PK Movie Unknown Facts | Aamir Khan की शानदार Acting | Rajkumar Hirani का ज़बरदस्त Direction

PK Movie Unknown Facts. 19 दिसंबर साल 2014 में आई थी आमिर खान की ब्लॉकबस्टर फिल्म पीके। पीके ने बॉक्स ऑफिस पर ढेरों पुराने रिकॉर्ड्स तोड़े। और कई नए रिकॉर्ड्स सेट कर दिए थे। 

थ्री इडियट के बाद पीके राजकुमार हिरानी और आमिर खान की दूसरी फिल्म थी। और इस फिल्म ने भी थ्री इडियट्स की तरह ज़बरदस्त सफलता हासिल की थी। 

फिल्म को लेकर काफी कंट्रोवर्सी भी हुई थी। लेकिन सिनेमा लवर्स ने इस फिल्म को बहुत पसंद किया था। फिल्म का एक-एक कैरेक्टर ज़बरदस्त था। और फिल्म में दिखे हर एक्टर ने बड़ी शिद्दत से अपने काम को अंजाम दिया था। 

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PK Movie Unknown Facts - Photo: Social Media

फिल्म के मुख्य कलाकारों का ज़िक्र करें तो एक्ट्रेस अनुष्का शर्मा ने इसमें जगत जननी उर्फ जग्गू का कैरेक्टर प्ले किया था। लेट एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने इसमें पाकिस्तानी युवक सरफराज़ का किरदार निभाया था। 

बोमन ईरानी बने थे न्यूज़ चैनल के मालिक चैरी बाजवा। संजय दत्त बने थे पीके के संरक्षक और बैंड मास्टर भैरों सिंह। परीक्षित साहनी ने जगत जननी के पिता जयप्रकाश साहनी का रोल निभाया। 

सौरभ शुक्ला इस फिल्म के मेन एंटोग्निस्ट तपस्वी महाराज बने थे। और आखिरी में रनबीर कपूर ने भी इस फिल्म में एक कैमियो किया था, जिसमें वो भी आमिर खान की ही तरह एलियन बनकर पृथ्वी पर आए थे। वैसे, और जितने भी कलाकार इस फिल्म में थे, उन सभी ने बड़ी खूबसूरती से अपने काम को अंजाम दिया था।

PK जैसी शानदार Movie बनने की कहानी भी शानदार है। और आज उनमें से कुछ कहानियां Meerut Manthan भी आपको बताएगा। यकीन कीजिएगा दोस्तों, PK Movie की मेकिंग की ये कहानियां आपको बहुत ज़्यादा पसंद आएंगी। PK Movie Unknown Facts.

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पहली कहानी

आमिर खान ने पीके फिल्म में बहुत ज़्यादा पान खाए हैं। फिल्म का वो सीन जब आमिर खान फूलझड़िया के कोठे पर संजय दत्त के साथ जाता है, तो फुलझड़िया उसे पान खिलाती है। वो सीन शूट करते वक्त आमिर खान को कई टेक्स करने पड़ गए थे। 

और हर टेक में आमिर खान एक पान चबाते थे। और चूंकि आमिर खान ने फिल्म के और भी कई सीन्स में पान खाए थे तो वो सभी सीन्स शूट करते वक्त आमिर खान जब भी टेक लेते थे, उन्हें हर टेक में एक नया पाना चबाना पड़ता था। 

कई दफा तो ऐसा होता था कि आमिर खान एक दिन में सौ पान तक चबा जाते थे। आपको यकीन नहीं होगा कि पीके के अपने इन पान वाले सीन्स की शूटिंग के दौरान आमिर खान ढेर सारे पान चबा गए थे। 

और चूंकि आमिर खान रोज़मर्रा की ज़िंदगी में पान नहीं खाते हैं, तो इतने ज़्यादा पान चबाने की वजह से कई दफा आमिर खान के मुंह में छाले भी पड़ जाते थे। 

लेकिन आमिर तो ठहरे मिस्टर पर्फेक्शनिस्ट। सीन को परफेक्ट बनाने के लिए उन्होंने कभी भी अपने मुंह के छालों की परवाह नहीं की।

दूसरी कहानी

चूंकी पीके में आमिर खान एक एलियन बने थे तो उनके कानों की बनावट थोड़ी अजीब सी थी। फिल्म में अपने कानों को ऐसा दिखाने के लिए आमिर खान प्लास्टिक का एक डिवाइस अपने कान के पीछे लगाते थे। 

और बकौल आमिर, उनके कान में जन्म से ही एक एक्सट्रा हड्डी है। इसलिए प्लास्टिक का वो डिवाइस उस हड्डी पर काफी दबाव डालता था, जिससे आमिर को बड़ा दर्द होता था। जब आमिर के पीछे के शॉट्स लिए जाते थे तो उन्हें वो प्लास्टिक डिवाइस निकालना पड़ता था। 

उस डिवाइस को बार-बार निकालने-पहनने की वजह से आमिर का दर्द और ज़्यादा बढ़ गया। तब अनुष्का शर्मा ने आमिर को बैंडेड के जैसी एक पट्टी दी, जिसे वो अमेरिका से लाई थी। अमेरिका में अनुष्का के पैर में छाला हो गया था, तब उन्होंने वहां वो पट्टी खरीदी थी। 

अनुष्का ने वही पट्टी आमिर के कानों के पीछे लगाई। और उसे लगाने के बाद आमिर को दोबारा वो प्लास्टिक डिवाइस अपने कान के पीछे पहनने की ज़रूरत नहीं पड़ी। उस पट्टी को लगाने से ही आमिर के कान वैसे दिखने लगे थे जैसे कि राजकुमार हिरानी को चाहिए थे।

तीसरी कहानी

पीके का वो सीन जिसमें एक चोर आमिर का रिमोट छीनकर ट्रेन से भागता है और आमिर उसके पीछे दौड़ते हैं। उ

स सीन में जब आमिर उस चोर को ट्रेन पर पकड़ने की कोशिश करते हैं तो खींचा-तानी में आमिर के हाथ में उस चोर का ट्रांजिस्टर आ जाता है। और चोर आमिर का रिमोट लेकर भागने में सफल हो जाता है। 

उस खींचा-तानी में आमिर खान के चेहरे पर ट्रांजिस्टर लग भी जाता है। जब ये सीन आमिर शूट कर रहे थे तो वो ट्रांजिस्टर असलियत में आमिर खान के चेहरे पर लग गया था। और इतनी ज़ोर से लगा था कि आमिर की आंख के नीचे एक लाल निशान बन गया था। 

वो हिस्सा सूज भी गया था। और इतनी तेज़ी से आमिर के चेहरे पर वो सूजन आई कि फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन में राजकुमार हिरानी को आमिर के चेहरे पर पड़े उस लाल निशान को छिपाना पड़ा था। 

वैसे, उस सीन को शूट करते वक्त आमिर ने सच में बहुत मेहनत की थी। चिचिलाती धूप और बेतहाशा गर्मी में आमिर उस रेलवे लाइन पर नंगे पैर और नंगे बदन दौड़े थे।

चौथी कहानी

अगर आप पीके फिल्म को अबकी दफा देखेंगे तो आप ध्यान दीजिएगा कि आमिर खान जब भी अपने डायलॉग्स बोलते हैं, वो अपनी पलकें नहीं झपकाते हैं। आमिर के पलकें ना झपकाने का आईडिया प्रोड्यूसर विधू विनोद चोपड़ा का था। 

जबकी पहले स्क्रिप्ट में ऐसा कुछ नहीं था। आमिर ने यूं ही अपने सीन्स शूट करने शुरू कर दिए थे। लेकिन एक दिन विधू विनोद चोपड़ा ने आमिर से बिना पलक झपकाए ही सीन शूट करने को कहा। 

आमिर ने जब वो सीन विधू विनोद चोपड़ा के मुताबिक शूट किया तो वो सीन बढ़िया निकलकर आया। बस फिर क्या था, आमिर ने अपने सभी सीन्स ऐसे ही शूट किए। 

हालांकि इस तरह बिना पलकें झपकाए शूटिंग करना आमिर के लिए काफी चैलेंजिग भी रहा था। अक्सर उनकी आंखें जलने लगती थी। लेकिन आमिर ने कड़ी मेहनत से अपने सभी सीन्स बिना पलकें झपकाए शूट किए। 

वैसे, गनीमत ये थी कि विधू विनोद चोपड़ा को ये आईडिया जल्दी आ गया था। क्योंकि अगर फिल्म की शूटिंग काफी ज़्यादा होने के बाद विधू ये आईडिया देते तो शायद उनका ये आईडिया वहीं ड्रॉप कर दिया जाता।

पांचवी कहानी

कोई भी फिल्म जब बनती है तो उसके क्य्रू में एक कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर भी होता है। पीके में भी था। पीके में सभी एक्टर्स की कॉस्ट्यूम्स की ज़िम्मेदारी रूषी शर्मा को दी गई थी। 

लेकिन सरप्राइज़िंगली, पीके में आमिर खान के शुरुआती सीन्स के लिए कोई कॉस्ट्यूम डिज़ाइन नहीं की गई थी। शूटिंग शुरू होने से पहले रूषी शर्मा राजस्थान गई और उन्होंने सड़क चलते लोगों से कपड़े लेना शुरू कर दिया। 

उन्हें सड़क पर जिस किसी की भी कमीज़ पसंद आ जाती थी, वो उसके पास जाकर कहती कि आप ये कमीज़ हमें दे दो। हम इसके बदले में आपको दूसरी कमीज़ दे देंगे। या आप चाहें तो हम आपको इसके बदले में पैसे भी दे देंगे। 

कुछ लोग तो मना कर देते थे। जबकी कई लोगों ने खुशी से अपनी कमीज़ एक दूसरी कमीज़ और कुछ पैसों के बदले रूषी शर्मा को दे दी। और पीके में आमिर खान ने कई सीन्स में इन्हीं कपड़ों को पहना है।

छठी कहानी

पीके फिल्म में आमिर खान का कैरेक्टर भोजपुरी भाषा बोलता दिखता है। ये भाषा उसने फुलझड़िया में से खुद के अंदर ट्रांसफर की थी। 

फिल्म में अपने डायलॉग्स भोजपुरी में बोलने के लिए आमिर खान ने लगभग दो सालों तक भोजपुरी बोलना सीखा था। 

उन्होंने बाकायदा टीवी लेखक शांति भूषण को हायर किया था, जो दिन में तीन घंटे आमिर को भोजपुरी सिखाने आते थे। 

भोजपुरी जल्दी सीखने के लिए आमिर ने एक नोटबुक में फोनेटिकली अपने सभी डायलॉग्स भोजपुरी में लिखने शुरू कर दिए। आमिर की मेहनत रंग लाई। शूटिंग शुरू होने से पहले ही आमिर फ्लुएंटली भोजपुरी बोलने लगे थे। 

वैसे, इससे भी रोचक बात ये है कि डायरेक्टर राजकुमार हिरानी ने इस फिल्म की स्क्रिप्ट में भोजपुरी नहीं, राजस्थानी भाषा रखी थी। लेकिन आमिर खान ने राजस्थानी की जगह भोजपुरी भाषा में अपने डायलॉग्स रखवाए थे।

सातवीं कहानी

पीके में संजय दत्त का निभाया बैंड वाले भैरों सिंह का कैरेक्टर भी बड़ा ज़बरदस्त था। संजय दत्त ने भी वो किरदार बड़ी कुशलता से निभाया था। 

लेकिन जब संजय दत्त पीके के अपने सीन्स की शूटिंग कर रहे थे तो इसी दौरान अदालत ने 1993 के मुंबई ब्लास्ट से जुड़े एक केस में संजय दत्त को जेल की सज़ा सुना दी थी। संजय दत्त को जेल जाना ही था। 

खुशकिस्मती से जिस वक्त संजय को सज़ा सुनाई गई थी, उस वक्त उनका आखिरी सीन शूट होना बाकि रह गया था। संजय पीके के सेट पर अपना लास्ट सीन शूट करने पहुंचे। हर कोई शॉक्ड था। और सैड भी था। राजकुमार हिरानी भी संजू को लेकर काफी अपसेट थे। 

लेकिन संजय दत्त ने सबको नॉर्मल किया और अपना पूरा सीन बिना किसी परेशानी के कंप्लीट किया। फिर जब संजय दत्त वापस लौट रहे थे तो उस वक्त सेट का माहौल काफी इमोशनल हो गया था।

आठवीं कहानी

पीके में एक से बढ़कर एक कॉमेडी सीन्स हैं। वो सीन जब आमिर खान एक बारबर के पजामे को पहले बाहर खींचते हैं और फिर वापस उसकी बॉडी में अंदर घुसाते हैं, उसे शूट करते वक्त आमिर खान को बड़ी दिक्कत हो रही थी। 

और वो इसलिए क्योंकि आमिर खान का कैरेक्टर एलियन का था। कहानी के मुताबिक पीके का कैरेक्टर जब ऐसी हरकतें करता है तो उसे ज़रा भी हंसी नहीं आनी चाहिए। 

क्योंकि एलियन को पता नहीं है कि ये कोई मज़ाकिया बात हो सकती है। लेकिन जब आमिर इस सीन को शूट कर रहे थे तो वो अपनी हंसी पर काबू नहीं कर पा रहे थे। 

आमिर जब भी उस बारबर का पजामा वापस अंदर घुसाते, उनकी हंसी छूट पड़ती। इस वजह से वो सीन शूट करते वक्त कई सारे टेक्स लेने पड़े थे। काफी देर बाद आमिर खान उस सीन को सही से शूट कर सके थे।

नौंवी कहानी

राजकुमार हिरानी ने जब पीके की स्क्रिप्ट पर काम करना शुरू किया तो उन्होंने इसका नाम टल्ली रखा था। 

स्क्रिप्ट जब आगे बढ़ी तो राजकुमार हिरानी को लगा कि इस फिल्म का नाम टल्ली नहीं, एक था टल्ली रखा जाना चाहिए। लेकिन उन्हीं दिनों सलमान खान की फिल्म 'एक था टाइगर' रिलीज़ होने वाली थी। 

इसलिए राजकुमार हिरानी ने ये नाम भी ड्रॉप कर दिया। उसके बाद राजकुमार हिरानी ने इस फिल्म के कई नाम सोचे। 

मगर कोई भी नाम उन्हें अपीलिंग नहीं लग रहा था। और फाइनली पीके नाम उनके दिमाग में आया। और इस तरह ये फिल्म पीके कहलाई।

दसवीं कहानी

गॉड ऑफ क्रिकेट कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर को पीके फिल्म इसकी रिलीज़ से भी काफी पहले दिखा दी गई थी। और पीके देखकर सचिन तेंदुलकर दंग रह गए थे। उन्हें ये फिल्म बहुत ज़्यादा पसंद आई थी। 

खासतौर पर आमिर खान का काम उन्हें बहुत बढ़िया लगा था। पीके देखने के बाद आमिर खान ने देशभर के लोगों से अपील की थी कि सभी लोग ये फिल्म देखनें जाएं। क्योंकि ये फिल्म बहुत शानदार है। 

और शायद सचिन की इन बातों का ही असर रहा हो, पीके जब सिनेमाघरों में आई तो इसे देखने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। और इस फिल्म ने ज़बरदस्त बिजनेस किया।

11वीं कहानी

पीके फिल्म में एक सीन है जब आमिर और अनुष्का दिल्ली के कनॉट प्लेस से गुज़र रहे होते हैं। और एक बुजुर्ग सरदार जी आकर आमिर खान से अपनी बीवी की दवाई के लिए पैसे मांगते हैं। अगली बार पीके देखें तो इस सीन को ज़रा ध्यान से देखिएगा। 

क्योंकि जिस जगह ये सीन शूट किया गया है ये वही जगह है जहां आमिर और राजू हिरानी की ही थ्री इडियट का वो सीन शूट किया गया था जिसमें करीना कपूर अपने मंगेतर सुहास की गिफ्ट की गई चार लाख रुपए वाली घड़ी खो देती हैं और आमिर खान वहां सुहास से फिरकी लेते हैं।

12वीं कहानी

पीके पहली ऐसी फिल्म है जिसमें आमिर खान और संजय दत्त ने एक साथ काम किया है। पीके से पहले कभी किसी फिल्म में इन दोनों एक्टरों ने साथ काम नहीं किया था। 

हां, साल 1992 में एक दफा सिचुएशन बनी थी जब आमिर खान और संजय दत्त एक फिल्म में साथ नज़र आने वाले थे। लेकिन ऐन वक्त पर आमिर खान ने वो फिल्म छोड़ दी थी। 

और फिर आमिर खान की जगह उस फिल्म में आदित्य पंचोली को लिया गया था। वो फिल्म थी तीन अप्रैल 1992 को रिलीज़ हुई साहिबज़ादे, जिसे अजय कश्यप ने डायरेक्ट किया था।

13वीं कहानी

पीके फिल्म का क्लाइमेक्स सीन बड़ा खूबसूरत है। ये सीन इतना इंटेंस है कि आज भी जब पीके टीवी पर आती है तो इस सीन को देखकर हर किसी का पूरा ध्यान इस सीन पर जमा रहता है। 

अगली बार जब भी कभी आप पीके का ये सीन देखें तो गौर कीजिएगा कि तपस्वी पीके से शर्त लगाता है कि अगर उसने साबित कर दिया कि सरफराज़ ने जग्गू को धोखा दिया था तो वो उसका रिमोट उसे वापस दे देगा।

पीके यहां कहता है,"शरत मंजूर है।" और जिस स्टाइल से आमिर खान ने यहां शरत मंजूर है कहा है, हूबहू इसी स्टाइल में आमिर खान ने "शरत मंजूर है" कहा था साल 2001 में आई फिल्म लगान में। 

वो भी तब जब कैप्टन रसेल भुवन से शर्त लगाता है कि अगर भुवन ने क्रिकेट मैच में उसकी टीम को हरा दिया तो वो तीन साल का लगान माफ कर देगा।

14वीं कहानी

राजकुमार हिरानी अब तक मुन्ना भाई एमबीबीएस, लगे रहो मुन्ना भाई, थ्री इडियट्स, पीके और संजू फिल्म बना चुके हैं। 

शाहरुख के साथ उन्होंने डंकी बनाई है। यानि कुल मिलाकर अब तक राजकुमार हिरानी ने छह फिल्में बनाई हैं। 

और बोमन ईरानी इकलौते ऐसे कलाकार हैं जो राजकुमार हिरानी की सभी फिल्मों में दिखे हैं। मुन्ना भाई, लगे रहो मुन्ना भाई और थ्री इडियट्स में वो मेन एंटोग्निस्ट थे। पीके में उन्होंने एक पॉज़िटिव कैरेक्टर प्ले किया था। 

संजू में उन्होंने रूबी के फादर का किरदार निभाया था। और डंकी में भी वो एक बड़े इंपोर्टेंट रोल में हैं। यानि राजकुमार हिरानी की टीम का अभिन्न हिस्सा हैं बोमन ईरानी।

15वीं कहानी

पीके में लेट सुशांत सिंह ने राजपूत भी एक छोटा लेकिन बड़ा ही खास रोल निभाया था। वो इस फिल्म में एक पाकिस्तानी स्टूडेंट बने थे जो बेल्जियम में रहकर पढ़ाई करता है। 

और वहां उसकी मुलाकात भारत की जग्गू से होती है। दोनों में दोस्ती होती है और फिर प्यार भी हो जाता है। फिर कुछ ऐसा होता है कि सरफराज़ और जग्गू अलग हो जाते हैं। जग्गू को लगता है कि सरफराज़ ने उसे धोखा दिया है। 

लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है। और उस हकीकत से फिल्म के क्लाइमैक्स में पीके जग्गू को रूबरू कराता है। इस फिल्म में आमिर खान का कैरेक्टर पीके कई दफा सुशांत के कैरेक्टर सरफराज़ का नाम लेता है। 

लेकिन ये बात भी अनोखी है कि पूरी फिल्म में एक भी ऐसा सीन नहीं है जिसमें सुशांत सिंह राजपूत आमिर खान के साथ नज़र आए हों। वैसे, ये बात भी जानने लायक है कि पीके पहली भारतीय फिल्म है जो यूरोपीय देश बेल्जियम में शूट हुई थी।

16वीं कहानी

राजकुमार हिरानी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि पीके फिल्म का आईडिया आने से लेकर इसके बनने तक में पूरे पांच सालों का वक्त लगा। इस फिल्म की कहानी उन्होंने लेखक अभिजात जोशी के साथ मिलकर लिखी है। 

पहले जो कहानी इन दोनों ने लिखी थी वो हॉलीवुड फिल्म इन्सैप्शन से काफी ज़्यादा मिलती-जुलती थी। राजकुमार हिरानी कहते हैं कि जिस वक्त उन्होंने पहली कहानी लिखी थी, उस वक्त तक इंसैप्शन फिल्म उन्होंने देखी भी नहीं थी। 

फिर जब इंसैप्शन उन्होंने देखी तो वो बड़ा निराश हुए। क्योंकि उनकी कहानी इंसैप्शन के काफी सिमिलर जा रही थी। 

उन्होंने और अभिजात जोशी ने दोबारा से कहानी लिखनी शुरू की। और फाइनली लगभग तीन सालों के बाद पीके की कहानी तैयार हुई। और दो साल इस फिल्म की शूटिंग में लगे।

17वीं कहानी

पीके के सबसे आखिरी सीन में रनबीर कपूर भी दिखे थे। मज़े की बात ये है कि पीके की रिलीज़ से पहले किसी को पता भी नहीं था कि रनबीर कपूर इस फिल्म में कोई कैमियो करने वाले हैं। 

फिल्म की शुरुआत भी कुछ ऐसे होती है कि कास्ट एंड क्रेडिट्स रोल दिखाए ही नहीं जाते। यानि फिल्म देखते वक्त आखिर तक दर्शकों को भी नहीं पता था कि रनबीर कपूर भी इस फिल्म में कैमियो में हैं। 

और जब आखिरी सीन में दर्शकों ने रनबीर कपूर को देखा तो उनकी एक्स्याटमेंट का लेवल पीक पर पहुंच गया। रिलीज़ होने के बाद पीके में रनबीर कपूर के कैमियो की भी मीडिया में खूब चर्चा हुई थी।

18वीं कहानी

आपने शायद पहले कभी ये बात नहीं सुनी होगी कि शाहरुख खान भी पीके फिल्म में नज़र आ सकते थे। दरअसल, राजकुमार हिरानी चाहते थे कि शाहरुख खान उस वाले एलियन का रोल निभाएं जो फिल्म के आखिरी सीन में आमिर खान के साथ पृथ्वी पर आता है। 

लेकिन शाहरुख ने ये रोल निभाने से मना कर दिया। जो अल्टीमेटली रनबीर कपूर के पास गया। वैसे, पीके के कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा तो सरफराज़ के रोल के लिए भी शाहरुख खान को कास्ट करना चाहते थे। 

लेकिन राजकुमार हिरानी नहीं चाहते थे कि शाहरुख वो रोल निभाएं। राजकुमार हिरानी सरफराज़ के रोल के लिए किसी ऐसे एक्टर की तलाश में थे जो दिखने में काफी यंग हो। और उनकी ये तलाश सुशांत सिंह राजपूत पर जाकर खत्म हुई थी।

19वीं कहानी

पीके फिल्म बेशक एक मास्टरपीस है। लेकिन कंटीन्यूटी की कुछ गलतियां इस फिल्म में भी हुई हैं। याद कीजिए, फिल्म में एक सीन है जब पीके मंदिर के दान पात्र से पैसे निकालते हुए पकड़ा जाता है। तब वहां जग्गू आकर उसे बचाती है। उस वक्त जग्गू के सारे पैसे मंदिर का पुजारी रख लेता है। 

जग्गू फोन पर अपनी एक सहेली से कहती है कि मेरे पास पैसे नहीं बचे हैं, मुझे लेने आ जाओ। तब पीके जग्गू को वही दो सौ रुपए ऑफर करता है जो उसने मंदिर के दान पात्र से निकाले थे। 

और पीके अपनी पैंट की जेब दिखाकर कहता भी है कि और पैसे उसके पास नहीं हैं। फिर यहां से कहानी आगे बढ़ती है और पीके व जग्गू को पुलिस वाला लॉक-अप में बंद कर देता है। 

लॉक-अप में पीके जग्गू को अपनी कहानी सुनाता है। और फिर जब पुलिस वाला जग्गू से और 500 रुपए लेकर पीके को छोड़ देता है तो ये दोनों घूमते हुए कनॉट प्लेस पर आते हैं। यहां एक सरदार जी पीके के पास आकर उससे 500 रुपए की मदद मांगते हैं। 

पीके ना सिर्फ उन सरदार जी को अपनी कमीज़ की जेब से निकालकर 500 रुपए देता है, बल्कि 100 रुपए और देता है टिप देने के लिए। 

तो सवाल ये है कि जब मंदिर के बाहर पीके ने जग्गू को अपनी खाली जेब दिखाकर कहा था कि उसके पास और पैसे नहीं हैं तो अब ये 600 रुपए उसके पास कहां से आए? 

क्योंकि लॉक-अप तक भी पीके जग्गू के साथ गया था। और लॉक-अप से बाहर आने के बाद भी पीके जग्गू के ही साथ है। 

तो क्या पृथ्वी पर आकर पीके भी झूठ बोलने लगा है? ऐसा मुमकिन तो नहीं लगता। क्योंकि पीके को तो झूठ बोलने की आदत ही नहीं है। तो मतलब ये तो गलती ही हुई ना।

20वीं कहानी

पीके फिल्म में एक और फैक्चुअल गलती है। वो ये कि पीके जब जग्गू से मिलता है तो उसे बताता है कि उनके प्लैनेट पर कम्यूनिकेट करने के लिए किसी भाषा की ज़रूरत नहीं है। वो लोग आपस में हाथ पकड़कर एक-दूजे का माइंड रीड कर लेते हैं। 

और ये माइंड रीडिंग ही इनके कम्यूनिकेशन का ज़रिया है। लेकिन जब पीके दोबारा रनबीर कपूर के साथ पृथ्वी पर आता है तो वो दोनों हमें बातें करते हुए नज़र आते हैं। तो क्या पीके ने अपने प्लैनेट पर वापस जाकर अपने लोगों को भोजपुरी भाषा सिखाई थी? 

और जब पीके के प्लैनेट के लोग माइंड रीडिंग कर सकने के काबिल हैं तो फिर तो वाकई में उन्हें किसी लैंग्वेज की ज़रूरत है ही नहीं। 

एक और गलती जो इस फिल्म में है वो ये कि एक सीन में पीके मुहर्रम के मातम में अपनी पीठ पर ज़ंजीरों वाले चाकुओं से वार कर रहा है। 

जो लोग इस तरह मुहर्रम के मातम में अपनी पीठ पर ज़ंजीरों वाले चाकुओं से वार करते हैं उनकी पीठ पर हमेशा के लिए निशान बने रह जाते हैं। 

लेकिन जब तपस्वी की सभा में पीके अपनी कमीज़ उतारकर अपना बदन दिखाते हुए पूछता है कि ठप्पा कहां हैं, तब उसकी कमर पर कोई निशान नहीं दिखता। 

तो क्या डायरेक्टर साहब खुद ही भूल गए थे कि उन्होंने पीके से मुहर्रम में उसकी पीठ पर ज़ंजीरों वाले चाकू भी चलवाए थे? 

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