Comedian Gope की Biography | दुनिया में शायद ही कोई दूसरा कलाकार होगा जिसे गोप जैसी मौत मिली होगी

Comedian Gope. ये बात अपने आप में थोड़ी आश्चर्यजनक और अफसोसनाक है कि आज के दौर के बहुत ही कम सिने प्रेमियों ने भारतीय सिनेमा के शुरुआती दौर के पॉप्युलर कॉमेडियन्स में से एक गोप का नाम सुना है। 

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Comedian Gope Biography - Photo: Social Media

हालांकि गोप साहब पर फिल्माया गया 1949 की फिल्म पतंगा का गीत मेरे पिया गए रंगून वहां से किया है टैलिफोन आज भी उतना ही कर्णप्रिय और लोकप्रिय है, जितना की हमेशा रहा है। 

गोप को भले ही आज के दौर में भुला दिया गया हो। लेकिन चालीस और पचास के दौर में वो भारत के स्टार कॉमेडियन थे।

Meerut Manthan पर आज गुज़रे ज़माने के Comedian Gope की कहानी कही जाएगी। और Comedian Gope की ये कहानी आपको पसंद आएगी, इसका हमें पूरा यकीन है।

शुरुआती जीवन

गोप साहब का जन्म 11 अप्रैल 1913 को सिंध के हैदराबाद में रहने वाले एक सिंधी हिंदू परिवार में हुआ था। अब ये इलाका पाकिस्तान में पड़ता है। 

गोप साहब का पूरा नाम गोप विशनदास कमलानी था। ये सात भाई बहन थे। तीन बहनें और चार भाई। इनके पिता ब्रिटिश सरकार में एक ऑडिट ऑफिसर थे। 

अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने जी तोड़ मेहनत की थी। हालांकि गोप साहब को पढ़ने-लिखने में बहुत ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी। गोप साहब मैट्रिक में फेल भी हो गए थे। 

ऐसे आए फिल्मों में

स्कूल के दिनों में पढ़ाई-लिखाई से ज़्यादा गोप साहब स्पोर्ट्स और ड्रैमेटिक्स में ज़्यादा एक्टिव रहा करते थे।

यही वजह है कि जब एक दिन उस ज़माने के नामी लेखक के.एस.दरियानी ने गोप साहब को एक दिन स्टेज पर एक नाटक में एक्टिंग करते देखा तो वो इनकी प्रतिभा के कायल हो गए। 

के.एस.दरियानी उसी दिन गोप साहब से मिले और उन्हें इंसान या शैतान नाम की फिल्म में काम करने का ऑफर दे दिया। 

वो फिल्म ईस्टर आर्ट प्रोडक्शन्स के बैनर तले बन रही थी और उस फिल्म को मोती गिडवानी डायरेक्ट कर रहे थे। गोप साहब ने बिना देर किए के.एस.दरियानी का वो ऑफर स्वीकार कर लिया। 

और इस तरह साल 1933 में आई फिल्म इंसान या शैतान से एक छोटे से रोल के साथ गोप साहब का फिल्मी सफर शुरू हो गया। उस फिल्म में नरगिस दत्त की मां जद्दनबाई ने भी एक्टिंग की थी। 

याकूब के साथ खूब जमी गोप की जोड़ी

गोप साहब ने अपने करियर में डेढ़ सौ से भी ज़्यादा फिल्मों में काम किया था। वो एक शानदार एक्टर थे और कॉमिक किरदारों को बड़ी खूबसूरती के साथ निभाते थे। 

50 के दशक में गोप साहब को साथ मिला उस दौर के एक और धांसू कॉमेडियन याकूब का। इन दोनों की जोड़ी ने कई फिल्मों में ज़बरदस्त कॉमेडी की। 

लोगों ने गोप और याकूब की जोड़ी को भारत का लॉरेल और हार्डी कहना शुरू कर दिया। पहली दफा गोप और याकूब की जोड़ी साथ नज़र आई सन 1949 में आई फिल्म पतंगा में। 

पतंगा ही वो फिल्म थी जिसमें गोप साहब और निगार सुल्ताना पर एक एतिहासिक गीत फिल्माया गया था जिसके बोल थे मेरे पिया गए रंगून वहां से किया है टैलिफोन। 

यकीनन आपने भी ये गीत खूब सुना होगा। गोप और याकूब की जोड़ी की सबसे शानदार फिल्म मानी जाती है 1950 में आई बेकसूर। इस फिल्म में अजित खान और मधुबाला मुख्य भूमिकाओं में थे। 

प्रमुख फिल्में

गोप साहब के करियर की प्रमुख फिल्मों की बात करें तो इन्होंने बाज़ार(1949), भाई-बहन(1950), अनमोल रतन(1950), तराना(1951), सज़ा(1951), सनम(1951) और चोरी चोरी(1956) जैसी बड़े बजट और बड़ी स्टारकास्ट वाली फिल्मो में काम किया और अपने हुनर का लोहा मनवाया। 

लतिका संग लव मैरिज

गोप साहब की निजी ज़िंदगी की बात करें तो इन्होंने एंग्लो-नेपाली एक्ट्रेस लतिका से लव मैरिज की थी। गोप और लतिका ने 5 नवंबर 1949 को शादी की थी। कुछ लोग दावा करते हैं कि गोप और लतिका का एक बेटा था। 

जबकी कुछ का कहना है कि इनके दो बेटे थे। कुछ लोग तो ये भी कहते हैं कि चूंकि लतिका ईसाई थी तो गोप ने भी उनसे शादी करने के बाद ईसाई धर्म अपना लिया था। सच क्या है ये हम भी नहीं जानते। 

गोप के करियर की और बातें

अपने करियर के एक दौर में गोप साहब ने निगेटिव शेड वाले कैरेक्टर्स भी प्ले किए थे। हालांकि उनके निभाए निगेटिव कैरेक्टर्स में कॉमिक टच भी हुआ करता था। 

दिलीप कुमार-मधुबाला स्टारर तराना में गोप ने एक कॉमिक टच वाला निगेटिव रोल ही निभाया था। एक वक्त ऐसा भी आया था जब गोप साहब ने फिल्म प्रोडक्शन में भी हाथ आज़माया था। 

अपने छोटे भाई राम कमलानी के साथ मिलकर गोप साहब ने अपना एक प्रोडक्शन हाउस इस्टैब्लिश किया था। अपने प्रोडक्शन हाउस के अंडर में गोप साहब ने हंगामा(1952) और मालकिन(1953) नाम की दो फिल्में भी प्रोड्यूस की थी। 

इन फिल्मों का डायरेक्शन इनके भाई राम कमलानी ने किया था। हालांकि फिल्म निर्माण में गोप और उनके भाई को सफलता नहीं मिल पाई थी। 

गोप जैसी मौत किसी और कलाकार को नहीं मिली होगी

गोप साहब का जीवन और उनका करियर बहुत शानदार चल रहा था। लेकिन फिर एक दिन एक ऐसी मनहूस और हैरान कर देने वाली खबर आई जिसने देशभर के सिने प्रेमियों के दिल तोड़ दिए। 

गोप साहब तीसरी गली नाम की फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। उस फिल्म में इनका एक सीन था जिसमें इन्हें हार्ट अटैक आता है और ये कहते हैं, मैं ऊपर जा रहा हूं। 

जैसे ही गोप साहब ने ये डायलॉग बोला और वो ज़मीन पर गिरे, शूटिंग स्थल पर मौजूद हर किसी ने गोप के लिए तालियां बजाई। लेकिन काफी देर तक जब गोप साहब नहीं उठे तो उन्हें उठाने की कोशिश की गई। 

मगर तब तक गोप साहब इस दुनिया से जा चुके थे। वो फिल्मी सीन उनकी ज़िंदगी का असल किस्सा बन गया। 

उस दिन गोप साहब को सच में एक तेज़ हार्ट अटैक आ गया और 19 मार्च साल 1957 में गोप साहब की मौत हो गई। 

पूरी दुनिया में शायद ही ऐसी मौत किसी और कलाकार को मिली हो जैसी गोप साहब को मिली थी। गोप साहब की मौत की खबर ने फिल्म इंडस्ट्री में सनसनी फैला दी थी। 

उनकी मौत के कुछ समय बाद उनकी पत्नी लतिका अपने बेटे के साथ लंदन शिफ्ट हो गई थी। गोप साहब की कुछ फिल्में उनकी मृत्यु के बाद ही रिलीज़ हुई थी। 

और तीसरी गली नाम की जिस फिल्म की शूटिंग के दौरान गोप साहब की मौत हुई थी वो 1958 में रिलीज़ हुई थी। 

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