Dharmendra And Mohd Rafi | दोस्ती की एक प्यारी-सच्ची कहानी

Dharmendra And Mohd Rafi. भारतीय मनोरंजन जगत के दो अनमोल नगीने। एक ने अपनी ज़बरदस्त एक्टिंग से सिनेमा के शौकीनों के दिलों में जगह बनाई। तो एक ने अपनी बेजोड़ गायकी से करोड़ों लोगों की नज़रों में इज्ज़त पाई। 

जहां धर्मेंद्र अपने दौर के सबसे सफल अभिनेताओं में से एक हैं। तो वहीं मोहम्मद रफी साहब भी भारत के महानतम गायकों में शुमार किए जाते हैं। रफी साहब धर्मेंद्र जी के पसंदीदा गायक थे। 

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Story of Mohd Rafi And Dharmendra Friendship - Photo: Social Media

और जब धर्मेंद्र साहब अपने करियर के शिखर पर थे, तो वो म्यूज़िक डायरेक्टर्स से खास फरमाइश करते थे कि उनके गीत रफी साहब से गवाएं जाएं। ऐसा नहीं है कि धर्मेंद्र साहब को इंडस्ट्री के दूसरे गायकों से कोई दिक्कत थी। 

धर्मेंद्र हर गायक को रफी साहब जितना ही सम्मान देते थे। धर्मेद्र जी को भी फिल्म इंडस्ट्री के लगभग सभी गायकों ने अपनी आवाज़ दी है। लेकिन रफी साहब से धर्मेंद्र जी का लगाव ज़रा खास था। और उस लगाव की कहानी भी खास ही है।

Meerut Manthan आज आपको Dharmendra And Mohd Rafi साहब की पहली मुलाकात की कहानी बताएगा। साथ ही ये ज़िक्र भी करेगा कि क्यों Dharmendra And Mohd Rafi की जोड़ी फिल्म इंडस्ट्री की टॉप एक्टर-सिंगर की जोड़ियों में से एक मानी जाती थी।

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पहले ही गीत से दोस्त बन गए थे Dharmendra And Mohd Rafi

रफी साहब ने धर्मेंद्र जी के लिए जो पहला गीत गाया था वो था जाने क्या ढूंढती रहती हैं ये आंखें मुझमें। ये साल 1961 में आई धर्मेंद्र की दूसरी फिल्म शोला और शबनम का गीत था। 

और इस गीत को कंपोज़ किया था नामी म्यूज़िक डायरेक्टर खय्याम ने। जबकी इसके बोल लिखे थे कैफ़ी आज़मी साहब ने। कुछ साल पहले दिए गए अपने एक इंटरव्यू में धर्मेंद्र जी ने इस गीत और रफी साहब को याद करते हुए कहा था,

"रफी साहब तो जैसे मेरे कैरेक्टर्स के साथ मर्ज हो जाते थे। वो हमेशा मुस्कुराते रहते थे। गुस्सा तो उनके चेहरे पर कभी दिखा ही नहीं। वो मेरे लिए भाई जैसे थे। शोला और शबनम के इसी गीत की रिकॉर्डिंग के दिन मैं पहली दफा रफी साहब से मिला था। उस दिन तो मानो मेरा सपना पूरा हो गया था। मुझे बाद में पता चला था कि जब रफी साहब वो गाना रिकॉर्ड कर रहे थे, तब उन्हें बुखार हो रहा था। लेकिन कमाल देखिए, रफी साहब ने उस हालत में भी वो गाना कितना खूबसूरत गाया।"

रफी साहब होते तो धर्मेंद्र ये भी कर देते

उसी इंटरव्यू में धर्मेंद्र जी ने ये भी कहा था कि अगर उनके बेटे सनी देओल की पहली फिल्म बेताब के वक्त रफी साहब ज़िंदा होते तो वो उनसे ही सनी के लिए भी सॉन्ग्स रिकॉर्ड कराते। 

लेकिन अफसोस, तब तक रफी साहब को इस दुनिया से गए तीन साल हो चुके थे। पर चूंकि धर्मेंद्र रफी साहब की आवाज़ के बहुत बड़े कद्रदान थे, इसलिए उन्होंने किसी ऐसे ही गायक की तलाश शुरू कर दी जिसके गाने का अंदाज़ रफी साहब से मिलता हो। 

फाइनली उनकी तलाश खत्म हुई शब्बीर कुमार पर। शब्बीर कुमार तब फिल्म इंडस्ट्री में नए-नए ही आए थे। और वो कुछ-एक फिल्मों में गायकी कर भी चुके थे। 

लेकिन ये धर्मेंद्र साहब थे जो रफी साहब से अपनी बेइंतिहा मुहब्बत के चलते शब्बीर कुमार को अपने बेटे सनी की डेब्यू फिल्म बेताब में गाने के लिए ले आए। और बेताब से ना केवल सनी देओल को, बल्कि शब्बीर कुमार को भी मकबूलियत हासिल हुई। 

साल 1989 में जब धर्मेंद्र साहब ने सनी को ही लेकर यतीम फिल्म प्रोड्यूस की तो उसमें भी उन्होंने शब्बीर कुमार को ही गीत गाने के लिए लिया। और केवल शब्बीर कुमार ही नहीं, धर्मेंद्र साहब ने मोहम्मद अज़ीज़ साहब को भी इस फिल्म में गाने का मौका दिया। 

और इस बात से तो आप भी वाकिफ होंगे कि मोहम्मद अज़ीज़ साहब की गायकी पर भी रफी साहब का काफी प्रभाव था। रफी साहब के बारे में बात करते हुए धर्मेंद्र कहते हैं,

"मैं उस ज़माने से रफी साहब के फैन हूं जब मैं फिल्मी दुनिया में आया भी नहीं था। रफी साहब मेरे कैसे भी सॉन्ग के साथ अपनी आवाज़ को मेरे कैरेक्टर संग मैच करा देते थे। और मेरे ही क्या, किसी भी एक्टर के साथ रफी साहब ये कमाल बड़े आराम से करते थे। मैं दिल से ये बात बोल रहा हूं कि अगर मेरा बस चलता तो मैं अपने किसी भी गाने को रफी साहब के अलावा किसी दूसरे गायक से ना गवाने देता। हालांकि ऐसा नहीं है कि मैं किसी और गायक को पसंद नहीं करता। मैं सबको पसंद करता हूं और सबका सम्मान करता हूं।"

Sonu Nigam को भी Dharmendra ने दिया सहारा

साल 1995 में जब धर्मेंद्र साहब ने अपने छोटे बेटे बॉबी देओल को बरसात फिल्म से लॉन्च किया तो उस वक्त भी रफी साहब का प्रभाव उन पर रहा। बरसात के म्यूज़िक डायरेक्टर थे नदीम-श्रवण। 

और उस ज़माने में नदीम-श्रवण कुमार सानू के साथ अपनी मजबूत असोसिएशन के लिए जाने जाते थे। लेकिन धर्मेंद्र साहब ने नदीम-श्रवण से कहकर बरसात फिल्म में सोनू निगम को तीन सॉन्ग्स दिलाए।

यानि धरम जी को भी सोनू निगम की रफी साहब के स्टाइल वाली गायकी पसंद थी। 2007 में जब अपने फिल्म आई तो धर्मेंद्र जी ने अपने का टाइटल सॉन्ग सोनू निगम से सिर्फ इसलिए गवाया था ताकि वो रफी साहब को श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें।  धर्मेंद्र जी के रफी प्रेम की एक और खूबसूरत मिसाल है साल 2011 की यमला पगला दीवाना फिल्म का टाइटल ट्रैक। 

इस फिल्म की मेकिंग से पहले धर्मेंद्र चाहते थे कि इसमें उनकी फिल्म प्रतिज्ञा का ऑरिजिनल यमला पगला दीवाना सॉन्ग लिया जाए, जो कि रफी साहब ने ही गाया था। 

मगर कॉपीराइट नियमों के कारण धर्मेंद्र साहब का ये ख्वाब पूरा ना हो सका। ऐसे में धरम जी ने एक बार फिर से सोनू निगम से ही ये गाना रिकॉर्ड कराया। ये बात भी जानने लायक है कि धरम जी के पूरे करियर में उनके ऊपर लगभग डेढ़ सौ गीत फिल्माए गए थे। और उनमें से आधे रफी साहब ने ही गाये थे। 

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