हज़ार नहीं, एक लाख रुपए थे। पहले तो किदार शर्मा ने सोचा कि शायद सेठजी ने एक लाख रुपए इसलिए दिए हैं ताकि किदार फिर दोबारा उनके पास पैसे मांगने ना आएं।
लेकिन थोड़ी देर बाद उन्होंने देखा कि नोटों के उस लिफाफे में एक कागज़ भी था जिस पर कुछ लिखा हुआ था। किदार शर्मा ने जब वो कागज़ पढ़ा तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। सेठ चंदूलाल शाह ने लिखा था,"नील कमल काफी प्रोफिटेबल रही है। हम चाहते हैं कि कुछ प्रोफिट तुम्हारे साथ भी शेयर किया जाए।"
उस कागज़ पर सेठ चंदुलाल शाह ने अपने दस्तखत भी किए थे। साथ ही साथ उनके कज़िन व पार्टनर, छोटूभाई व रतीबाई के भी दस्तखत उस कागज़ पर थे। नील कमल ने बढ़िया प्रदर्शन किया था।
राज कपूर और मुमताज के रूप में फिल्म इंडस्ट्री को दो नए सितारे उस फिल्म के ज़रिए, या कहना चाहिए कि किदार शर्मा के ज़रिए मिल गए। मुमताज आगे चलकर मधुबाला के नाम से मशहूर हुई।
लेकिन इस फिल्म के क्रेडिट्स में उनका नाम मुमताज ही दिया गया था। जबकी संगीतकार वासुदेव भाटकर उर्फ स्नेहल भाटकर का नाम दिया गया था बी. वासुदेव।
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