Devika Rani | Bollywood का First Kiss Scene देने वाली हिरोइन की फिल्मी कहानी | Biography
Devika Rani. हिंदी सिनेमा के शुरुआती दौर की वो अदाकारा जिसको भारत की पहली हिरोइन होने का खिताब हासिल है। देविका रानी। वो अभिनेत्री जिसने हिंदी सिनेमा में सबसे पहले चार मिनट लंबा किस सीन दिया था।
10 साल लंबे अपने बेहद सफल फिल्मी करियर में देविका रानी ने खूब तारीफें बटोंरी। आलोचनाएं झेली। धोखा सहा। लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर जीवन की हर चुनौती से लड़ती और जीतती चली गई।
| Devika Rani Biography - Photo: Social Media |
Meerut Manthan आज अपने दर्शकों को अपने ज़माने की महानतम बॉलीवुड अदाकारा Devika Rani की ज़िंदगी की कहानी बताएगा। यूं तो Devika Rani के जीवन पर एक पूरी फिल्म बनाई जा सकती है। लेकिन Meerut Manthan उनके जीवन से जुड़े कुछ अहम किस्से अपने दर्शकों को इस Article के ज़रिए सुनाएगा।
Devika Rani की शुरुआती ज़िंदगी
30 मार्च सन 1908 को देविका रानी का जन्म विशाखापत्तनम में रहने वाले एक बंगाली परिवार में हुआ था। इनका पूरा नाम था देविका रानी चौधरी। इनका परिवार एक बेहद पढ़ा-लिखा और संपन्न परिवार था।
इनके पिता का नाम कर्नल डॉक्टर मनमथनाथ चौधरी था जो कि एक ज़मींदार थे। देविका की मां लीला देवी चौधरी भी काफी पढ़ी-लिखी थी। लीला देवी चौधरी गुरू रबिन्द्रनाथ टैगौर की भांजी थी। यानि रिश्ते में गुरू रबिन्द्रनाथ टैगौर देविका रानी के नाना लगते थे।
इंग्लैंड में गुज़रा बचपन
देविका की उम्र महज़ 9 साल ही थी जब इनके माता-पिता ने इन्हें इंग्लैंड के एक बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने के लिए भेज दिया था। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद देविका ने लंदन के एक कॉलेज से एक्टिंग और म्यूज़िक की पढ़ाई की।
इसके बाद लंदन से ही उन्होंने आर्ट डायरेक्शन और कॉस्ट्यूम डिज़ाइन की पढ़ाई भी की थी। इंग्लैंड में ही एक दिन इनकी मुलाकात हिमांशु राय से हुई थी। भारतवंशी होने के बावजूद भी हिमांशु राय उन दिनों इंग्लैंड में एक जाना-पहचाना चेहरा हुआ करते थे।
वो ना केवल एक प्रोड्यूसर-डायरेक्टर थे, बल्कि एक हीरो भी थे। देविका जब हिमांशु राय से मिली थी तो उस वक्त वो "अ थ्रो ऑफ डाइस" नाम की एक फिल्म बना रहे थे।
हिमांशु राय की दीवानी हो गई Devika Rani
पहली ही मुलाकात में देविका हिमांशु राय की शख्सियत से काफी प्रभावित हुई। देविका ने हिमांशु की असिस्टेंट बनने की गुज़ारिश की और हिमांशु ने उनको अपनी असिस्टेंट के तौर पर रख भी लिया।
साथ काम करने के दौरान देविका रानी और हिमांशु राय एक-दूजे को काफी पसंद करने लगे। जल्द ही ये पसंद मोहब्बत में बदल गई और आखिरकार सन 1929 में देविका रानी और हिमांशु राय ने शादी कर ली।
इस शादी की खबर जब देविका के माता-पिता को मिली तो वो उनसे बेहद नाराज़ हुए। उन्होंने देविका से अपने रिश्ते खत्म कर लिए।
लेकिन हिमांशु राय के रूप में देविका को उनका हमसफर मिल चुका था। इसलिए परिवार की नाराज़गी की उन्होंने ज़रा भी परवाह नहीं की।
पति संग भारत आई और बॉम्बे टॉकीज़ की स्थापना की
साल 1933 में देविका रानी और उनके पति हिमांशु राय ने लंदन में ही एक फिल्म बनाई। कर्मा नाम की उस फिल्म को हिंदी और इंग्लिश, दोनों भाषाओं में बनाया गया था। फिल्म में हीरो और हीरोइन भी ये दोनों पति-पत्नी ही बने थे।
इस फिल्म के रिलीज़ होने के एक साल बाद यानि साल 1934 में देविका और उनके पति हिमांशु राय मुंबई आकर बस गए। मुंबई में इन दोनों ने बॉम्बे टॉकीज़ नाम के एक बेहद भव्य फिल्म स्टूडियो की स्थापना की।
अपने फिल्म स्टूडियो से उन्होंने ढेरों शानदार और सफल फिल्मों का निर्माण किया था। लेकिन इस स्टूडियो में सन 1936 में बनी जीवन नैया नाम की फिल्म से एक बड़ा ही अनोखा किस्सा जुड़ा है।
जब पति को छोड़ साथी कलाकार संग भाग गई Devika Rani
दरअसल, उस फिल्म में हीरोइन देविका रानी थी। और हीरो थे उस ज़माने के बेहद हैंडसम और डैशिंग एक्टर नजमुल हसन। फिल्म की शूटिंग के दौरान देविका रानी नजमुल हसन को अपना दिल दे बैठी।
नजमुल के सामने देविका रानी अपना दिल कुछ इस तरह हार बैठी कि शादीशुदा होने के बावजूद उन्होंने नजमुल हसन के साथ रहने का फैसला कर लिया और देविका रानी उनके साथ भाग गई। जीवन नैया नाम की उस फिल्म की शूटिंग भी लटक गई।
बहुत मनाने पर लौटी देविका रानी
बॉम्बे टॉकीज़ इस पूरे घटनाक्रम से बुरी तरह हिल गया। बड़ी मुश्किल से देविका रानी को जीवन नैया फिल्म को पूरी करने के लिए मनाया गया।
देविका मान गई। लेकिन उनके पति हिमांशु राय ने नजमुल हसन को फिल्म से निकाल दिया और अशोक कुमार नाम के एक नए लड़के को फिल्म का हीरो बनाया।
जी हां, दादामुनी यानि अशोक कुमार की पहली फिल्म बॉम्बे टॉकीज़ की जीवन नैया ही थी। फिल्म रिलीज़ हुई और सुपरहिट साबित हुई। अब तक देविका रानी के सिर से नजमुल हसन का भूत भी पूरी तरह उतर गया था।
इसके बाद तो देविका रानी ने अशोक कुमार के साथ कई फिल्में की और उनमें से अधिकतर फिल्में हिट साबित हुई। देविका रानी और अशोक कुमार की सबसे ज़्यादा चर्चित फिल्म मानी जाती है अछूत कन्या।
अकेले संभाला बॉम्बे टॉकीज़
साल 1939 में जब दूसरा विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो बॉम्बे टॉकीज़ पर भी मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। बॉम्बे टॉकीज़ भयंकर आर्थिक नुकसान की चपेट में आ गया।
बॉम्बे टॉकीज़ को डूबता देख हिमांशु राय बुरी तरह अवसादग्रस्त हो गए और 1940 में हिमांशु रॉय का निधन हो गया। पति की मौत के बाद देविका रानी ने बॉम्बे टॉकीज़ में उनकी जगह ले ली।
देविका रानी बॉम्बे टॉकीज़ की प्रोड्यूसर बन गई। वो लोग जो देविका रानी के बॉम्बे टॉकीज़ का चीफ बनने पर कहते थे कि देविका ये ज़िम्मेदारी संभाल नहीं पाएंगी, देविका ने अपनी काबिलियित से उन सबकी बोलती बंद कर दी।
इंडस्ट्री को दिए नामी सुपरस्टार्स
देविका रानी की देख-रेख में बॉम्बे टॉकीज़ ने कई सुपरहिट फिल्मों का निर्माण किया। इनमें सबसे प्रमुख थी, झूला, बंधन, किस्मत व कंगन।
बॉम्बे टॉकीज़ की कमान संभालने के बाद देविका रानी ने कई नए चेहरों को मौका दिया जो आगे चलकर हिंदी सिनेमा जगत का बहुत बड़ा नाम बने।
इनमें सबसे पहला नाम आता है मधुबाला का। मधुबाला का असली नाम मुमताज़ जहां बेगम था। बसंत नाम की अपनी एक फिल्म में मधुबाला को बेबी मुमताज़ के नाम से बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट देविका रानी ने पहला ब्रेक दिया था।
आगे चलकर देविका रानी ने ही मुमताज़ जहां बेगम का नाम बदलकर मधुबाला किया था।
यूसुफ खान को दिलीप कुमार बनाने वाली Devika Rani ही थी
सन 1944 में जब देविका रानी ने ज्वार भाटा नाम की फिल्म बनाई तो उसमें भी उन्होंने एक नए लड़के यूसुफ खान को एज़ ए हीरो एक्टिंग करने का मौका दिया।
देविका रानी ने यूसुफ खान का नाम बदलक दिलीप कुमार रख दिया था. वही दिलीप कुमार जो आगे चलकर हिंदी सिनेमा में ट्रेजेडी किंग के नाम से मशहूर हुए।
जब देविका रानी छोड़ी फिल्म इंडस्ट्री
इस फिल्म के एक साल बाद यानि 1945 में देविका रानी ने बॉम्बे टॉकीज़ के अपने सभी शेयर्स बेच दिए और उन्होंने फिल्मों से रिटायरमेंट ले लिया।
रिटायर होते ही देविका रानी ने एक रशियन पेंटर से शादी कर ली और बॉम्बे छोड़कर बैंगलौर आ गई और यहीं रहने लगी। बैंगलौर में देविका रानी और उनके दूसरे पति ने ढेर सारी प्रॉपर्टी खरीदी। एक्सपोर्ट का बिजनेस भी सेटअप किया।
और दुनिया से विदा हो गई Devika Rani
जीवन की गाड़ी यूं ही आगे बढ़ती जा रही थी। देविका को कभी कोई औलाद नहीं हुई। सन 1993 में उनके दूसरे पति की मौत हो गई। इसके बाद तो देविका एकदम अकेली पड़ गई।
ज़िंदगी का अकेलापन देविका रानी से बर्दाश्त नहीं हुआ। पति की मौत के लगभग 1 साल बाद यानि 9 मार्च सन 1994 को देविका रानी भी 85 साल की उम्र में ये दुनिया छोड़कर चली गई।
जैसा कि Meerut Manthan ने शुरू में ही कहा था कि देविका रानी की ज़िंदगी की कहानी पर एक पूरी फिल्म बनाई जा सकती है। तो उनके जीवन से जुड़ी कुछ और दिलचस्प कहानियां मेरठ मंथन आप पाठकों को ज़रुर बताएगा।
Meerut Manthan देविका रानी को नमन करते हुए फिल्म इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए उन्हें सैल्यूट करता है। जय हिंद।
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